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पठारी क्षेत्र में मूर्ति कला का हो रहा पुनरुत्थान, क्षेत्र को मिलेगा रोजगार और पहचान

विदिशा :    विदिशा जिले की तहसील पठारी क्षेत्र में अद्भुत पत्थर से बेशकीमती मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है। श्रद्धा आस्था और भक्ति की केंद्र बन रही मूर्तियां भक्तों और कला प्रेमियों की पहली पसंद बन रही है। जो स्थापत्य वास्तु और मूर्ति कला संरक्षण और संवर्धन कर पुनः उत्थान कर रही हैं।

    विदिशा जिले की तहसील पठारी के ग्राम सैदपुर में पत्थर मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है। यह मूर्तियां ग्राम सैदपुर के लाल , पीले और भूरे रंग के अद्भुत पत्थर से बेशकीमती मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है। हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म की मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है,जिसमें खास तौर पर जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों की मूर्तियां बनाई जा रही है।

 – कलेक्टर श्री गुप्ता ने की थी सराहना –

     कलेक्टर श्री अंशुल गुप्ता ने विगत दिनों पठारी क्षेत्र में भ्रमण के दौरान उन्होंने सुकृति कला केंद्र सैदपुर पहुंच कर अद्भुत मूर्तियों की जमकर सराहना की थी। कलेक्टर श्री गुप्ता ने पठारी के भ्रमण दौरान इन मूर्तियों को बनाने वाले कलाकारों के हुनर को देखा और होंसला अफजाई किया था।

 – ऐसे हुई मूर्ति निर्माण की शुरुआत –

   पत्थर खदान मालिक डिंपल सिंघई ने बताया कि पठारी क्षेत्र से पूरे देश में जैन मंदिरों के फाउंडेशन बनाने वाले पत्थर ब्लॉक भेजे जाते हैं। 2018-19 में खजुराहो में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने मूर्ति निर्माण के लिए पत्थर की मांग की। जिसमें अंतरराष्ट्रीय लेबोरेटरी में सैदपुर खदान का पत्थर का गुणवत्ता युक्त चयन किया गया। इसके बाद से मुनिश्री दुर्लभ सागर जी महाराज की प्रेरणा से मूर्तियों का निर्माण प्रारंभ हुआ।

 – ऐसे बनती है मूर्तियां –

   आर्किटेक्चर प्रियंक जैन, मुख्य कलाकार रंजीत बेहरा और उत्तम मलिक ने बताया कि मूर्ति निर्माण के लिए विशेष मुहूर्त में पत्थर को वैदिक विधि से आमंत्रित किया जाता है। पत्थर की पूजा अर्चना करने के पश्चात पत्थर की कटिंग की जाती है। इसके बाद पत्थर को मूर्ति का रूप देने के लिए ड्राइंग करके तराशा जाता है। इसके बाद फिर ड्राइंग करके नक्काशी की जाती है। मूर्ति पर डिजाइन बनाकर सफाई, घिंसाई और पॉलिश कर चिन्ह अंकित अंतिम रूप दिया जाता है। मूर्ति निर्माण के दौरान कलाकार कठोर नियम और सिद्धांतों का पालन करते हैं।

 – जीवंत और संजीदा दिखती है मूर्तियां –

    मुख्य रूप से नागर शैली स्थापत्य कला के लिए बनाई जा रही मूर्तियों में मथुरा शैली और गंधार शैली का अनूठा संगम नजर आता है। 9 ताल के आधार पर बनाई जा रही लाल, पीले और भूरे रंग के पत्थर की मूर्तियों में अद्भुत आकर्षण नजर आता है। 1 फुट से लेकर 13 फुट तक की भीमकाय मूर्तियों का निर्माण उड़ीसा, कोलकाता, चेन्नई, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुशल कलाकारों के द्वारा किया जा रहा है। जिसमें जैन मूर्तियों में ध्यान मग्न अवस्था, विशाल बंद नेत्र, घुंघराले केश, सुडोल कंधे, गोद में दोनों हाथ रखे हुए तीर्थंकरों के हृदय पर श्री वत्स चिन्ह प्रतिमाओं की शोभा बढ़ाते है। किसी-किसी प्रतिमा में हाथ की उंगलियां मुड़ी हुई नजर आती हैं। वहीं पैर के अंगूठे भी मुड़े हुए नजर आते हैं। जो अद्भुत कला को प्रदर्शित करते हैं। किसी-किसी प्रतिमा में तीर्थंकरों के कान कंधे से लगे हुए नजर आते हैं। यहां प्रतिमाएं पद्मासन मुद्रा और कायोत्सर्ग मुद्रा में बनाई जाती हैं। यह प्रतिमाएं मुख्य रूप से नागर शैली स्थापत्य कला मंदिरों के लिए मुख्य मानी जाती है। वहीं द्रविड़ शैली के मंदिरों के लिए भी प्रतिमाएं बनाई जाती है।

 – जैन मूर्तियां में बनती है अष्ट प्रातिहार्य –

    जैन मूर्तियों के निर्माण में अष्ट प्रतिहार्य सिद्धांत को अपनाया जाता है। जिसमें प्रत्येक तीर्थंकर के प्रतिमा में सिंहासन , आभामंडल कल्पवृक्ष, दिव्य ध्वनि, चंवर, देव दुंदुभी, दिव्या पुष्प वृष्टि और छत्र का निर्माण किया जाता है। जिन तीर्थंकर की प्रतिमा बनाई जाती है। उनके चिन्हांकित कर दिए जाते हैं।

 – हिंदू और बौद्ध धर्म की बनती है मूर्तियां –

   डिंपल सिंघई और मुख्य कलाकार रंजीत बेहरा, उत्तम मलिक ने बताया कि हिंदू धर्म के वैष्णव, शैव, शाक्त और स्मार्त संप्रदाय की मूर्तियां बनाई जाती है। वही भगवान बुद्ध की मूर्तियां भी बनाई जाती हैं। जिसमें अद्भुत नक्काशी और कला का प्रदर्शन किया जा रहा है।

 – रोजगार और पहचान के खुलेंगे आयाम – 

   सुकृति कला केंद्र सैदपुर के द्वारा बनाई जा रही मूर्तियों से क्षेत्र में नए रोजगार की आशा नजर आ रही है। वहीं पूरे देश में पठारी क्षेत्र को नई पहचान मिलेगी। क्षेत्र में स्थापत्य, वास्तु और मूर्ति कला को संरक्षण और संवर्धन मिलेगा। जिससे आंचल में नए-नए हस्तशिल्प कलाकारों को नया खुला मंच मिलेगा। पठारी क्षेत्र देश की प्रसिद्ध पत्थर मंडी है। जिसका पत्थर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है। जिसमें युवाओं को स्टोन आर्ट के लिए नए प्रयोग करने का मौका मिलेगा। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में स्टोन आर्ट का अच्छा क्रेज चल रहा है।

 – प्राचीन काल में पठारी कला था मुख्य केंद्र –

   प्राचीन काल में पठारी, बड़ोह, उदयपुर, ऐरन क्षेत्र स्थापत्य, वास्तु और मूर्ति कला का मुख्य केंद्र था। आंचल में अनेक स्थापत्य और मूर्ति कला के अद्भुत पुरा स्मारक मौजूद है। प्राचीन काल से ही पठारी क्षेत्र का पत्थर मूर्ति निर्माण के लिए प्रयुक्त माना जाता है। जो अंतर्राष्ट्रीय प्रयोगशाला में अपनी गुणवत्ता को प्रमाणित कर चुका है।

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