डाॅ. योगिता राठौड़
भारत की संस्कृति और परंपराएं अपने विविधता और उत्सवों के कारण विश्व में अद्वितीय हैं। यहाँ वर्ष भर कोई न कोई पर्व मनाया जाता है, जो समाज को जोड़ने, आध्यात्मिकता जगाने और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का कार्य करता है। इन्हीं पर्वों में से एक है नवरात्रि, जिसे शक्ति उपासना का महान पर्व माना जाता है। नौ दिनों तक चलने वाला यह उत्सव देवी दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की आराधना का प्रतीक है। नवरात्रि केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है।

नवरात्रि का सबसे बड़ा संदेश है – आत्मबल का विकास।
पौराणिक कथा के अनुसार, देवी दुर्गा ने असुर महिषासुर का वध किया। यह घटना हमें बताती है कि यदि हम अपने भीतर के डर, आलस्य और नकारात्मक प्रवृत्तियों पर विजय पा लें तो जीवन में कोई भी बाधा असंभव नहीं है। नौ दिनों की उपासना और साधना व्यक्ति को आत्मविश्वास और धैर्य से भर देती है। यह पर्व हमें प्रेरित करता है कि हम अपने भीतर छिपी शक्तियों को पहचानें और उनका सदुपयोग करें।
आस्था का पर्व
नवरात्रि का अर्थ ही है ‘नौ रातें’, जिनमें श्रद्धालु उपवास, पूजा, भजन-कीर्तन और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से देवी शक्ति की साधना करते हैं। यह पर्व अच्छाई पर बुराई की विजय का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, असुर महिषासुर के आतंक से देवता त्रस्त हुए और उन्होंने देवी दुर्गा का आह्वान किया। मां दुर्गा ने नौ रातों तक महिषासुर से युद्ध कर दसवें दिन उसे पराजित किया। यह दिन विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए नवरात्रि के प्रत्येक दिन देवी के अलग-अलग स्वरूप—शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। इन स्वरूपों के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि शक्ति का रूप केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक भी है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में धारण करना चाहिए।
शक्ति का प्रतीक
नवरात्रि स्त्री शक्ति की सर्वोच्च अभिव्यक्ति का पर्व है। यह हमें बताता है कि सृजन, संरक्षण और विनाश की मूल शक्ति नारी में ही निहित है। आज के संदर्भ में नवरात्रि का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि यह नारी सम्मान और सशक्तिकरण का संदेश देता है। समाज में स्त्री की भूमिका केवल परिवार तक सीमित नहीं है, बल्कि वह राष्ट्र निर्माण की भी धुरी है। नवरात्रि हमें यह प्रेरणा देती है कि हम नारी को देवी का ही स्वरूप मानकर उसका सम्मान करें और जीवन में समानता की भावना को स्थापित करें।
सांस्कृतिक उल्लास
नवरात्रि का एक और विशेष पहलू है इसका सांस्कृतिक उत्सव। भारत के विभिन्न राज्यों में नवरात्रि अलग-अलग परंपराओं और रंगों के साथ मनाई जाती है। गुजरात का गरबा और डांडिया तो विश्व प्रसिद्ध हैं। ढोल और संगीत की थाप पर थिरकते लोग इस पर्व को जीवंत बना देते हैं। वहीं, पश्चिम बंगाल में इसे दुर्गा पूजा के रूप में भव्य पंडालों, सुंदर मूर्तियों और आकर्षक सजावट के साथ मनाया जाता है। दक्षिण भारत में घरों में ‘गोलू’ की परंपरा है, जिसमें देवी-देवताओं की मूर्तियाँ सजाई जाती हैं। उत्तर भारत में रामलीला और दुर्गा पूजा के आयोजन इस पर्व की शोभा बढ़ाते हैं। इस प्रकार नवरात्रि भारत की सांस्कृतिक एकता और विविधता का शानदार उदाहरण है।
आध्यात्मिक साधना और आत्मसंयम
नवरात्रि केवल बाहरी उत्सव नहीं है, बल्कि यह आत्मचिंतन और आत्मसंयम का भी पर्व है। उपवास और साधना से मनुष्य अपने शरीर और मन को शुद्ध करता है। यह हमें संयम, धैर्य और आत्मबल की सीख देता है। नवरात्रि के नौ दिन आत्मिक शुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करते हैं।
नवरात्रि वास्तव में केवल पूजा और अनुष्ठान का पर्व नहीं, बल्कि आस्था, शक्ति और सांस्कृतिक उल्लास का अद्भुत संगम है। यह हमें नारी शक्ति के महत्व का बोध कराता है, समाज में समानता और सम्मान का संदेश देता है तथा सांस्कृतिक विविधता के रंगों से हमारे जीवन को आलोकित करता है। आज के बदलते दौर में नवरात्रि की प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है, क्योंकि यह हमें अपनी जड़ों और परंपराओं से जोड़ने के साथ-साथ आत्मबल और सकारात्मकता का मार्ग भी दिखाती है। नवरात्रि वास्तव में केवल देवी पूजा का पर्व नहीं, बल्कि आत्मबल, संयम और सद्गुणों की साधना का अद्भुत अवसर है। यह हमें अपने भीतर झाँकने, बुराइयों पर विजय पाने और जीवन में सकारात्मक गुणों को अपनाने की प्रेरणा देता है। यदि हम नवरात्रि के संदेश को अपने जीवन में उतार लें, तो न केवल हमारा व्यक्तिगत जीवन सुखमय होगा, बल्कि समाज भी समृद्ध और सशक्त बनेगा।
इस प्रकार नवरात्रि केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा और समाज को जोड़ने वाला अद्वितीय अवसर है।
प्राचार्य
माँ नर्मदा कॉलेज ऑफ एजुकेशन धामनोद
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