सोशल मीडिया का बढ़ता महत्व

यतीन्द्र अत्रे

पिछले दिनों आईपीएल मैचों में हार्दिक पांड्या की कप्तानी को लेकर सवाल उठाए जा रहे थे, बताया जा रहा है कि पहले मुंबई इंडियंस टीम के कप्तान रोहित शर्मा थे इसे लेकर सोशल मीडिया पर रोहित के फ्रेंड्स की नजरों में हार्दिक, जैसे अपराधी हो गए थे। वे लगातार सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग के शिकार हो रहे थे। ऐसा क्यों हुआ इस बारे में बताया गया की हार्दिक के दल बदल के उपरांत उन्हें कप्तानी पेश की गई थी। हालांकि हार्दिक पहले मुंबई इंडियंस टीम के साथ ही खेला करते थे इसलिए इसे घर वापसी के तौर पर भी देखा गया। ठीक इसी प्रकार देश में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर यदि हम नज़र डालें तो इस तरह के घटनाक्रम लगातार होना यहां भी पाएंगे। लोकसभा चुनाव की तैयारी में पार्टी प्रत्याशियों, कार्यकर्ताओं को लेकर भी दल-बदल का महत्व बढ़ गया है। आए दिन इन्हीं समाचारों को समाचारपत्रों एवं मीडिया चैनलों द्वारा भी महत्व दिया जा रहा है। पार्टी में उपेक्षित या टिकट न मिलने से नाराज कोई नेता जल्द ही किसी दूसरे दल में अचानक दृष्टिगोचर होने लगता है। इसके पीछे की कहानी, तर्क या सिद्धांत क्या है?  यह समझ से परे हैं, लेकिन इतना तो कहा जा सकता है कि जब आम आदमी सेलिब्रिटी हो जाता है तब वहां सिद्धांत गौण हो जाया करते हैं। आईपीएल में तो समझ आता है कि वहां खेल भावना और सिद्धांतों से अधिक पैसों का महत्व हो सकता है, लेकिन क्या राजनीति के बारे में यदि हम किसी से प्रश्न पूछे तो उत्तर क्या होगा ? गौर करेंगे तो संभवतः यहां देश सेवा से अधिक सत्ता के सुख का महत्व समझ में आएगा। विशेषज्ञों की माने तो उनके अनुसार   लोकतांत्रिक प्रक्रिया में राजनीतिक दल बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। सैद्धांतिक तौर पर राजनीतिक दलों की भूमिका यह है कि वह सामूहिक रूप से लोकतांत्रिक फैसला लेते हैं। आजादी के कुछ वर्षों के बाद ही यह महसूस किया जाने लगा कि राजनीतिक दलों द्वारा अपने सामूहिक जनादेश की अनदेखी की जाने लगी है। विधायकों और सांसदों के जोड़-तोड़ से सरकारें  बनने और गिरने लगी। वर्ष 1960 से 70 के दशक में आया राम गया राम की राजनीति देश में प्रचलित हो चली थी, इसलिए जल्द ही दलों को मिले जनादेश का उल्लंघन करने वाले सदस्यों को चुनाव में भाग लेने से रोकने या अयोग्य घोषित करने की आवश्यकता महसूस होने लगी। अंततः वर्ष 1985 में संविधान संशोधन के जरिए दल-बदल विरोधी कानून लाया गया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य भारतीय राजनीति में दल-बदल की प्रथा को समाप्त करना था। लेकिन क्या यह उद्देश्य आज पूरा हो रहा है? यदि पिछली घटनाओं को देखें तो शायद उत्तर नहीं होगा। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगा कि पिछले कुछ वर्षों से देश की राजनीति में इस कानून के अस्तित्व को कई बार चुनौती दी जा चुकी है। इसका एक कारण राजनीति के क्षेत्र में निरंतर नए या युवा लोगों का प्रवेश नहीं होना भी हो सकता है राजनैतिक पार्टियां भी उन गिने-चुने लोगों, प्रत्याशियों पर विश्वास करने हेतु मजबूर रहती होंगी। विडंबना यह है कि,आज का युवा राजनीति शास्त्र पढ़कर और आईपीएस बनकर देश सेवा तो करना चाहता है किंतु राज नेता बन देश की सेवा करने में संशय करता है। आज आवश्यकता है उन युवाओं की जो राजनीति के क्षेत्र में अपना कॅरिअर बनाना चाहते हों, उस माध्यम से देश सेवा करना चाहते हों, आज आवश्यकता है उन युवाओ की जो खेलों में होने वाली राजनीति पर पदक ना जीतने वाले खिलाड़ियों के परफॉर्मेंस पर,दल-बदल करने वाले खिलाड़ियों पर सोशल मीडिया के द्वारा अपनी आवाज उठाते हैं। वही युवा अपने द्वारा चुने एवं सरकार चलाने वाले प्रतिनिधि,विपक्ष में बैठे प्रतिनिधियों पर भी सोशल मीडिया के मंच पर टिप्पणी दें, हो सकता है उनकी यह टिप्पणी आगे चलकर देश के विकास मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाए।

 मो.: 9425004536

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *