महेश अग्रवाल
29 अक्टूबर एक ऐसा दिन जिसने मानव इतिहास की दिशा बदल दी। सन् 1969 में इसी दिन पहली बार दो कंप्यूटरों के बीच संदेश का आदान प्रदान हुआ और आरंभ हुआ एक नए युग का, इंटरनेट युग का! इंटरनेट आज मात्र तकनीकी खोज नहीं, बल्कि मानव मस्तिष्क की सामूहिक चेतना का प्रस्फुटन है। यह हमारे विचार, व्यवहार और जीवन के हर क्षेत्र को जोड़ने वाला एक सूक्ष्म जाल है। परंतु, जैसे हर शक्ति का उपयोग दो दिशाओं में संभव है वैसे ही इंटरनेट भी विवेक और संयम की परीक्षा लेता है। यदि इसका उपयोग योग दृष्टि से किया जाए, तो यह विज्ञान और अध्यात्म के मिलन का अद्भुत उदाहरण बन सकता है। योग जोड़ता है चेतना को चेतना से, और इंटरनेट जोड़ता है मन को मन से – पर दोनों का संतुलन ही सच्चा ज्ञान देता है।
*इंटरनेट का विकास ज्ञान जाल से चेतना जाल तक* सन् 1969 में अरपानेट नाम से शुरू हुई इस तकनीक ने सूचना और ऊर्जा के प्रवाह का ऐसा माध्यम दिया, जिसने सम्पूर्ण मानव सभ्यता को जोड़ दिया। आज इंटरनेट अरबों उपकरणों और आत्माओं के बीच संपर्क का सेतु है। परंतु यह केवल नेटवर्क नहीं यह योग की ही आधुनिक अभिव्यक्ति है। योग का अर्थ है जुड़ना, समन्वय करना, एक होना। इंटरनेट का भी सार यही है – जोड़ना और संवाद स्थापित करना। जहाँ इंटरनेट बाहरी यंत्रों को जोड़ता है, योग अंतर्यंत्र मन, प्राण और चेतना को जोड़ता है। इस दृष्टि से, इंटरनेट बुद्धि का आविष्कार है और योग आत्मा का प्रकाश।
*डिजिटल युग और जीवन की गति* आज इंटरनेट ने समय और दूरी दोनों को संकुचित कर दिया है।परंतु इसी के साथ मानव का अंतर-जगत बिखरने लगा है। लोग दिनभर कनेक्टेड हैं, पर स्वयं से डिसकनेक्टेड हैं। यह स्थिति तभी सुधर सकती है जब हम इंटरनेट के साथ-साथ इनर नेट से भी जुड़ें – वह आंतरिक नेटवर्क जो मनुष्य को उसकी आत्मा से जोड़ता है। सूचना का विस्तार हुआ है, पर अनुभूति का अभाव बढ़ा है। योग हमें अनुभूति से जोड़ता है वही सच्चा कनेक्शन है।
*डिजिटल युग में योग – शरीर, मन और चेतना का संतुलन*
इंटरनेट और शारीरिक स्वास्थ्य स्क्रीन युग की चुनौतियाँ – लंबे समय तक मोबाइल या कंप्यूटर पर बैठना आज सामान्य हो गया है, पर इससे शरीर की प्राकृतिक गति रुक गई है। रीढ़ की जकड़न, नेत्र तनाव, मोटापा, नींद की गड़बड़ी – ये सब डिजिटल युग के रोग हैं। *योगिक समाधान* योग शरीर और चेतना के बीच तालमेल बनाता है। सूर्य नमस्कार पूरे शरीर की गतिशीलता और स्फूर्ति के लिए।भुजंगासन, ताड़ासन, अर्धचक्रासन – रीढ़ और कंधों को संतुलित रखने के लिए। त्राटक और नेत्र क्रिया दृष्टि और मानसिक शांति के लिए। *डिजिटल ब्रेक योग* प्रत्येक घंटे में 5 मिनट का श्वास-ध्यान और स्ट्रेचिंग – शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है। यह योग की आधुनिक दिनचर्या है, जो ऑनलाइन मन को ऑफलाइन तनाव से मुक्त करती है।
*इंटरनेट और मानसिक स्वास्थ्य*
*सूचना की अधिकता* इंटरनेट ने ज्ञान का महासागर खोला है, परंतु मनुष्य उस जानकारी के बोझ तले दब गया है। हर समय मोबाइल की सूचनाएँ, नोटिफिकेशन और सोशल मीडिया की तुलना – मन को अस्थिर कर रही हैं। योग का प्रत्याहार (इंद्रिय नियंत्रण) और ध्यान (एकाग्रता) इस विषमता का उपचार है।मौन, श्वास और जागरूकता ही डिजिटल डिटॉक्स का सर्वोत्तम उपाय हैं। मन का नेटवर्क तभी स्थिर होता है जब श्वास शांत हो – योग यही सिखाता है कि श्वास में ही जीवन की गति छिपी है। डिजिटल तुलना का जाल आज व्यक्ति दूसरों की पोस्ट से स्वयं को मापने लगा है। योग सिखाता है – तुलना नहीं, स्वीकार्यता ही शांति का मार्ग है। ध्यान व्यक्ति को आत्म साक्षात्कार कराता है, जिससे उसका मूल्य स्वयं तय होता है – न कि इंटरनेट की स्वीकृतियों से।
