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रवीन्द्र भवन सभागार में हुआ महानाट्य अहिल्याबाई होलकर का मंचन

समाज सेवा, युद्ध कौशल में निपुण अहिल्या को न्यायनिष्ठा और प्रजावत्सला होने के कारण मिली थी लोकमाता की संज्ञा

भोपाल। लोकमाता अहिल्याबाई होलकर पर रविवार को रवींद्र भवन के अंजनी सभागार में महानाट्य अहिल्याबाई होलकर जीवन, अवदान और वैभव का गान मंचित हुआ। प्रजावत्सला, न्यायनिष्ठा और सुशासन की प्रेरक लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के जीवन पर केन्द्रित इस महानाट्य का निर्देशन प्रियंका शक्ति ठाकुर ने किया जिसका लेखन वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. साधना बलवटे ने किया। विश्वरंग के अंतर्गत आयोजित इस नाटक में कलाकारों ने अपने अभिनय के माध्यम से लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन दर्शन को बड़ी ही खूबसूरती से मंच पर प्रस्तुत किया। लगभग 120 मिनट अवधि वाली इस प्रस्तुति में लगभग 30 कलाकारों ने अलग-अलग दृश्यों में प्रस्तुति को संजोया और अहिल्याबाई के विविध पक्षों को दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया।

 

80 कलाकारों ने दी प्रस्तुति


महानाट्य में कुल 80 कलाकारों ने लगभग 2 घंटे में 18वी सदी की नायिका लोकमाता अहिल्याबाई की जीवन यात्रा, उनकी न्याय व्यवस्था, सुशासन सहित उनके शौर्य और पराक्रम से जुड़े कार्यों को अपने अभिनय के माध्यम से बहुत ही सधे हुए अंदाज में मंच पर प्रस्तुत किया। कलाकारों के अभिनय को लाइट एंड साउंड शो के तालमेल ने और अत्यधिक प्रभावी बनाया। खास बात यह है कि इस नाटक में निर्देशक प्रियंका शक्ति ठाकुर खुद अहिल्याबाई के किरदार में दिखाई दीं।

 

इन कार्यों को अभिनय से किया जीवंत

 
प्रस्तुति में कलाकारों ने कुल 24 दृश्यों के माध्यम से लोकमाता अहिल्याबाई के राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों को भी मंच पर जीवंत किया गया। छोटी अहिल्या की आस्था से सराबोर शिव-भक्ति, मल्हारराव होलकर द्वारा बहू अहिल्या की प्रशासन में सहभागिता, अहिल्या की न्यायशीलता अहिल्या का वीरांगना का रूप, अहिल्या का लोकमाता का स्वरूप, देवी अहिल्याबाई द्वारा समाज उत्थान, आर्थिक विकास और मंदिरों का जीर्णोद्धार, घाटों का निर्माण, अन्न क्षेत्र और प्याऊ के संपूर्ण व्यवस्था आदि उनके प्रमुख और स्मरणीय कार्य हैं। इन सभी पक्षों को एक-एक के बाद कलाकारों ने मंच पर जीवंत किया।

 

बचपन से लेकर अंतिम क्षणों तक के दृश्य दिखाये


महानाट्य में कलाकारों ने अहिल्याबाई के बचपन से लेकर समाज सेवा के कार्य में सक्रिय, युद्ध कौशल में निपुण, परिवार को साथ लेकर चलने तथा राज्य संचालन में कुशल अहिल्या की कहानी को प्रदर्शित किया। महानाट्य में दिखाया गया कि किस तरह से अहिल्या महाराष्ट्र में जन्म के पश्चात विवाह उपरांत होलकर राज्य पहुंची और समय के साथ-साथ परिवार पर आई तमाम चुनौतियों के बावजूद उनका संबल नहीं टूटा। उन्होंने भगवान शिव को अपना आराध्य मानते हुए उनकी इच्छानुसार पूरे राज्य के संचालन का जिम्मा लिया। कुछ इसी तरह के प्रसंगों के साथ महानाट्य आगे बढ़ता है और अपने अंतिम पड़ाव तक पहुंचता है जहां लोग अहिल्याबाई के कार्यों, कुशलता और न्यायप्रियता के लिए उन्हें लोकमाता की संज्ञा देते हैं।

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