विनोद नागर भारत में कोरोनाजन्य लॉक डाउन के चलते मार्च के आखिरी हफ्ते से मनोरंजन उद्योग पर जड़ा ताला अभी भी बंद है। सरकार
मनोरंजन
फिल्मों में मध्यम वर्ग के पैरोकार थे बासु चटर्जी
विनोद नागर सत्तर और अस्सी के दशक में जब हिन्दी फिल्मों में मारधाड़ अपने चरम पर थी तब सामानांतर फिल्मों और फार्मूला फिल्मों के
नोरा फतेही ने सरकारी अस्पतालों में डोनेट किये पीपीई किट्स
नोरा फतेही ने पूरा लॉकडाउन मुंबई के अपने घर में ही बिताया है। ये बात अलग है कि इसके बावजूद उन्होंने लोगों का मनोरंजन
हेमलता -एक मखमली आवाज़
– सलिल सरोज “अँखियों के झरोखों से, मैने देखा जो साँवरे तुम दूर नज़र आए, बड़ी दूर नज़र आए बंद करके झरोखों को, ज़रा
फिल्मी दुनिया के दो दिग्गज अभिनेता नहीं रहे
देश जहां कोरोना संक्रमण से उबरने का प्रयास कर रहा है वहीं लॉक डाउन के मध्य फिल्मी दुनिया के दो दिग्गज अभिनेताओं के निधन
फिल्मी किरदार मेंटल या ‘जजमेंटल है क्या’ फर्क पड़ता है
विनोद नागर दर्शकों का एक बड़ा वर्ग आज भी फिल्म के ट्रेलर, पोस्टर और उसके नाम से आकर्षित होकर खिंचा चला आता है। फिल्म
हिन्दुस्तान में सबका ख्याल रखने का वादा निभाता – भारत
– विनोद नागर सलमान बॉलीवुड के ऐसे विलक्षण खान सितारे हैं, जो अपनी फिल्मों से ज्यादा अपने स्वभाव, जीवन शैली और पारिवारिक प्रतिबद्धता के
चुनाव में अटकी, मौके पर चाौका लगाती बायोपिक ‘पीएम नरेन्द्र मोदी’ -विनोद नागर
गुरुवार को विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र में दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में भाजपा ने भारत की केंद्रीय सत्ता में
सिने आस्वाद में प्रदर्शित हुई फिल्म कभी हाँ कभी ना
भोपाल ।मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित सिने आस्वाद की श्रृंखला में 25 अक्टूबर को कुंदन शाह द्वारा निर्देशित फिल्म ‘कभी हाँ कभी ना’ (1994) का प्रदर्शन हुआ । यह एक रोमांटिक कॉमेडी फिल्म है और एक बहुत सरल और ठेठ प्रेम त्रिकोण की तरह लग सकती है। फिल्म का नायक सुनील (शाहरुख खान) एक खुशमिजाज़ लड़का है जिसे संगीत पसंद है लेकिन पढाई में उसकी रूचि बिल्कुल नहीं है।वह अपनी दोस्त आना (सुचित्रा कृष्णमूर्ति ) को प्यार करता है, लेकिन वो क्रिस (दीपक तिजोरी ) को पसंद करती है । सुनील, आना और क्रिस के बीच उभरते रिश्ते को महसूस करते हुए, दोनों के बीच विवाद पैदा करने और हालात का फायदा उठाने की कोशिश करता है ।आना को जब इस बारे में पता चलता है तो इस विश्वासघात के लिए सुनील से सभी नाराज़ होते है बाद में सुनील को अपनी गलती का एहसास होता है किस्मत उसे एक और मौका देती है । सुनील दोनों को फिर से मिलाने का फैसला करता है और उनकी शादी करवाता है और सभी सुनील को उसकी गलती के लिए माफ़ कर देते हैं । यह फिल्म वास्तव में जीवन के बारे में है। कभी-कभी आपको कुछ मिलता है, कभी-कभी आप कुछ खो देते हैं, लेकिन अंत में आप इन परिस्थियों के साथ जीना सीख जाते हैं। कुंदन शाह की यही खूबी थी कि वो आम जीवन के उन कठिन पहलुओं को हल्के अंदाज में दर्शकों के सामने लेकर आये। वह शानदार ढंग से सुनील के जीवन के सभी पहलुओं को चित्रित करते हैं, फिल्म में संवाद अच्छी तरह से लिखे गए हैं और फिल्म यथार्थवादी है। संगीत खूबसूरत है, हालांकि यह फिल्म शाहरुख खान की है, पर सभी कलाकारों का काम शानदार है, और हर अभिनेता- सुचित्रा कृष्णमूर्ति से लेकर महान नसीरुद्दीन शाह तक – सभी ने अच्छा काम किया । यह एक ऐसी फिल्म है जो आपको सिखाती है कि जीवन को अलग तरह से कैसे देखना है। इस फिल्म में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए शाहरुख़ खान को फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवॉर्ड दिया गया ।