*इंटरनेट और समाज* वसुधैव कुटुम्बकम् की तकनीकी अभिव्यक्ति इंटरनेट ने मानवता को एक सूत्र में बाँध दिया है। आज कोई भी विचार, योग-दर्शन या सत्संग कुछ ही क्षणों में विश्वभर में पहुँच जाता है। यह योग के सिद्धांत वसुधैव कुटुम्बकम् की आधुनिक परिणति है।
*लेकिन सावधानी भी आवश्यक* इंटरनेट पर जितनी सत्य सूचनाएँ हैं, उतने ही भ्रम और विकर्षण भी हैं। अतः आवश्यक है डिजिटल विवेक और साधना की दृष्टि। प्रौद्योगिकी तब तक वरदान है, जब तक वह मानवता की सेवा में है।
*इंटरनेट, योग और विभिन्न आयु वर्ग* बच्चे – बच्चों के लिए इंटरनेट ज्ञान का स्रोत है, परंतु विवेक का प्रशिक्षण आवश्यक है। योग अभ्यास – विशेषकर सूर्य नमस्कार, बाल ध्यान, और नाड़ी शोधन – उन्हें एकाग्रता और संयम सिखाते हैं। यदि बालक को ध्यान सिखाया जाए, तो हिंसा की जड़ स्वयं सूख जाएगी। युवा – युवा वर्ग इंटरनेट का सबसे सक्रिय उपयोगकर्ता है। यह पीढ़ी सृजनशीलता और ऊर्जा से परिपूर्ण है, परंतु अति-उत्तेजना इसे भटका सकती है। योग का स्वाध्याय, ब्रह्मचर्य और ध्यान युवाओं को भीतर से सशक्त बनाते हैं – ताकि तकनीक साधन बने, साध्य नहीं। बुजुर्ग – बुजुर्गों के लिए इंटरनेट ने दूरी मिटा दी है – अब वे परिवार से जुड़े रह सकते हैं, ऑनलाइन सत्संग और योग कक्षाओं से आनंद पा सकते हैं। योग के साथ यह तकनीक उन्हें मानसिक सक्रियता और आत्मसंतोष देती है।
*इंटरनेट और अध्यात्म* अध्यात्म का सार है – अंतर-संबंध की अनुभूति। इंटरनेट भी संबंधों का ताना-बाना है, परंतु यह बाह्य जगत का। योग हमें भीतर के नेटवर्क से जोड़ता है – जहाँ चेतना की तरंगें, विचार की ऊर्जा, और आत्मा की कंपनाएँ प्रवाहित होती हैं। जब व्यक्ति ध्यान करता है, तो वह इस इनर नेट से जुड़ता है – जहाँ ईश्वर का संदेश सदा ऑनलाइन रहता है। सच्चा इंटरनेट वह है, जो आत्मा को आत्मा से जोड़े। तकनीक नहीं, चेतना का संपर्क ही मानवता का भविष्य है।
*योग का संदेश डिजिटल युग के लिए* इंटरनेट सूचना देता है – योग अनुभूति देता है। इंटरनेट जोड़ता है लोगों को – योग जोड़ता है आत्मा को। इंटरनेट गति देता है – योग दिशा देता है। इंटरनेट की सहायता से अब योग का वैश्विक प्रसार हुआ है – ऑनलाइन योगकक्षाएँ, ध्यान सत्र, सत्संग, और शास्त्र अध्ययन – ये सब आधुनिक युग में योग का पुनर्जन्म हैं।
योग गुरु अग्रवाल नें बताया कि ध्यान मानव के उच्चतर विकास का साधन है। ध्यान योग विज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण और गूढ़ पक्ष है। यह केवल साधना नहीं, बल्कि आत्म-परिवर्तन का विज्ञान है। हजारों वर्षों से ऋषि-मुनियों ने ध्यान के विभिन्न अभ्यासों को सूत्रबद्ध किया है, जिनके माध्यम से व्यक्ति अपने भीतर की चेतना से जुड़ सकता है। योग के प्रारंभिक अभ्यास शरीर में ऐसा वातावरण बनाते हैं जहाँ ध्यान स्वतः घटित होने लगता है। जब व्यक्ति सही ढंग से ध्यान करना सीख लेता है, तो वह अपने विचारों, इच्छाओं और भावनाओं का स्वामी बन जाता है। ध्यान मानव के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास का साधन है। यह हमारे अस्तित्व के प्रत्येक आयाम में संतुलन और समरसता स्थापित करता है। जब हम ध्यान का अभ्यास करते हैं, तब हम अपने भीतर की सुप्त शक्तियों को जागृत करने की प्रक्रिया में प्रवृत्त होते हैं।
