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माँ

राजेन्‍द्र त्‍यागी

मेरे सामने एक दीवार है।
दीवार पर एक चित्र टँगा है।
चित्र पर फूल माला लटकी है।
कहते हैं, वह मेरी माँ का चित्र है।
मेरे भी एक माँ थी!

मैं असमंजस में हूँ!
माँ अतीत हो गई !
मगर उसका चित्र वर्तमान रह गया!
किस प्रकार संभव है, यह?
अतीत का चित्र वर्तमान किस प्रकार हो सकता है?

माँ का शरीर जर्जर हो गया था।
उसने शरीर ही तो बदला था!
क्या वस्त्र भर बदलने से,
अस्तित्व परिवर्तित हो जाता है?
परिचय बदल जाता है?
रिश्ते बदल जाते हैं?

क्या वह आज किसी और की माँ हो गई?
कल तक मेरी माँ थी, आज मेरी नहीं है?
माँ तो माँ है!
कल भी थी, आज भी है!
वह कल भी मेरी माँ थी,
आज भी मेरी ही माँ है।

जिस क्षण मेरा जन्म हुआ था,
उस क्षण ही माँ जन्मी थी!
जिस क्षण मेरी मृत्यु होगी,
माँ भी उसी क्षण मर जाएगी!
जब तक मैं हूँ, माँ ‘है’ रहेगी!
अतीत नहीं, वर्तमान रहेगी!

माँ तो माँ है!
वह कल भी थी,आज भी है!
माँ वर्तमान है, वर्तमान ही रहेगी!

                      

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