डॉ. योगिता सिंह राठौड़
बच्चे किसी भी समाज, देश और पूरे विश्व का भविष्य होते हैं। उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा और अधिकारों की रक्षा करना हमारा नैतिक और सामाजिक कर्तव्य है। इसी उद्देश्य को लेकर हर साल 1 जून को अंतरराष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस (International Day for Protection of Children) मनाया जाता है। यह दिन बच्चों के अधिकारों की रक्षा और उनके समग्र विकास के लिए वैश्विक जागरूकता फैलाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।
इतिहास और महत्व:
अंतरराष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस की शुरुआत 1950 में हुई थी, जब इंटरनेशनल डेमोक्रेटिक फेडरेशन ऑफ वूमन (International Democratic Federation of Women) ने पहली बार इसे मनाया। इसका उद्देश्य था – युद्धों, गरीबी और शोषण से प्रभावित बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें सुरक्षित भविष्य देना।
आज यह दिवस विश्व के कई देशों, विशेषकर एशिया, यूरोप और पूर्व सोवियत संघ के देशों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसका प्रमुख संदेश है – हर बच्चे को जीवन, शिक्षा, सुरक्षा और प्यार पाने का हक है।
बच्चों के सामने चुनौतियाँ:
1. बाल श्रम – लाखों बच्चे आज भी मजदूरी करने को मजबूर हैं।
2. बाल यौन शोषण – बच्चों के खिलाफ यौन अपराध लगातार बढ़ रहे हैं।
3. बाल तस्करी – बच्चों की खरीद-फरोख्त और अवैध गतिविधियों में उपयोग।
4. शिक्षा से वंचित होना – गरीबी या सामाजिक भेदभाव के कारण कई बच्चे स्कूल नहीं जा पाते।
5. स्वास्थ्य सेवाओं की कमी – कुपोषण, टीकाकरण की कमी और उचित इलाज का अभाव।
बच्चों की सुरक्षा के लिए प्रयास:
संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि (UNCRC), 1989 में पारित, बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
WHO, UNICEF, और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए निरंतर कार्य कर रहे हैं।
कई देश बच्चों के लिए विशेष कानून और योजनाएँ चला रहे हैं, जैसे:
भारत में – POCSO अधिनियम, बाल श्रम निषेध कानून, आंगनवाड़ी, मिड-डे मील योजना आदि।
समाज की भूमिका:
माता-पिता, शिक्षक और समाज को बच्चों के साथ संवेदनशीलता और जिम्मेदारी से व्यवहार करना चाहिए।
यदि किसी भी प्रकार के शोषण की जानकारी मिले, तो तुरंत संबंधित अधिकारियों को सूचित करें।
बच्चों को अधिकारों, आत्म-सुरक्षा और बोलने की आज़ादी के बारे में शिक्षित करना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस केवल उत्सव का दिन नहीं है, बल्कि आत्म-मंथन और सामूहिक जिम्मेदारी का दिन है। हमें यह समझना होगा कि यदि हम बच्चों को सुरक्षित, शिक्षित और सशक्त नहीं बनाएँगे, तो समाज का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।
संदेश:
“हर बच्चे को मिले प्यार, शिक्षा और सुरक्षा – यही है सच्ची मानवता की पहचान।”
“बच्चों की रक्षा करें, उनका भविष्य संवारें – यही हमारी असली विरासत है।”
लेखक के ये अपने विचार हैं।
प्राचार्य
माँ नर्मदा कॉलेज ऑफ एजुकेशन धामनोद
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