सुरेश तन्मय
चलो! चलें संसद में राजे।।
करने खुलकर धक्का-मुक्की
इसकी उसकी करने भक्ति
चूल्हा-चौका, राशन-पानी
आम सुरक्षा, छप्पर छानी
रोजगार सब जाय भाड़ में
चलती रहे हमारी चक्की
लड़ें, जड़ें आरोप परस्पर
कीर्तिमान स्थापित हों ताजे
चलो! चलें संसद में राजे।
तगड़े भत्ते, सुख सुविधाएँ
नई योजनाओं में खाएँ
मुफ्त प्रवास, लगे ना कौड़ी
लाज शर्म, कुर्सी सँग छोड़ी
आसंदी को अपमानित कर
मिल हम नये विवाद रचाएँ
तिल का करते ताड़ तभी तो
शंकित जनता हमें नवाजे
चलो! चलें संसद में राजे।
एक, दूसरे को गरियाएँ
रोज-रोज उत्पात मचाएँ
दिखे कभी आफत अपने पर
हंगामा कर भागें बाहर
शोर-शराबा, मजमेबाजी
हम अपनी औकात दिखाएँ
नियत रुदाली, संसद खाली
जनता के बढ़ रहे तकाजे
चलो! चलें संसद में राजे।
संविधान है जेब में अपने
माला लोकतंत्र की जपने
सत्ता पाने की खुजलाहट
मन बेचैन बहुत हैं आहत
जन्मजात मिल्कियत गँवाई
रैन-दिवस आते हैं सपने
कोशिश अपने राजसिंहासन
पर वारिश बन शीघ्र विराजें
चलो! चलें संसद में राजे।
रेवड़ियों की होड़ लगी है
सरकारें कब बनी सगी है
देकर एक हड़पती दस है
करदाता से करे ठगी है
बेबस जनता को भरमाये
दाँव पेच को समझ न पाये
चोर-चोर मौसेरे भाई
ठगी मलाई में सब साझे
चलो! चलें संसद में राजे।
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