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अन्तर्मौन: आन्तरिक शांति और ध्यान का मार्ग

महेश अग्रवाल

आज का जीवन अत्यधिक व्यस्त और तनावपूर्ण है। प्रत्येक व्यक्ति दिनभर की गतिविधियों, मानसिक दबाव और भावनात्मक उतार-चढ़ाव में उलझा रहता है। ऐसे जीवन में मानसिक शांति और एकाग्रता की आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। आधुनिक चिकित्सा और तकनीकें भले ही शारीरिक स्वास्थ्य सुधारने में सहायक हों, पर मानसिक शांति, चेतना की स्पष्टता और ध्यान की गहराई केवल आंतरिक अभ्यास द्वारा ही प्राप्त हो सकती है।अन्तर्मौन का अभ्यास इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण साधन है। आन्तरिक मौन की अवस्था में मन की अनियंत्रित गतिविधियाँ नियंत्रित होती हैं, तनाव और चिंता कम होती है, और व्यक्ति सहज, शांत एवं सजग बनता है। यह केवल विचारों का अभाव नहीं है, बल्कि विचारों के प्रति साक्षी भाव विकसित करना है, जिससे व्यक्ति अपने मन का स्वामी बन सके।

अन्तर्मौन का अर्थ और आवश्यकता

अन्तर्मौन का शाब्दिक अर्थ है – आन्तरिक मौन। यह मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्तर पर शांति का अभ्यास है। मानसिक नियंत्रण: हमारा मन अनियंत्रित रूप से लगातार विचार उत्पन्न करता है। यदि इन विचारों पर नियंत्रण न रखा जाए तो व्यक्ति मानसिक तनाव, बेचैनी और चिंता का शिकार हो जाता है। साक्षी भाव: अन्तर्मौन में विचारों का निरीक्षण किया जाता है, लेकिन उनमें उलझना नहीं होता। व्यक्ति केवल द्रष्टा के रूप में उपस्थित रहता है। यह अभ्यास विचारों को नियंत्रित करना नहीं, बल्कि उनके प्रवाह का निरीक्षण करना सिखाता है।ध्यान की तैयारी: अन्तर्मौन ध्यान का पूर्वाभ्यास है। इस अभ्यास से व्यक्ति मानसिक रूप से तैयार होता है और ध्यान की वास्तविक अवस्था को अनुभव कर सकता है।

ध्यान का प्रारम्भ और सर्वोत्तम समय

ध्यान प्रारम्भ करने से पूर्व प्रार्थना करना सर्वोत्तम है। प्रार्थना का अर्थ केवल शब्दों का उच्चारण नहीं, बल्कि मानसिक रूप से ध्यान और आन्तरिक शांति की इच्छा है। प्रातःकाल: सुबह 4 से 6 बजे के मध्य का समय अत्यंत उपयुक्त माना गया है। रात का समय: रात में तन्द्रा की अवस्था में ध्यान करना भी लाभकारी हो सकता है, परन्तु इसमें नींद का खतरा अधिक होता है। दिन का समय: कुछ व्यक्ति दिन के मध्य भी ध्यान करते हैं, पर इस समय मानसिक थकान और तनाव का अनुभव अधिक होता है। सारांशतः ध्यान और अन्तर्मौन का अभ्यास स्वाभाविक होना चाहिए। यदि अभ्यास प्रारम्भ से सही विधि और सजगता के साथ किया जाए, तो कोई कठिनाई नहीं होगी।

अन्तर्मौन का प्रारम्भिक अभ्यास

अन्तर्मौन के अभ्यास को चरणबद्ध तरीके से करना आवश्यक है। प्रत्येक चरण व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से तैयार करता है। 

प्रथम चरण – मानसिक विश्रान्ति  

आरामदायक आसन में बैठें। रीढ़ की हड्डी सीधी रहे। आँखें बन्द करें और शरीर के प्रत्येक अंग को शिथिल करें – पैर, हाथ, कंधे, गर्दन, मस्तक। अनुभव करें कि आप पूर्णतः आराम की अवस्था में हैं। ललाट के पीछे आन्तरिक अन्धकार पर दृष्टि डालें। कुछ लोगों को वहाँ प्रकाश, तारा या अन्धकार दिखाई दे सकता है। विशेष ध्यान दें: विचार आएँ तो उन्हें आने दें। किसी भी विचार के साथ उलझें नहीं। आप केवल द्रष्टा हैं। विचारों का साक्षी भाव – मन में उत्पन्न विचारों का निरीक्षण करें। अच्छे और बुरे विचारों से प्रभावित न हों। उन्हें रोकने, दूर करने या बदलने का प्रयास न करें। जैसे मालगाड़ी आपके सामने से गुजरती है, वैसे विचारों को सहज रूप से बहने दें। यह अभ्यास मानसिक सजगता और ध्यान की प्रारंभिक क्षमता विकसित करता है। विचारों का आत्मनिरीक्षण – अपने विचारों के प्रति सजग रहें। लगातार चेतना बनाए रखें – ‘मैं सोच रहा हूँ’। विचारों के प्रवाह का निरीक्षण करें। किसी विचार में बहकर उसके प्रभाव में न आएँ। इस अभ्यास से मन की अनियंत्रित लहरों को नियंत्रित करना और मानसिक संतुलन बनाए रखना सीखते हैं।

