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अंतर्राष्ट्रीय बिटिया दिवस – नारी चेतना, योग और आत्मविश्वास का संगम

महेश अग्रवाल

योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि बिटिया – सृष्टि की मधुर लय 11 अक्टूबर का दिन अंतर्राष्ट्रीय बिटिया दिवस  के रूप में विश्वभर में मनाया जाता है। यह दिन केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक संवेदना का जागरण है – वह संवेदना जो हर बेटी के अस्तित्व, उसकी गरिमा, उसकी भावनाओं, उसके अधिकारों और उसकी अस्मिता को समर्पित है। बेटी केवल एक परिवार की सदस्य नहीं, बल्कि समाज और संस्कृति के मूल्यबोध की जीवित प्रतीक है। उसके बिना न तो मानवता की निरंतरता सम्भव है, न ही सृष्टि की लय। मनुस्मृति में कहा गया है – “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।” अर्थात जहाँ नारी का आदर होता है, वहीं देवता निवास करते हैं। आज जब हम बेटी दिवस मनाते हैं, तो हमें यह भी स्मरण रखना चाहिए कि नारी सृजन की सहयात्री है, न केवल जीवन की जननी, बल्कि आत्मिक चेतना की वाहक भी है।

नारी और ब्रह्माण्ड की लयात्मकता

यह सृष्टि निरन्तर गति में है – पर्वतों का क्षरण, ऋतुओं का परिवर्तन, दिन-रात्रि का चक्र, सूर्य का उदय-अस्त, चन्द्रमा की कलाएँ – सब एक लय में बंधे हैं। यही लय “प्रकृति का संगीत” है। स्त्री शरीर, विशेषतः किशोरी का शरीर, इसी लय का जीवंत प्रतिबिम्ब है। उसका ऋतुस्राव, उसकी भावनाओं की तरंगें, उसकी ऊर्जा की उत्थित अवस्थाएँ – सब इसी ब्रह्माण्डीय लय से जुड़ी हैं। योग के अभ्यास से यह लय असंतुलन से संतुलन की ओर, भ्रम से बोध की ओर और व्याकुलता से स्थिरता की ओर प्रवाहित होती है। यही कारण है कि किशोरी अवस्था में योग का अभ्यास केवल व्यायाम नहीं, बल्कि आध्यात्मिक आत्म-संरक्षण की प्रक्रिया है।


किशोरी मन : परिवर्तन और पहचान का संघर्ष

किशोरावस्था वह संवेदनशील समय है जब एक बालिका बचपन से स्त्रीत्व की दहलीज पर पहुँचती है। यह समय भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक परिवर्तनों का होता है। इस अवस्था में – शरीर में हार्मोनल बदलाव, मन में द्वन्द्व, पहचान का संकट, सामाजिक अपेक्षाओं का दबाव, सब एक साथ प्रकट होते हैं। जहाँ बालकों को स्वतंत्रता का विस्तार मिलता है, वहीं बालिकाओं को मर्यादा और संकोच के घेरे में रखा जाता है। ऐसे में उनके भीतर भय, असुरक्षा, हीनता और भ्रम जैसी भावनाएँ उत्पन्न होने लगती हैं। यदि इस समय उन्हें योग, ध्यान और प्राणायाम का सान्निध्य मिले, तो यह उनकी भावनाओं को स्थिर करने, मन को स्पष्ट दिशा देने और आत्मविश्वास के प्रकाश को जगाने का कार्य करता है।


समाज की धारणा और बेटी का मनोविश्व

रूढ़िवादी समाजों में आज भी कई स्थानों पर बालिकाओं को “अति-संरक्षित” रखा जाता है। उन्हें लड़कों से संवाद या मित्रता करने से रोका जाता है। यह दृष्टिकोण प्राकृतिक जिज्ञासा को अपराध-बोध में बदल देता है। परिणामतः उनमें एक आंतरिक भय और अस्वाभाविक संकोच पनपता है, जो उनके व्यक्तित्व के विकास में बाधा बनता है। यही वह स्थिति है जहाँ योग का संतुलनकारी प्रभाव अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है। योग बालिका को यह समझाता है कि शरीर कोई लज्जा का कारण नहीं, बल्कि प्रकृति की अद्भुत रचना है – जिसे जागरूकता, श्रद्धा और प्रेम से देखा जाना चाहिए।


योग : किशोरी के आत्म-विकास का साधन

योग किशोरी के भीतर स्वयं की पहचान का द्वार खोलता है।आसनों के अभ्यास से शरीर सुगठित और ऊर्जावान बनता है।प्राणायाम से अंतःशक्ति का प्रवाह संतुलित होता है। ध्यान से मन में शांति, सहनशीलता और आत्म-बोध का विस्तार होता है।कुछ योग अभ्यास जो विशेष रूप से किशोरियों के लिए उपयोगी हैं – सूर्यनमस्कार – शरीर में रक्तसंचार बढ़ाता है, ऋतुस्राव को नियमित करता है, त्वचा को उज्ज्वल बनाता है।भुजंगासन, त्रिकोणासन, बद्धकोणासन –  श्रोणि क्षेत्र को सशक्त करते हैं, हार्मोन संतुलन बनाए रखते हैं। नाड़ीशोधन प्राणायाम – मानसिक संतुलन और एकाग्रता के लिए उत्तम। भ्रामरी प्राणायाम – तनाव, चिंता, चिड़चिड़ापन और अवसाद को दूर करता है। मंत्र-जप एवं ध्यान – आत्म-शुद्धि और आत्म-बल के लिए श्रेष्ठ उपाय। इन अभ्यासों के साथ योग की जीवन-दृष्टि बालिका को यह सिखाती है कि “मेरा शरीर मेरा मित्र है, मेरा साधन है – मेरा स्वामी नहीं।”


