आशीष खरे
अमित रोज की तरह अपडाउनर ट्रैन पकड़ने के लिये स्टेशन के प्लेटफार्म नम्बर 4 की ओर बढ़े चले जा रहा था। कान पर मोबाईल लगाये पत्नी नेहा से बतियाते हुये कुछ ज्यादा ही खुश दिख रहा था, क्यों कि पन्द्रह दिनों की कमाई एक ही दिन में जो हो गई थी………हां हां, भाई की शादी के लिये नये सोने के कंगन दिलाऊंगा, तुम तो भगवान से मनाओं कि महीने में ठाकुर जैसे तीन चार क्लाइंट मिल जाये तो, समझों फिर तो पूरी सैलरी बचत में जायेगी, तब तुमको सोने के बजाय डायमण्ड ही डायमण्ड लाकर दूंगा मेरी रानी। अमित खिलखिलाते फोन काटकर जैसे ही सामने की ओर देखता है कि प्लेटफार्म पर एक बीमार व्यक्ति तेज आवाज में कराहते हुये प्लेटफार्म पर लेटा हुआ था और उसकी पत्नी उसके पैरों के तलवों में मालिश कर रही थी और उसका 13 -14 साल का बेटा हथेली मलते हुये कह रहा ‘बाबा बस ट्रैन आती ही होगी, मैं आपका ईलाज मुम्बई के अच्छे से अच्छे डाॅक्टर से करवाऊंगा, देखना कुछ ही दिनों में चंग हो जाओगें दूसरी ओर पिता हाथ हिलाकर जाने से मना करने का ईशारा कर रहे थे। बेटे की बात सुनकर अमित रूक जाता है और सोचता है, दिख तो फटे हाल रहा हैं और ईलाज मुम्बई जैसे शहर में कराने की बात कर रहा है। अमित ने उत्सुकतावश पास जाकर पूछ ही लिया’’ क्या हो गया है इसके पापा को …..? महिला ने मालिश रोकते हुये कहा, किडनी खराब हो गयी हैं। अमित ने आगे पूछा….एक की या …….. आधा प्रश्न सुनकर ही वह बोल पड़ी…..दोनों । डाक्टर ने तो हाथ खड़े कर दिये है, बेटा जिद पर अड़ा हुआ है कि बड़े शहर मुम्बई ले चलो, वहां ईलाज करायेंगे, फिर देखना मेरे कैसे ठीक नहीं होते ?
मुम्बई में तो ईलाज बहुत मंहगा, इतने पैसे है तुम्हारे पास………..? अमित के पूछने पर उसने ब्लाउज़ के अंदर रखे बंद रूमाल को खोलते हुये बोलती है, हांहै न ओर सारे पैसे अमित के हाथ में रख देती है। अमित गिनने के बाद कहता है …..अरे ये तो सत्ताई सौ रूपये ही हैं ये तो तुम लोगों के आने जाने में और दो दिन के खाना खर्चे में ही खत्म हो जायेंगे………………..। तुमको अपने रिष्तेदारों पहचान वालों से दस बारह हजार तक तो मांगकर लाना था, इतने में वहां कुछ नहीं होने वाला ।
आजकल कभी किसी के भी रिष्तेदार किसी की मदद करते हैं क्या? कल मिल वाले ठाकुर ने वादा किया था कि आज इसके पापा की तीन माह की सैलरी दे देंगे, आज जब लेने गई तो कहने लगे जो उसने पैसे मेरे लिये निकाले थे वह उसे बिजली वाले को देना पड़े, वह यहां तक कह रहे थे । वह कमीना था, बोल रहा था आज और अभी पैसे नहीं दिये तो पुरानी सारी रिकवरी निकाल के साथ साथ कनेक्शन काट दूंगा सो अलग…….मैंने बहुत समझाया पर वह नसुकरा कल तक रूकने को तैयार ही नहीं था । साहब क्या करती, पैसा देखूं या इनको, बेटा दम ही नहीं ले रहा था, वह अपने बाबा से बहुत प्यार करता है न, ये इनके बिना रहने की सोच भी नहीं सकता, बोलता है कि देखना माँ मैं डाक्टर बाबू के पैर पकड़ लूंगा, तब तो मेरे बाबा को बिलकुल कर देंगे ।
पत्नी वापस पैसे रूमाल में बांधते हुये…….ठठरी बंध जाये उस बिजली वाले की, साला रिष्वत खोर, कीड़े पड़ पड़ मरेगा, मेरा इतना छोटा बच्चा जिसके खेलने खाने के दिन है सारा दिन अपने बाबा के पास बैठा रहता है। देखना बाबू जो मेरे हिस्से को पैसा लेकर गया है सड़ सड़ कर मरेगा। अमित यह सब सुनकर बहुत घबराकर और वहां हटकर दूर चला जाता है। यह सब सुनने के बाद उसे अपने किये पर ग्लानि हो रही थी, पर्स में रखे जो थोड़ी पहले मन मयूरा बनकर नाच रहे थे, वही अब बोझ लग रहे थे, रह रहकर बार बार उस महिला की आवाज उसे परेशान किये जा रही थी, तभी उसकी ट्रेन प्लेटफार्म पर आकर लग जाती है, इधर परेशान आत्मग्लानि के बोझ तले घुटन महसूस कर रहा अमित उठकर दौड़ता उसी महिला के पास जाकर दस हजार की गड्डी उसके हाथ में पकड़ा देता है……अभी मेरे पास इतने ही हैं काम चला लेना। महिला नोट पकड़ते हुये बोली आप क्यूं परेशान हो रहे हो……..अमित ने कहा……..नहीं नहीं मैं बिलकुल परेशान नहीं हॅूं, अभी फिलहाल मुझे इन पैसो की बिलकुल जरूरत नहीं है, लेकिन तुमको इसकी बहुत जरूरत है। महिला ने सर नीचे करवा कर आशीर्वाद दिया… जीते रहो बेटा, भगवान आपका भला करेंगे, इस धरती पर आप जैसे देवता लोग भी रहते है और एक वो नरकी… कीड़े पड़ कर न मरे तो कहना…… ट्रेन सीटी के साथ प्लेटफार्म से खिसकने लगती है। अमित डब्बे आकर बैठकर सोचता रहा कि उसे उस महिला की बद्दुआयें लगेंगी या फिर वह जो उसे सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया था। अमित इसी उधेडबुन में लगा रहा और ट्रेन लम्बी सीटी देते अपने गंतव्य स्थान के लिये प्रस्थान कर चुकी थी।
सम्पर्क – कार्यक्रम अधिशासी
दूरदर्शन केन्द्र, भुवनेश्वर
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