डाॅ. योगिता राठौड़
भारत वर्ष पर्वों की भूमि है। यहाँ प्रत्येक उत्सव केवल आनंद का अवसर नहीं, बल्कि सामाजिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का जीवंत प्रतीक है। इन्हीं में से एक प्रमुख पर्व है दीपावली — जो अंधकार पर प्रकाश, असत्य पर सत्य और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक मानी जाती है। यह केवल दीपों का त्योहार नहीं, बल्कि सद्भाव, समृद्धि और संस्कारों का उत्सव है, जो समाज में सकारात्मकता, प्रेम और नैतिकता का दीप प्रज्वलित करता है।
दीपावली का मूल अर्थ है — ‘दीपों की पंक्ति’। यह पर्व हमें बाहरी ही नहीं, बल्कि आंतरिक उजाले का भी संदेश देता है। रामायण के अनुसार, जब भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या लौटे, तब नगरवासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया। उसी क्षण से यह पर्व प्रकाश और उत्साह का प्रतीक बन गया। किंतु समय के साथ इस त्योहार का अर्थ केवल सजावट और भव्यता तक सीमित न रह जाए, इसके लिए हमें इसके सांस्कृतिक और मानवीय पक्ष को समझना आवश्यक है।

दीपावली का पहला संदेश है सद्भाव और एकता। यह पर्व जाति, वर्ग, धर्म या क्षेत्र की सीमाओं से परे सभी को एक सूत्र में बाँधता है। दीपक की लौ यह सिखाती है कि जैसे अनेक दीप मिलकर अंधकार को मिटाते हैं, वैसे ही समाज के सभी वर्ग जब एकजुट होते हैं तो किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं। दीपावली हमें यह भी याद दिलाती है कि सच्चा उत्सव तभी है जब उसमें सभी की भागीदारी हो — जब कोई अकेला न रहे, जब हर घर में आशा का दीप जल उठे।
इस पर्व का दूसरा महत्वपूर्ण आयाम है समृद्धि। धनतेरस से प्रारंभ होकर यह पर्व जीवन में लक्ष्मी अर्थात समृद्धि और सफलता का स्वागत करने का अवसर बन जाता है। किंतु वास्तविक समृद्धि केवल धन-दौलत से नहीं, बल्कि संतोष, नैतिकता और परिश्रम से आती है। आज जब भौतिकता और उपभोक्तावाद का प्रभाव बढ़ रहा है, तब दीपावली हमें सिखाती है कि सच्ची समृद्धि वह है जो दूसरों के जीवन में भी प्रकाश फैलाए। जरूरतमंदों की सहायता, सेवा कार्य, या किसी के चेहरे पर मुस्कान लाना — यही असली समृद्धि है।
तीसरा और सबसे गहरा पक्ष है संस्कारों का उत्सव। दीपावली के अवसर पर घरों की सफाई, सजावट, पूजा, परिवार का मिलन — यह सब हमारे संस्कारों की झलक है। यह त्योहार हमें अपने बड़ों का सम्मान, बच्चों को परंपराओं की शिक्षा और परिवार के महत्व को समझने का अवसर देता है। संस्कार ही वह दीप हैं जो हमारे व्यक्तित्व को उजाला देते हैं और जीवन को सार्थक बनाते हैं।
दीपावली का पर्यावरणीय और सामाजिक दृष्टिकोण भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज आवश्यकता है कि हम इस पर्व को ‘हरित दीपावली’ के रूप में मनाएँ — पटाखों के शोर और प्रदूषण से दूर, प्रेम और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता के साथ। मिट्टी के दीये जलाना, स्थानीय उत्पादों का उपयोग करना और अपने आस-पड़ोस की सफाई में सहयोग देना — ये छोटे-छोटे कदम समाज में बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं।
दीपावली का वास्तविक अर्थ बाहरी सजावट से कहीं गहरा है। यह आत्मचिंतन का समय भी है — अपने भीतर झाँकने का, मन के अंधकार को मिटाने का। जब हम अपने भीतर ईर्ष्या, अहंकार और क्रोध का नाश करते हैं, तभी वास्तविक दीपावली मनाते हैं। इस पर्व का उद्देश्य केवल घरों को नहीं, मन और समाज को भी प्रकाशित करना है।
आज के समय में जब प्रतिस्पर्धा और तनाव ने मानवीय संवेदनाओं को कमजोर कर दिया है, दीपावली हमें फिर से यह याद दिलाती है कि मनुष्य का असली सौंदर्य उसके विचारों और कर्मों की पवित्रता में है। एक दीपक की तरह हमें भी अपने कर्मों से समाज को रोशन करना चाहिए — यही इस पर्व का सबसे बड़ा संदेश है।
अंततः, दीपावली हमें यह प्रेरणा देती है कि जीवन का उद्देश्य केवल स्वयं के लिए जीना नहीं, बल्कि दूसरों के जीवन में भी प्रकाश भरना है। जब हर व्यक्ति अपने भीतर का दीप जलाएगा — सद्भाव का, समृद्धि का और संस्कारों का — तब सचमुच यह संसार उजाले से भर जाएगा।
निष्कर्षत: दीपावली केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों का प्रतीक है। यह हमें सिखाती है कि सच्चा उत्सव वह है जो दूसरों के जीवन में भी रोशनी लाए। आइए इस दीपावली, हम सब मिलकर सद्भाव के दीप जलाएँ, समृद्धि बाँटें और अपने संस्कारों से समाज को प्रकाशित करें।
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