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कला विविधताओं का प्रदर्शन ‘गमक’

भोपाल। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा श्री अरविन्द कुमार और साथी, सीधी द्वारा ‘बघेली गायन’ एवं विनोद कलमे और साथी, हरदा द्वारा कोरकू जनजातीय ‘गदली’ नृत्य की प्रस्तुति हुई।
प्रस्तुति की शुरुआत श्री अरविन्द कुमार और साथियों द्वारा ‘बघेली गायन’ से हुई।जिसमें बघेल खण्ड अंचल के पारंपरिक एवं विभिन्न अवसरों पर गए जाने वाले गीतों की प्रस्तुति दी।गायन की शुरुआत अनुष्ठानिक सुमिरनी- दर्शन दो महरनियां, श्रम गीत (टप्पा)- बुलट वन जा राजा, कोलदादरा- अस मन लागये इन्हें रहिजाय, संस्कार गीत (विआह)- बखरी ता भली बनवाये, संस्कार गीत (सोहाग)- अरे चिरई त सोई गई, अहिराई विरही- ऊंचे पर्वत वसी मैहर की शारदा भवानी, बसंत गीत- उपजई हीरा मोती, फाग चौताल- कहे विप्र सुदामा की नारी, फाग- मोहि छोड़ विरानी आस एवं राई फाग- रंग रस मा भरी आदि बघेली गीत प्रस्तुत किये।
प्रस्तुति में मंच पर- हारमोनियम पर- श्री अरविन्द कुमार पटेल स्वयं, कोरस में- माधुरी तिवारी, नीलम तिवारी व दीप्ती पटेल, ढोलक पर श्री बृहस्पति पटेल (सूरदासजी), नगड़िया पर- श्री रामानुज, बैंजो पर- श्री रामकिशोर सिंह एवं मजीरा और झेला पर श्री सुरेश कुमार ने संगत दी।
अरविंद कुमार पटेल अपने संगीत की सुरुआत घर से ही की, आपने ने खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय से (MA)लोकसंगीत स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है, आप आकाशवाणी और देश के विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों में अपनी प्रस्तुतियां दे चुके हैं, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली द्वारा आयोजित भारत रंग महोत्सव, जश्ने बचपन मे संगीत दे चुके हैं।
दूसरी प्रस्तुई श्री विनोद कलमे और साथियों द्वारा कोरकू जनजातीय नृत्य ‘गदली’ की हुई। मंच पर वादन- ढोलक- श्री नारायण व रामनाथ, बाँसुरी- मंशाराम और अनोखी लाल तथा ताराचंद्र, भगवान्, पहलवान, अमरदास, श्रवण, धनन्जय, आरती, अंगूरी पूजा, अंजली एवं अनिता ने नृत्य में सहभागिता निभाई।
गदली नृत्य- की वेशभूषा अत्यधिक सादगीयुक्त और सुरूचिपूर्ण होती है। पुरूष सफेद रंग पसंद करते हैं, सिर पगड़ी और कलंगी पुरूष नर्तक खास तौर से लगाते हैं। स्त्रियाँ लाल, हरी, नीली, पीली रंग की किनारी वाली साड़ी पहनती है। स्त्री के एक हाथ में चिटकोला होता है, जिसे वे लय और ताल के साथ नृत्य करती हुई बजाती हैं। पुरूषों के हाथ में बांसुरी होती है, जिसकी लय के साथ चिटकोला बजाते हुए महिलाएँ नृत्य करती हैं। कोरकू नृत्यों में ढोलक की प्रमुख भूमिका होती है। ढोलक की लय और ताल पर कोरकू हाथों और पैरों की विभिन्न मुद्राओं को बनाते हुए गोल घेरे में नृत्य करते हैं।
गतिविधियों का सजीव प्रसारण संग्रहालय के सोशल मीडिया प्लेटफार्म यूट्यूब http://bit.ly/culturempYT और फेसबुक पेज https://www.facebook.com/culturempbpl/live/ पर भी किया गया।

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