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संघर्ष से समृद्धि तक: आज़ादी का सफर और नए भारत की उड़ान

डॉ. योगिता सिंह राठौड़

15 अगस्त 1947 — वह ऐतिहासिक दिन, जब भारत ने लंबी दासता की बेड़ियों को तोड़कर स्वतंत्रता का अमृतपान किया। यह दिन केवल राजनीतिक स्वतंत्रता का प्रतीक नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों की त्याग, बलिदान और अटूट देशभक्ति का परिणाम है। स्वतंत्रता की उस पहली सुबह से लेकर आज तक, भारत ने अनेक चुनौतियों का सामना करते हुए समय के साथ खुद को बदलते, सँवारते और आगे बढ़ते देखा है। 15 अगस्त 1947—वह दिन, जब सदियों की गुलामी, अन्याय और शोषण की जंजीरें टूटकर भारत ने स्वतंत्रता का स्वागत किया। यह स्वतंत्रता यूं ही नहीं मिली, बल्कि लाखों वीरों के बलिदान, तपस्या और अदम्य साहस का परिणाम थी। आज़ादी का यह सफर केवल अतीत की कहानी नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य की दिशा तय करने वाला प्रेरणास्रोत है।

संघर्ष का दौर—त्याग और बलिदान की गाथा –

अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ भारत का संघर्ष लंबा और कठिन था। 1857 की क्रांति में मंगल पांडे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे जैसे वीरों ने अंग्रेज़ी सत्ता को हिला दिया। महात्मा गांधी के सत्याग्रह, असहयोग और भारत छोड़ो आंदोलन ने देशवासियों को एकजुट किया। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद और नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। यह संघर्ष केवल युद्धभूमि में ही नहीं, बल्कि विचारों, शिक्षा, स्वदेशी आंदोलन और जनजागरण के माध्यम से भी लड़ा गया।

स्वतंत्रता संग्राम की नींव — देशभक्ति की ऊर्जा

आज़ादी का संघर्ष केवल तलवारों या रणभूमि तक सीमित नहीं था, बल्कि यह हर भारतीय के दिल में बसने वाले प्रेम, त्याग और एकता का परिणाम था। महात्मा गांधी, भगत सिंह, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, सरदार पटेल जैसे असंख्य नेताओं और गुमनाम नायकों ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर स्वतंत्रता का सूरज उगाया। यह देशभक्ति ही थी, जिसने गरीब-किसान से लेकर पढ़े-लिखे नौजवान तक, सबको एक धागे में बाँध दिया।

स्वतंत्र भारत का सफर — संघर्ष से समृद्धि तक

आज़ादी के बाद भारत के सामने गरीबी, निरक्षरता, बेरोज़गारी और विकास की चुनौतियाँ थीं। लेकिन देश ने हार नहीं मानी। पंचवर्षीय योजनाओं से लेकर हरित क्रांति, श्वेत क्रांति और औद्योगिक विकास तक, हमने धीरे-धीरे अपनी पहचान एक उभरती शक्ति के रूप में बनाई। विज्ञान, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हुई प्रगति ने देश को नई दिशा दी।

स्वतंत्र भारत—विकास और समृद्धि की ओर

आज़ादी के बाद भारत के सामने गरीबी, निरक्षरता, खाद्यान्न की कमी और बेरोज़गारी जैसी गंभीर चुनौतियाँ थीं। लेकिन देश ने दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ना शुरू किया—

  • कृषि में हरित क्रांति ने देश को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाया।
  • श्वेत क्रांति से दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हुई।
  • पंचवर्षीय योजनाओं से औद्योगिक और बुनियादी ढांचे का विकास हुआ।
  • अंतरिक्ष और परमाणु कार्यक्रमों ने भारत को विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी बनाया।

डिजिटल भारत — नई सोच, नया युग

21वीं सदी में कदम रखते ही भारत ने तकनीकी क्रांति का स्वागत किया। “डिजिटल इंडिया” अभियान ने देश की कार्यशैली ही बदल दी। गाँव-गाँव इंटरनेट, डिजिटल पेमेंट, ऑनलाइन शिक्षा, ई-गवर्नेंस और स्टार्टअप संस्कृति ने भारत को वैश्विक मंच पर नई पहचान दी। अब पासपोर्ट से लेकर बैंकिंग तक, शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक, सब कुछ मोबाइल की स्क्रीन पर उपलब्ध है।

देशभक्ति और डिजिटलता — एक-दूसरे के पूरक

आज की देशभक्ति सिर्फ सीमा पर हथियार लेकर खड़े होने में ही नहीं, बल्कि ईमानदारी से अपने कार्यक्षेत्र में योगदान देने, तकनीकी नवाचार करने, स्वदेशी उत्पादों को अपनाने और भारत को आत्मनिर्भर बनाने में भी है। डिजिटल भारत के निर्माण में हर नागरिक की भूमिका अहम है—चाहे वह किसान अपने खेत में नई तकनीक अपनाए या युवा अपने स्टार्टअप से रोज़गार के अवसर पैदा करे। 21वीं सदी में भारत ने डिजिटल क्रांति को अपनाया और नई ऊँचाइयों को छुआ।

  • “डिजिटल इंडिया” अभियान ने इंटरनेट, ई-गवर्नेंस, डिजिटल पेमेंट और ऑनलाइन सेवाओं को जन-जन तक पहुँचाया।
  • स्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं ने युवाओं को नवाचार और उद्यमिता की दिशा में प्रेरित किया।
  • चंद्रयान और गगनयान मिशन जैसे वैज्ञानिक अभियानों ने भारत की क्षमता का विश्व में डंका बजाया।
  • आत्मनिर्भर भारत अभियान ने घरेलू उत्पादन और स्वदेशी तकनीक को बढ़ावा दिया।

गौरव की निरंतर यात्रा

देशभक्ति की ऊर्जा और डिजिटल भारत की तकनीकी ताकत, दोनों मिलकर भारत को 2047 में आज़ादी के 100 वर्ष पूरे होने तक एक सशक्त, समृद्ध और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने का संकल्प देती हैं। तिरंगे की शान में झूमते हुए हम सबको यह याद रखना चाहिए कि हमारा अतीत प्रेरणा है, वर्तमान अवसर है, और भविष्य हमारे हाथों में है। भारत का सफर संघर्ष से समृद्धि तक केवल इतिहास का अध्याय नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा है। अतीत के बलिदान हमें यह सिखाते हैं कि एकजुटता, साहस और संकल्प से असंभव भी संभव हो सकता है। आज का नया भारत डिजिटल प्रगति, आर्थिक विकास और आत्मनिर्भरता की राह पर है।

“देशभक्ति से डिजिटल भारत तक का यह सफर केवल तकनीकी उन्नति नहीं, बल्कि एक संकल्प है—भारत को विश्व गुरु बनाने का।”

प्राचार्य

माँ नर्मदा कॉलेज ऑफ एजुकेशन धामनोद

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