आशीष खरे
मूर्ख हैं वे लोग जो,
संतान के न होने पर रोया करते हैं l
बुढ़ापे में वही नि:संतान दंपति,
सर्व सुखी कहलाते हैं l
चार चार औलाद को पैदा करने वाले,
कोन सी ज़ंग जीत लेते हैं ?
बुढापे में कोन करेगा देखभाल,
इसी चिंता में घुले जाते हैं l
हर औलाद बूढे माँ बाप की
सेवा करने से बचना चाहते हैं ,
इस मसले पर चुप्पी साद कर नजर चुराया करते हैं l
खुद का बच्चा अगर जाए बीमार,
लाखों कर देते हैं चुटकियों में खर्च l
माता-पिता के इलाज के नाम पर,
वही औलादे फकीरी का रोना रोते हैं l
धन सम्पत्ति वालों की
कुछ तो पूछ परख हो जाती है,
वर्ना बची जिंदगी वृद्ध आश्रम में बिताना पड़ती हैl
सम्पति की लालच में कुछ बेटे रख लेते हैं,
पर वे भी मुक्ति पाने के लिए सारे पैंतरे आजमाया करते हैं l
य़ह शाश्वत सच है कि छोटे बेटे के हिस्से में ही
माँ बाप आया करते हैं l
उसके बाद तो शेष दर्शन करने की ऑपचरिकता निभाने आते हैं l
चिंता में रिश्तेदारों के सामने,
घड़ियाली आंसू बहाते हैं l
फिक्र है कितनी उनको
वे लोगों को जतलाते हैं,
जाते जाते तानों के साथ उपदेश कई सुना जाते हैं l
कार्यक्रम अधिकारी
दूरदर्शन केंद्र,
भुवनेश्वर
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