अंजली खेर
ब्रम्हा का पहली सुखनिंद्रा में छोड़ा नि:श्वास हॅू मैं…
तपती धूप में शीतल छाँव का अहसास हॅू मैं…
मैं फूलों की तरह कोमल फूल हॅू….
कांटे के तरह चुभता शूल भी हॅू….
कमजोर – असहाय समझ, मुझे मसलने की कोशिश ना करना…
कोई मेरे जज्बातों से कोई खेले, तो रण चंडी का त्रिशूल भी हॅू मैं….
नन्हें-नन्हें परों से भरती हॅू ऊँची – ऊँची उडान…
अपनी काबिलियत से बनाई हैं मैने अपनी पहचान…
बहुत हुए अत्याचार, अब और नहीं कुछ सहना हैं…
तोड़ के चुप्पी आज दिल की हर बात कहना हैं…
खुशियों के इंद्रधनुषी रंग संजते हैं हमसे…
चार-दीवारी का मकान, घर बना हैं हमसे….
मत ठेस पहॅुचाना कभी तुम मेरी भावनाओं को….
तुम्हारी हर सुबह, हर शाम हैं हमसे…
ह्दय कर रहा क्रंदन, मन चीख-चीख कर रहा पुकार…
हैं कोई संसार में जो करे मुझसे बिना शर्त करे प्यार…
मैं भी इंसान हॅू, मुझे क्यों नहीं स्वच्छंद जीने का अधिकार…
ये हैं शिक्षित समाज की मानसिकता पर करारा प्रहार…
नहीं हॅू मैं असहाय और अबला…
नहीं माँगती किसी से सम्मान – दया की भीख..
मुझे हैं अपनी काबिलियत पर भरोसा..
योग्यता से सब हासिल करना, मैने लिया है सीख…
शिक्षित हॅू, स्वावलंबी हॅू, मुझे है खुद से प्यार बेशुमार…
हौसला हैं, आत्मविश्वास हैं, यही हैं मेरी पहचान..
पढ़ती हॅू, समाज को देती हॅू सफलता के नित-नये पैगाम…
हमारे सशक्तीकरण के बिना देश की नहीं हैं आन-बान-शान….
बहुत हुए अत्याचार, अब और नहीं कुछ सहना हैं….
तोड़ के चुप्पी आज दिल की हर बात कहना हैं…
भोपाल













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