माता-पिता की भूमिका : सहयोग और संवेदना

किशोरी के जीवन में माता-पिता की भूमिका अत्यंत निर्णायक होती है। इस समय बेटी को आलोचना नहीं, बल्कि सुनने वाले कान और समझने वाला हृदय चाहिए। माँ यदि योग-संस्कृति को अपनाकर अपनी बेटी को इससे परिचित कराए तो यह उसके जीवन का सबसे मूल्यवान उपहार होगा। योग से प्राप्त होने वाला आत्म-संयम, विवेक और अंतःशक्ति उसकी आंतरिक असुरक्षा को दूर कर उसे आत्मनिर्भर और प्रकाशमान बनाते हैं।


बेटी और आध्यात्मिक चेतना

योग केवल शारीरिक क्रिया नहीं – यह आत्मा की यात्रा है। जब एक किशोरी योगाभ्यास करती है, तो धीरे-धीरे वह स्वयं की भीतरी शक्ति से जुड़ने लगती है। वह यह अनुभव करती है कि मैं केवल शरीर नहीं, चेतना हूँ। यही अनुभव उसके भीतर आध्यात्मिक आत्म-सम्मान का संचार करता है। योगिनी बनने की प्रक्रिया में वह न केवल स्वस्थ होती है, बल्कि सृजनशील, करुणामयी और आत्मविश्वासी नारी में रूपांतरित होती है। उसका व्यक्तित्व समाज में प्रकाश का दीपक बन जाता है – जहाँ से प्रेम, सहानुभूति और संतुलन का प्रकाश फैलता है।


स्वास्थ्य, हार्मोन और योग का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

किशोरी अवस्था में हार्मोनल असंतुलन से अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं – जैसे असमय ऋतुस्राव, वजन बढ़ना, मुंहासे, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन आदि। योग इन सबमें वैज्ञानिक रूप से लाभकारी सिद्ध हुआ है। सूर्यनमस्कार और पद्मासन – एंडोक्राइन ग्रंथियों को सक्रिय करते हैं। ध्यान – कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) को कम करता है। प्राणायाम – तंत्रिका तंत्र को सन्तुलित कर मन को शांत करता है। वैज्ञानिक अध्ययनों में सिद्ध हुआ है कि नियमित योगाभ्यास करने वाली किशोरियाँ अधिक सकारात्मक, प्रसन्न और आत्मविश्वासी होती हैं।


बेटी : संस्कार और समाज का प्रतिबिम्ब

एक बेटी जब सशक्त बनती है, तो पूरा परिवार, पूरा समाज सशक्त होता है। वह संस्कारों की वाहक, संवेदनाओं की संरक्षिका और मानवता की शिल्पकारिणी होती है। भारत में देवी शक्ति का आराधन केवल परम्परा नहीं – यह नारी के प्रति आभार है। योग की दृष्टि से प्रत्येक स्त्री शक्ति का प्रतीक है। बिना शक्ति के न तो शिव हैं, न ही सृजन। इसीलिए योग में कहा गया है – “शिवं बिना शक्त्या जडं भवति।” (शक्ति के बिना शिव भी निष्क्रिय हैं।)


बिटिया और आधुनिक चुनौतियाँ

आधुनिक समय में किशोरियाँ अनेक चुनौतियों से घिरी हैं – डिजिटल भ्रम, सोशल मीडिया की तुलना, फैशन के दबाव, शिक्षा और करियर का तनाव। इन सबके बीच योग उन्हें स्वयं से जुड़ने का समय देता है। यह उनके भीतर “मैं जैसा हूँ, वैसा ही पूर्ण हूँ” की भावना जाग्रत करता है। यह आत्म-स्वीकृति ही आत्म-विकास की पहली सीढ़ी है।


योग से बिटिया बने आत्मप्रकाशित

जब कोई बिटिया योग करती है, तो केवल उसका शरीर ही नहीं, उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व खिल उठता है। वह भीतर से आत्मनिर्भर, बाहर से आत्मविश्वासी और आचरण से सौम्य बनती है। उसकी हँसी में संतुलन, उसकी दृष्टि में प्रकाश और उसके कदमों में उद्देश्य होता है। ऐसी बिटिया जब समाज में चलती है, तो वह अपने साथ सद्भाव, सौंदर्य और संस्कारों की ऊर्जा फैलाती है।


बेटी का सम्मान, योग का प्रसार

अंतर्राष्ट्रीय बिटिया दिवस केवल एक दिन नहीं, बल्कि एक आंदोलन है – नारी चेतना, योग और आत्मविश्वास का। यह दिन हमें यह स्मरण कराता है कि – बेटी केवल जन्म देने की पात्र नहीं, बल्कि संस्कार देने की शक्ति है। योग केवल तन की क्रिया नहीं, बल्कि मन और आत्मा की जागृति है। जब बेटी योगिनी बनती है, तो समाज प्रकाशित होता है। आज आवश्यकता है कि प्रत्येक माता-पिता अपनी बिटिया को योग का संस्कार दें, ताकि वह केवल सफल नहीं, बल्कि संतुलित, सशक्त और आत्मप्रकाशित बने।

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