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समृद्ध राष्ट्र की कहानी कहते भारत के लक्ष्मी मंदिर

देशना जैन

भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में लक्ष्मी मंदिरों का विशेष स्थान है। देवी लक्ष्मी, जो समृद्धि, धन, सौभाग्य और शक्ति की प्रतीक हैं, के ये मंदिर न केवल धार्मिक केंद्र हैं, बल्कि स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने भी हैं। हिंदू धर्म में लक्ष्मी को विष्णु की अर्धांगिनी के रूप में पूजा जाता है, और ये मंदिर उनकी विभिन्न रूपों—जैसे महालक्ष्मी, पद्मावती, गजलक्ष्मी, अष्टलक्ष्मी आदि—को समर्पित हैं। भारत के विभिन्न कोनों में फैले ये मंदिर, दक्षिण से उत्तर तक, द्रविड़, नागर और चालुक्य शैलियों का प्रदर्शन करते हैं। इनकी स्थापना प्राचीन काल से चली आ रही है, जहां राजाओं, संतों और भक्तों ने इन्हें समृद्ध किया। दिवाली और नवरात्रि जैसे त्योहारों पर ये मंदिर भक्तों से पट जाते हैं, जहां प्रार्थना और उत्सव एक साथ फलते-फूलते हैं। ये मंदिर न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक संरक्षण का प्रतीक भी हैं। ये मंदिर समृद्ध राष्ट्र की कहानी कहते है और हमें भारतीय संस्कृति की विविधता और दिव्य ऊर्जा से परिचित कराते हैं, जहां प्रत्येक पत्थर में भक्ति की गूंज सुनाई देती है। 

महालक्ष्मी मंदिरकोल्हापुर (महाराष्ट्र)

कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर, जिसे अंबाबाई मंदिर भी कहा जाता है, भारत के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है। कहा जाता है कि 7वीं शताब्दी में चालुक्य राजा कर्णदेव ने इसका निर्माण कराया, और बाद में शिलाहार राजा भोज द्वितीय ने इसका पुनर्निर्माण किया। देवी यहां महालक्ष्मी के रूप में विराजमान हैं — एक ऐसी माता जो केवल धन ही नहीं, बल्कि शक्ति और करुणा का भी आशीर्वाद देती हैं। काले पत्थरों से बना यह मंदिर हेमाडपंथी शैली का अद्भुत उदाहरण है। इसकी नक्काशियों में देवत्व की झलक मिलती है। पश्चिममुखी देवी की मूर्ति दुर्लभ है, जो “त्वरित वरदान” का प्रतीक मानी जाती है। नवरात्रि और किरणोत्सव के समय मंदिर में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है। कोल्हापुर का यह धाम आज भी भक्तों को आत्मविश्वास और समृद्धि की अनुभूति कराता है।

श्रीपुरम गोल्डन लक्ष्मी मंदिरवेल्लोर (तमिलनाडु)

अगर स्वर्ण की चमक और भक्ति का मिलन देखना हो, तो वेल्लोर का श्रीपुरम लक्ष्मी नारायणी मंदिर जाना चाहिए। 2007 में बना यह मंदिर लगभग 1500 किलो सोने से मढ़ा गया है, जो इसे विश्व का सबसे बड़ा स्वर्ण मंदिर बनाता है। 40 एकड़ में फैला यह मंदिर ‘श्री चक्र’ के आकार में बना है, जहां भक्तों को स्वर्णजटित मूर्तियों और उद्यानों के बीच आत्मिक शांति का अनुभव होता है। यहां की लक्ष्मी नारायणी की मूर्ति न केवल दर्शनीय है, बल्कि श्रद्धा का केंद्र भी। यह मंदिर सोने की आभा से नहीं, बल्कि भक्तों की आस्था से भी जगमगाता है। यह आधुनिक भारत में भी आध्यात्मिकता की शक्ति का प्रमाण है।

पद्मावती मंदिरतिरुचानूर (आंध्र प्रदेश)

तिरुपति की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक भक्त देवी पद्मावती के दर्शन न कर लें। कमल से उत्पन्न पद्मावती लक्ष्मी का ही अवतार मानी जाती हैं, जिनका विवाह स्वयं भगवान वेंकटेश्वर से हुआ था। यह मंदिर द्रविड़ शैली में बना है और इसका ऊंचा गोपुरम दूर से ही भक्तों को आकर्षित करता है। यहां की पद्मावती की स्वर्ण मूर्ति और परिसर का शांत वातावरण एक अलौकिक अनुभव देता है। तिरुपति से मात्र पाँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थान वैवाहिक सुख और समृद्धि का आशीर्वाद पाने वालों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

अष्टलक्ष्मी मंदिरचेन्नई (तमिलनाडु)

चेन्नई का बेसेंट नगर समुद्र तट न केवल सुंदर दृश्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां स्थित अष्टलक्ष्मी मंदिर भी अद्भुत है। यह मंदिर देवी लक्ष्मी के आठ रूपों — धन, संतति, विजया, धैर्य, गज, विद्य, धान्य और ऐश्वर्य — को समर्पित है। समुद्र की लहरों के साथ जब आरती की ध्वनि गूंजती है, तो वातावरण में अपार सकारात्मक ऊर्जा फैल जाती है। यह मंदिर केवल भक्ति का स्थल नहीं, बल्कि जीवन के आठ मूल्यों की स्मृति दिलाता है।

महालक्ष्मी मंदिरमुंबई (महाराष्ट्र)