द्वितीय चरण: विचार नियमन और अभ्यास

अन्तर्मौन का दूसरा चरण विचारों के सक्रिय नियमन का है। विचार उत्पन्न करना: अपनी इच्छा से किसी विशेष विचार का निर्माण करें। उदाहरण: ईर्ष्या, क्रोध, भय या लालच। विचार का अनुभव करना: उस विचार को कुछ समय के लिए महसूस करें।अनुभव करें कि वह विचार आपके मन में कैसे उपस्थित होता है। विचार को हटाना: मानसिक शक्ति और इच्छाशक्ति से उस विचार को पूरी तरह हटा दें। इस अभ्यास से मन स्थूल विचारों से प्रभावित नहीं होगा। धीरे-धीरे आप मन के स्वामी बन जाते हैं और अनासक्त भाव विकसित होता है। महत्त्वपूर्ण: अच्छे विचारों का अभ्यास भी इसी तरह किया जा सकता है। परन्तु मन प्राकृतिक रूप से अच्छे विचारों को जल्दी भूल जाता है। इसलिए निम्न विचारों से अभ्यास करना अधिक चुनौतीपूर्ण और लाभकारी है।

तृतीय चरण: नींद और चेतना का संतुलन

ध्यान और अन्तर्मौन के अभ्यास में शुरुआती कठिनाई नींद और थकान होती है। यदि अभ्यास के समय नींद आए, तो प्राणायाम (कुम्भक) का अभ्यास करें। अनुपात 1:4:2 में तीन-चार बार। रात को हल्का भोजन करें और योगासन व प्राणायाम करें।आसन जैसे सर्वांगासन और शीर्षासन भी नींद को नियंत्रित करने में सहायक हैं। संतुलित चेतना बनाए रखने से आप ध्यान और अन्तर्मौन की गहरी अवस्था में प्रवेश कर सकते हैं।

चिदाकाश सजगता और सूक्ष्म अनुभव

आँखें बन्द कर ललाट के पीछे आन्तरिक आकाश (चिदाकाश) पर सजगता लाएँ। सूक्ष्म प्रकाश, तारे, ज्योति या आकृतियाँ दिखाई देंगी। इन्हें द्रष्टा भाव से देखें, विश्लेषण न करें। चिदाकाश में दिखाई देने वाले सूक्ष्म रूपों का निरीक्षण आपको सूक्ष्म मानसिक दृष्टि विकसित करने में सहायता करेगा।

अभ्यास का उद्देश्य: सूक्ष्म स्तर पर चेतना को विकसित करना और इष्टदेव के ध्यान की तैयारी करना। इष्टदेव ध्यान –  चिदाकाश में सूक्ष्म आकृतियाँ स्पष्ट होने पर इष्टदेव का ध्यान प्रारम्भ करें। सामान्य से विशेष की ओर कल्पना करें। ध्यान की वास्तविक अवस्था में आप गहन आन्तरिक शांति, मानसिक स्पष्टता और आध्यात्मिक अनुभूति प्राप्त करेंगे। यदि अभ्यास ईमानदारी से किया जाए, तो इष्टदेव का स्वरूप स्वतः आन्तरिक दृष्टि में प्रकट होगा।

अन्तर्मौन के नियमित अभ्यास के लाभ 

मानसिक शांति: विचारों की अनियंत्रित लहरों पर नियंत्रण। तनाव, चिंता और मानसिक थकान का नाश। सजगता: विचारों के प्रति सजग और साक्षी भाव। मानसिक सक्रियता और स्पष्टता। आध्यात्मिक। आध्यात्मिक विकास: ध्यान की वास्तविक अवस्था में प्रवेश। इष्टदेव का गहन और सूक्ष्म ध्यान। स्वास्थ्य लाभ: नींद, प्राणायाम और शारीरिक विश्रान्ति के माध्यम से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य।

सारांश और मार्गदर्शन

अन्तर्मौन का अभ्यास चरणबद्ध रूप से किया जाता है: शिथिलीकरण: शरीर और मन को पूर्ण रूप से विश्रान्त करना।साक्षी भाव: विचारों का निरीक्षण और उनका स्वामी बनना।विचार नियमन: इच्छानुसार विचार उत्पन्न करना, अनुभव करना और हटाना। चिदाकाश सजगता: सूक्ष्म आन्तरिक आकाश और आकृतियों का निरीक्षण। इष्टदेव ध्यान: अंतिम चरण में गहन ध्यान और आन्तरिक दर्शन।

अन्तर्मौन न केवल मानसिक शांति और तनाव मुक्ति देता है, बल्कि साधक को आध्यात्मिक विकास, चेतना की गहराई और जीवन में स्थायी शांति प्रदान करता है।

मानसिक और आध्यात्मिक विकास का मार्ग कठिन नहीं है। नियमित अभ्यास, सजगता और धैर्य से आप अन्तर्मौन में निपुण बन सकते हैं। यह अभ्यास केवल ध्यान का पूर्वाभ्यास नहीं, बल्कि जीवन की मानसिक और आध्यात्मिक कला सीखने का मार्ग है।

लेखक के ये अपने विचार हैं।

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