सुरेश तन्मय
सब के सम्मुख रोयें कैसे
मौन सिसकते सोयें कैसे।
खारे आँसू नमक हो गए
बिना प्रेम जल धोयें कैसे।
आना जाना है उस पथ से
उसमें काँटे बोयें कैसे।
खेत काट ले जाते कोई
घर में धान उगोयें कैसे।
अंतस में जो घर कर बैठी
उन यादों को खोयें कैसे।
एक अकेलापन अपना है
इसमें शूल चुभोयें कैसे।
जब निद्रा ही नहीं रही तो
सपने कहाँ सँजोएँ कैसे।
सबके बीच बैठकर बोलो
अपने नैन भिगोयें कैसे।
बढ़ती जाती भीड़ निरर्थक
ये मन इनको ढोये कैसे
बिखरे बिखरे मन के मोती
फिर से इन्हें पिरोएँ कैसे













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