भोपाल। मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग द्वारा सूफ़ी सूफ़ियाना में जश्न-ए-चराग़ाॅं के अंतर्गत रक़्से जुनूँ : नृत्य प्रस्तुति, नग़मा-ए-रूह : सांगीतिक प्रस्तुति एवं व्याख्यान का आयोजन 28 अक्टूबर, 2025 को सायं 6.30 बजे अंजनी सभागृह, रवीन्द्र भवन पॉलिटेक्निक चौराहा, भोपाल में किया गया।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में मप्र उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ नुसरत मेहदी ने कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा आयोजित “जश्न-ए-चराग़ाॅं” का उद्देश्य केवल एक सांस्कृतिक आयोजन भर नहीं है, बल्कि यह आत्मा की रौशनी और मानवता के साझा मूल्यों को उजागर करने का प्रयास है। ‘चराग़-ए-रूहानियत’ की थीम के माध्यम से हम यह संदेश देना चाहते हैं कि सच्ची रौशनी भीतर से आती है वह रौशनी जो प्रेम, करुणा, सह-अस्तित्व और ज्ञान से संसार को प्रकाशित करती है। सूफ़ी कलाम, ग़ज़ल और सूफ़ी रक़्स के ज़रिए यह कार्यक्रम इंसान और ख़ुदा, कलाकार और समाज, और दिल और रूह के बीच संवाद का सेतु बनता है। भारतीय ज्ञान परंपराएं और सूफ़ी परंपराएं इन संदेशों से ओतप्रोत हैं।”
डॉ नुसरत मेहदी के स्वागत उद्बोधन के बाद प्रथम सत्र में व्याख्यान के तहत “उर्दू साहित्य में चराग़े रूहानियत” विषय पर लखनऊ से पधारे सुप्रसिद्ध सूफ़ी शायर एवं साहित्यकार ज़िया अल्वी ने अपने विचार व्यक्त किये। उन्होेंने कहा कि आज की शाम “जश्न-ए-चराग़ां” है-
बहुत कम ऐसी महफ़िलें होती हैं जहां “जश्न-ए-चराग़ां” भी हो और आवाज़ के मख़मली दिए भी रौशन हों और नृत्य के मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्य भी हों
अभी दिवाली के दियों का प्रकाश आंखों से ओझल नहीं हुआ है- कुछ दिन पहले शहरों शहरों में और चप्पे चप्पे पर जश्न-ए-चराग़ां हो रहा था- और इस चराग़ां यानी दिवाली के महत्व से हर व्यक्ति परिचित है।उर्दू साहित्य में रूहानियत के चराग़ आस्मानी सितारों की तरह रौशन हैं एवं रूहानियत के चराग़ों से उर्दू साहित्य का दामन कई सदियों से चमक रहा है और इसमें दिन प्रति दिन वृद्धि भी होती जा रही है क्योंकि अध्यात्म हर धर्म की रूह होती है- जब तक ये रूह ज़िंदा रहेगी चराग़-ए-रूहानियत क़यामत तक रौशन रहेगा।
दूसरे सत्र में नग़मा-ए-रूह के तहत सुप्रसिद्ध ग़ज़ल गायक अनवर हुसैन, जबलपुर ने अपनी दिलकश और मधुर आवाज़ में सांगीतिक प्रस्तुति देकर श्रोताओं को झूमने पर मजबूर किया। उन्होंने जो कलाम पेश किये वो निम्न हैं।
1/ बसोरे मोरे नैनन में नंदलाल मीरा का भजन
2/ लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं।
3/ प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है ।
4/ मेरी हस्ती पे ज़माने के हैं पहरे कितने
अंतिम सत्र में रक़्से जुनूँ के तहत अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कथक नृत्यांगना डॉ. वी. अनुराधा सिंह, भोपाल ने अपने दल के साथ सूफ़ी नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने निम्न कलामों पर प्रस्तुति दी
वंदे मातरम्
ऐ री सखी मोरे पिया
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
चदरिया झीनी रे झीनी
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइ के
आज जाने की ज़िद ना करो
दमा दम मस्त क़लंदर
कार्यक्रम का संचालन समीना अली सिद्दीकी द्वारा किया गया।
कार्यक्रम के अंत में डॉ. नुसरत मेहदी ने सभी अतिथियों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।
















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