मुंबई का महालक्ष्मी मंदिर अरब सागर के किनारे स्थित है, और शहर के व्यस्त जीवन में यह स्थान भक्ति की शरणस्थली जैसा है। कहा जाता है कि जब ब्रिटिश काल में समुद्र से तीन मूर्तियाँ निकलीं, तो उनके लिए यह मंदिर बनाया गया। यहां देवी महालक्ष्मी के साथ महाकाली और महासरस्वती भी विराजती हैं। दीपावली और नवरात्रि पर यहां का दृश्य अद्भुत होता है — फूलों, दीपों और आरती की ध्वनियों से पूरा वातावरण दैवीय बन जाता है। यह मंदिर बताता है कि भक्ति, चाहे महानगर की भीड़ में क्यों न हो, अपना मार्ग खोज ही लेती है।

लक्ष्मी देवी मंदिरडोड्डगद्दावल्ली (कर्नाटक)

कर्नाटक के हासन जिले में स्थित यह मंदिर 1113 ईस्वी में बना था और यह होयसल स्थापत्य का दुर्लभ उदाहरण है। चारों दिशाओं में गर्भगृह वाला यह ‘चतुश्कुट’ मंदिर अपने आप में अनूठा है। मुख्य देवी लक्ष्मी के साथ यहां काली, विष्णु और शिव की उपासना भी होती है — यह इस भूमि की धार्मिक समरसता का प्रतीक है। नवरात्रि के समय यहां का वातावरण संगीत और श्रद्धा से भर जाता है।

अष्टलक्ष्मी मंदिरहैदराबाद (तेलंगाना)

चेन्नई के मंदिर से प्रेरित यह अष्टलक्ष्मी मंदिर हैदराबाद में 1996 में बना। इसकी भव्य गोपुरम और देवी के आठ स्वरूपों की मूर्तियाँ इसे विशेष बनाती हैं। यहां की वास्तुकला दक्षिण भारत की समृद्ध परंपरा का दर्पण है।

वरलक्ष्मी मंदिरमंगलगिरि (आंध्र प्रदेश)

मंगलगिरि का यह मंदिर देवी लक्ष्मी और भगवान नरसिंह के संयुक्त रूप को समर्पित है। यहां की “पानक अभिषेक” परंपरा प्रसिद्ध है — जिसमें भगवान को गुड़ का रस अर्पित किया जाता है। ब्रह्मोत्सव के समय यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है।

गजलक्ष्मी मंदिरउज्जैन (मध्य प्रदेश)

महाकाल की नगरी उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर स्थित गजलक्ष्मी मंदिर देवी लक्ष्मी के गजलक्ष्मी रूप को समर्पित है। इस रूप में देवी हाथी पर विराजमान रहती हैं। जो ऐश्वर्य और सौभाग्य का प्रतीक है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में हुआ था और गुप्त व परमार शासकों ने इसका विस्तार कराया। नागर शैली में बने इस मंदिर का गर्भगृह सरल होते हुए भी भव्य है। दीपावली और नवरात्रि पर यहां विशेष पूजा-अभिषेक होते हैं। गजलक्ष्मी मंदिर उज्जैन की आध्यात्मिक पहचान है, जो भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देता है। महाकालेश्वर और गजलक्ष्मी — दोनों मिलकर उज्जैन को पूर्णता प्रदान करते हैं।

महालक्ष्मी मंदिररतलाम (मध्य प्रदेश)

रतलाम का महालक्ष्मी मंदिर अपनी अनोखी परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। दीपावली के समय भक्त अपने सोने-चांदी के आभूषण और नकदी देवी को अर्पित करते हैं। लाखों की यह सजावट न केवल भव्यता का प्रदर्शन है, बल्कि विश्वास का उत्सव भी है। यह परंपरा दर्शाती है कि सच्ची लक्ष्मी वही है, जो लोककल्याण में प्रयुक्त हो। नवरात्रि और दीपावली पर यहां का दृश्य मन मोह लेता है।

लक्ष्मी नारायण मंदिरओरछा (मध्य प्रदेश)

ओरछा का यह मंदिर अपने स्थापत्य और रहस्यमयी इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। बुंदेला राजा बिर सिंह देव ने 1622 में इसे बनवाया था। मंदिर किले जैसी संरचना में बना है और इसकी दीवारों पर सुंदर भित्तिचित्र अंकित हैं। दीपावली की रात जब यहां आरती होती है, तो पूरा ओर्चा लोककला और भक्ति का जीवंत रूप बन जाता है।

लक्ष्मी मंदिरखजुराहो (मध्य प्रदेश)

खजुराहो समूह के मंदिरों में यह छोटा-सा मंदिर भी अपनी कला और सौंदर्य के लिए अद्वितीय है। 10वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर देवी लक्ष्मी को समर्पित है। इसकी भित्तियों पर उकेरी गई नक्काशियाँ प्राचीन भारतीय कला की सजीव झलक हैं। यहां के हर पत्थर में चंदेल युग की दिव्यता और शिल्पकार की भावना बसती है।


भारत के ये लक्ष्मी मंदिर केवल पूजा स्थल नहीं — वे हमारी आस्था, हमारी कला और हमारी संस्कृति के साक्षात प्रतीक हैं। कहीं स्वर्ण से झिलमिलाते, तो कहीं पत्थरों में गढ़े, ये मंदिर हमें याद दिलाते हैं कि सच्ची लक्ष्मी केवल धन में नहीं, बल्कि श्रद्धा, परिश्रम और करुणा में बसती है। दीपावली के इस पावन अवसर पर जब घर-घर दीप जलेंगे, तो आइए इन मंदिरों की स्मृति में हम भी अपने भीतर एक दीप जलाएं — भक्ति का, करुणा का और समृद्धि का।

लेखक के ये अपने विचार हैं।

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