जबलपुर। कृषि में मिट्टी की गुणवत्ता और स्वास्थ्य को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। मृदा परीक्षण इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं। मृदा परीक्षण का मुख्य उद्देश्य मिट्टी की गुणवत्ता का मूल्यांकन करना और उसमें मौजूद पोषक तत्वों की मात्रा को जानना है। यह प्रकिया किसानों को समझने में मदद करती है कि उनकी भूमि की वर्तमान स्थिति क्या है और उसे बेहतर बनाने के लिए क्या कदम उठाने की आवश्यकता है। सबसे पहला कदम है सही तरीके से मृदा नमूना एकत्र करना। मृदा नमूने किसान भाई स्वयं ले सकते हैं या इसके लिये कृषि विस्तार अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं। खेत के विभिन्न हिस्सों से मिट्टी के नमूने एकत्र करना चाहिए ताकि संपूर्ण खेत की सही तस्वीर मिल सके। मृदा नमूना संग्रहण का सही तरीका अपनाने से मृदा परीक्षण के परिणाम अधिक सटीक आते हैं, जो किसानों को उनकी मिट्टी की वास्तविक स्थिती जानने में मदद करते हैं। एकत्र किए गए नमूनों को मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में भेजा जाता है। यहां पर मिट्टी का पी एच, जैविक कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा मापी जाती है। परीक्षण के परिणामों का विश्लेषण कर किसान को यह बताया जाता है की उनकी मिट्टी में कौन-कौन से पोषक तत्वों की कमी है और उसे कैसे पूरा किया जा सकता है। यह जानकारी किसान को उचित उर्वरकों का चयन करने में मदद करती है। मृदा परीक्षण के परिणामों के आधार पर किसान अपनी मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिये सही उपाय अपना सकते हैं। मृदा परीक्षण के परिणाम में बहुत बार मृदा अम्लीय पायी जाती है। अम्लीय मृदा वह मिट्टी होती है जिसका पी एच मान 6.5 से कम होता है। ऐसी मिट्टी में फसल उगाना कठिन हो जाता है क्योंकि इसमें पोषक तत्वों की उपलब्धता कम हो जाती है। चूना अम्लीय मृदा को सुधारने का सबसे सामान्य और प्रभावी तरीका है। चूने का उपयोग करके मिट्टी के पी एच को बढाया जा सकता है, जिससे उसमें पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है। चूने का सही मात्रा में उपयोग करना आवश्यक है, जिसे मृदा परीक्षण के परिणामों के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है। जैविक खाद का उपयोग भी अम्लीय मृदा में सुधार करने के लिए एक अन्य प्रभावी तरीका है। जैविक खाद मिट्टी की संरचना को सुधारता है और उसमें जैविक सामग्री की मात्रा को बढ़ाता है। जैविक खाद न केवल मिट्टी की अम्लीयता को कम करती है बल्कि उसमें सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या भी बढाती है, जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में मददगार होते हैं। हरी खाद के पौधे, जैसे ढैंचा या मूंग, अम्लीय मृदा में सुधार के लिए उपयोगी हो सकते हैं। हरी खाद का उपयोग मिट्टी की नमी बनाए रखने और उसकी जल धारण क्षमता को बढ़ाने में सहायक होती है। फसल चक्र में परिवर्तन और अम्लीयता के प्रति सहनशील फसलों का चयन मिट्टी की समस्या से निपटने के लिए एक प्रभावी उपाय है।
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