मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा रतलाम में अखिल भारतीय सूफ़ी मुशायरा आयोजित 

रतलाम। मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग द्वारा शैख़ क़ुरैशी उर्स कमेटी के सहयोग से”अखिल भारतीय सूफ़ी मुशायरा”  20 नवम्बर, 2024 को रात 10 बजे से वक़्फ़ दरगाह, मदार चिल्ला, शैरनीपुरा, रतलाम में आयोजित किया गया। इस मुशायरे में स्थानीय कन्वीनर सईद क़ुरैशी (अध्यक्ष, शैख़ क़ुरैशी उर्स कमेटी) का सहयोग भी शामिल रहा। 

मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने कार्यक्रम के बारे में बताते हुए कहा कि मुशायरे हमारी संस्कृति का हिस्सा रहे हैं और उर्दू भाषा के विकास में मुशायरों का महत्तवपूर्ण योगदान रहा है, मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी एवं संस्कृति विभाग का यह प्रयास रहता है कि प्रदेश के विभिन्न ज़िलों में मुशायरे आयोजित करे जिससे वहाँ के शायरों को भी अंतरराष्ट्रीय ख्याति शायरों के साथ मंच साझा करने का अवसर मिले।रतलाम में मुशायरों की परम्परा काफ़ी समय से चली आ रही जिसमें मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी का सहयोग शामिल रहता है। इसी सिलसिले के तहत आज का सूफ़ी मुशायरा आयोजित किया गया है। भारत अध्यात्म की भूमि है इसलिए यहां सूफ़ी वाद फला फूला। हम सभी जानते हैं कि सामाजिक समरसता को क़ायम करने में सूफ़ी संतों की महत्पूर्ण भूमिका रही है। इस मुशायरे के आयोजन का एक उद्देश्य सूफ़ी संतों की शिक्षाओं के ज़रिए आपस में मोहब्बत का संदेश पहुंचाना है।

आयोजित मुशायरे की अध्यक्षता  सुप्रसिद्ध शायर नईम अख़्तर ख़ादमी ने की एवं संचालन मन्नान फ़राज़ ने अंजाम दिये। जिन शायरों ने कलाम पेश किया उनके नाम और अशआर इस प्रकार हैं 

तेरा हो कर जो चल रहा होगा

कितना खुदको बदल रहा होगा

आईना बे सबब नहीं हैरां

कोई चेहरा बदल रहा होगा 

नईम अख्तर ख़ादमी बुरहानपुर

तू भी आदमी मैं भी आदमी तो ये नफ़रतों की है बात क्यूँ 

न तिरा ख़ुदा कोई और है न मिरा ख़ुदा कोई और है 

अफ़ज़ल मंगलोरी रुड़की 

लाख दुनिया की बद निगाह में हूँ 

क्यूँ डरूं मैं तिरी पनाह में हूँ  गर्दिशो आओ और कुछ मांगो

मैं क़लंदर की बारगाह में हूँ 

हाफ़िज़ मो रफीक़ मोहसिन इंदौर 

हरेक बात पे बस एक ही बहाना है

झुका के नज़रें उन्हें सिर्फ़ मुस्कराना है

ग़मों की धूप वहाँ तक कभी नहीं आती

जहाँ जहाँ तेरी रहमत का शामियाना है

अतुल अजनबी ग्वालियर 

अपनी प्यास को लेकर किसके पास जाता मैं 

जिनके पास दरिया था उनसे ही लड़ाई थी 

वारिस वारसी दिल्ली 

हज़ार आफ़तों से बचे रहते हैं

जो सुनते ज़्यादा हैं कम बोलते हैं

शरफ़ नानपारवी 

चराग़ खौफ़ ज़दा हैं हवा बिगाड़ेगी

अंधेरी रात है सबका मज़ा बिगाड़ेगी

मिरा तो काम अंधेरे में जगमगाना है

हवा चली भी तो जुगनू का क्या बिगाड़ेगी

अब्दुल सलाम खोकर रतलाम 

मुनव्वर दिल की धड़कन हो तो साँसें पाक हो जाएँ 

मक़ाम ए  हू की  बरकत से नमाज़ें पाक हो जाएँ 

जमाल ए यार का सुरमा अगर मिल जाए किस्मत से 

निदामत  की हों  बरसातें ये आँखें पाक हो जाएँ ।

मन्नान फ़राज़ जबलपुर 

हक़ीक़तों की तरह  तब ही पढ़ सकोगे मुझे

वरक़ वरक़  हूं  किसी दिन किताब हो जाऊँ

निकहत अमरोहवी

उठता हूं सुब्ह – दम मैं इसी आरजू के साथ

देखूं तिरी किताब मुकम्मल वुज़ू के साथ

सिद्दीक़ रतलामी रतलाम 

सच कहता हूं खुश रहने का दूजा नाम मोहब्बत है 

इस दुनिया में कुछ करने को है तो काम मोहब्बत है 

टोपी और तिलक वाला झगड़ा जिनका है वही करें 

अपनी तो हर सुबह, दुपहरी हर एक शाम मोहब्बत है

धर्मेन्द्र सोलंकी, भोपाल

सराबों का हक़ीक़त से कोई रिश्ता नहीं होता

हथेली की लकीरों में मुक़द्दर देखने वाले

फ़ज़ल हयात, जावरा

ज़बां पर बंदिशें ख़ामोश लब थे 

मगर आँखों में गोयाई बहुत थी 

सरवर हबीब, भोपाल 

कार्यक्रम के अंत में इस मुशायरे कन्वीनर सईद क़ुरैशी ने सभी श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।

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