*वैज्ञानिक दृष्टि से ध्यान के प्रभाव* आधुनिक विज्ञान ने भी ध्यान के गहरे प्रभावों को स्वीकार किया है। अनुसंधानों से यह सिद्ध हुआ है कि ध्यान के दौरान शरीर में कई सकारात्मक परिवर्तन होते हैं – स्नायविक तंत्र शांत होता है, रक्तचाप संतुलित रहता है, अंतःस्रावी ग्रंथियाँ सक्रिय होती हैं और तनाव-हार्मोन का स्तर घटता है। ध्यान के समय शरीर बाहर से शांत होता है, किंतु भीतर गहन ऊर्जा का प्रवाह होता है जिसे आधुनिक उपकरणों द्वारा मापा जा सकता है।
वैज्ञानिकों ने यह भी पाया है कि ध्यानाभ्यास के दौरान शरीर में एक विद्युत-चुंबकीय ऊर्जा क्षेत्र निर्मित होता है। यह ऊर्जा तरंग केवल ध्यान करने वाले व्यक्ति तक सीमित नहीं रहती, बल्कि दूरस्थ व्यक्तियों तक भी संप्रेषित हो सकती है। प्रयोगों में यह देखा गया कि सैकड़ों मील की दूरी पर बैठे दो व्यक्ति ध्यान के माध्यम से ऊर्जा का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
योग गुरु महेश अग्रवाल नें इस अवसर पर ध्यान की सूक्ष्म ऊर्जा और रूपांतरण के बारे में बताया कि ध्यान केवल मानसिक शांति नहीं देता, बल्कि यह हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व में रूपांतरण लाता है। ध्यानावस्था में उत्पन्न ऊर्जा का प्रभाव शरीर, मन और भावनाओं तीनों स्तरों पर होता है। इससे व्यक्ति में संतुलन, स्थिरता और सहजता आती है। नियमित ध्यान से बुद्धि की गुणवत्ता, स्मरणशक्ति और भावनात्मक संतुलन में भी सुधार होता है, जो विशेष रूप से बच्चों और युवाओं के लिए अत्यंत उपयोगी है। ध्यान के माध्यम से हम अपनी चेतना के उच्चतर स्तरों तक पहुँच सकते हैं – जहाँ आत्मा, मन और ऊर्जा का एकत्व अनुभव होता है। यही वह अवस्था है जहाँ मनुष्य अपने भीतर के ईश्वरीय नेटवर्क से जुड़ता है – एक ऐसा नेटवर्क जो अनंत है, निराकार है और सदा सक्रिय रहता है। अर्थात् – इंटरनेट हमें बाहरी दुनिया से जोड़ता है, जबकि ध्यान हमें अपने भीतर की दुनिया से जोड़ता है। एक बाह्य संपर्क का विज्ञान है, दूसरा आत्म-संपर्क का। दोनों का समुचित संतुलन ही आधुनिक मनुष्य को सम्पूर्ण बनाता है।
*विज्ञान और चेतना का समन्वय* इंटरनेट का आधार है सिग्नल्स का प्रवाह, और योग का आधार है प्राण ऊर्जा का प्रवाह। जब इंटरनेट का नेटवर्क टूटता है, संवाद रुक जाता है। जब मन का नेटवर्क टूटता है, जीवन में आनंद रुक जाता है। योग इस इनर नेटवर्क को सशक्त बनाता है, ताकि चेतना और प्राण सदैव समन्वित रहें।
अंतर्राष्ट्रीय इंटरनेट दिवस हमें स्मरण कराता है – कि तकनीक का सर्वोत्तम उपयोग तभी है, जब वह मानव कल्याण और आत्म-जागरण का साधन बने। इंटरनेट से हम बाहरी संसार से जुड़ते हैं, योग से हम अंतर्यामी ब्रह्म से। दोनों के संतुलन से ही मनुष्य पूर्ण होता है। इंटरनेट मनुष्यों को जोड़ता है, योग आत्माओं को जोड़ता है – और जब दोनों मिलते हैं, तब विज्ञान और अध्यात्म का सच्चा युग आरंभ होता है।
लेखक के ये अपने विचार है।

















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