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रिज़र्वर्ड खुशियां

अंजली खेर

  खुशियां बटोरने के लिये ही तो आज हम सभी इतनी मशक्‍कत में लगे हुए हैं ।  हां ये बात और है कि प्रत्‍येक व्‍यक्ति की खुशियों का पैमाना अलग अलग होता हैं, किसी को आरामतलब जिंदगी तो किसी को बेशुमार दौलत, तो किसी को भारी बैंक बैलेंस खुशियों से दो चार किया करता हैं ।
        पर मैं अपनी कहूं तो बेइंतहा प्‍यार करने वाली सहचरी और दो प्‍यारे –प्‍यारे बच्‍चों के चेहरे की मुस्‍कान के साथ गृहस्‍थी की गाड़ी को चलाने लायक गिनती का पैसा होना ही मेरी खुशियों का ख़ज़ाना रहा हैं ।
      बच्‍चों-पत्नी का जन्‍मदिन हो या फिर हमारी शादी की सालगिरह, इन सभी आयोजनों के लिए इसी रेस्‍टॉरेंट की यही टेबल मैं पहले से ही रिज़र्व कर दिया करता । रेस्‍टॉरेंट में सबकी पसंद का खाना आर्डर किया जाता और खाना आने तक बच्‍चे रेस्‍टॉरेंट के एक कोने में बनी फिसलपट्टी, सी-सॉ झूला झूल लिया  करते । मेरी पत्‍नी को यहां के लच्‍छा पराठे और पनीर भुर्जी बहुत भाती थी ।
      बच्‍चे तो पढ़लिखकर घोंसला छोड़, जिंदगी की ऊंची उडान भरने कब दूर निकल गये, पता ही नहीं चला । बच्‍चों की कमी को कुछ हद तक दूर करने के लिए पत्‍नी ने गरीब बच्‍चों को घर पर पढ़ाना शुरू किया,  धीरे-धीरे बच्‍चों की संख्‍या बढ़ती गई । बच्‍चे जब एक कक्षा पास कर अगली कक्षा में पहुंच जाते तो पत्‍नी के चेहरे की खुशी देखते ही बनती थी, कुछ बच्‍चे तो दसवीं कक्षा तक पास हो गये थे ।

कहते हैं ना कि हमारे जीवन की डोर ऊपरवाले के हाथ बंधी हैं, ऐसे ही एक दिन मेरे जीवन के हर सुख-दुख, धूंप-छांव में कदमताल मिलाकर चलने वाली मेरी संगिनी सारे बंधन छोड़कर, मुझे अपनी बेशकीमती-खुशनुमा यादों से सहारे जीने के लिए हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर चली गई थी ।
परिस्थितियों पर किसी का वश नहीं इसीलिए दिल को टीस देने वाली बातों को भुलाकर, परिवार के साथ बिताये स्‍वर्णिम पलों की यादों को संजोने के लिए मैने अपनी पत्‍नी के उन सभी विद्यार्थियों को उसके और बच्‍चों के जन्‍मदिन पर उसी रेस्‍टोरेंट में आमंत्रित कर, उसी रिज़र्वर्ड टेबल पर ट्रीट देने का सिलसिला बदस्‍तूर जारी रख मैने अपनी खुशियों  को हमेशा के लिये रिजर्वर्ड कर रखा है ।


सी-206, जीवन विहार  अन्‍नपूर्णा बिल्डिंग के पास
पी एंड टी चौराहा, कोटरा रोड भोपाल- 462 003

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