भोपाल। जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा विगत वर्ष से टॉकिंग डिक्शनरी बनाने का अभिनव कार्य प्रारंभ किया है। इसके अंतर्गत पूर्व में कुचबंधिया (गिहारा पारसी) बेड़िया, बंजारा, गाडुलिया लोहार और पारधी घुमंतू और विमुक्त समदायों की भाषाओं में टाँकिग डिक्शनरी बन चुकी है। इस वर्ष नट कलंदर, बांछड़ा कंजर और कालबेलिया समुदायों की भाषाओं में यह कार्य चल रहा है। डिक्शनरी बनाने का प्रशिक्षण लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर डॉ कविता रस्तोगी और उनकी संस्था सेल के विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रदान किया गया। इस वर्ष उक्त पाँच समुदायों की टाकिंग डिक्शनरी पूर्ण करने का लक्ष्य है। समापन पूर्व पचमढ़ी के शासकीय महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो शुभेन्दु शेखर ने कहा कि अकादमी द्वारा उन उपेक्षित भाषाओं को स्वर दिया जा रहा है जिनकी ओर पूर्व में ध्यान नहीं दिया गया।
समापन वक्तव्य में प्रमुख प्रशिक्षक प्रो. कविता रस्तोगी ने कहा कि मध्यप्रदेश शासन द्वारा की गई पहल भाषाई इतिहास में सदैव उल्लेखनीय रहेगी। विश्व भर में भाषाओं के संरक्षण संवर्धन के लिए टॉकिंग डिक्शनरी के रूप में एक नई चेतना उत्पन्न हुई है। विलुप्तप्राय और संकट ग्रस्त भाषाएँ इससे वैज्ञानिक तरीके से संरक्षित हो सकेंगी। आभार वक्तव्य देते हुए अकादमी निदेशक डॉ. धर्मेंद्र पारे ने कहा है कि घुमन्तू समुदायों की सबसे बड़ी पहचान उनकी विशिष्ट भाषा है। भाषा के संसार में एक शब्द का बचा रहना उस संस्कृति का बचा रहना है। अकादमी बोलियों के विकास के लिए प्रारंभ से ही कटिबद्ध है। शिविर में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के महाविद्यालयीन प्राध्यापकों और शालेय शिक्षकों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया है।
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