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छातों और घड़ों पर अवतरित हुआ जल, जंगल और जीवन  

भोपाल। जल गंगा संवर्धन अभियान अंतर्गत सदानीरा समागम में दो महत्वपूर्ण कार्यशालाएँ संयोजित है। जिसमें 50 से अधिक जनजातीय कलाकारों द्वारा छातों और घड़ों पर जंगल, नदी, पहाड़, पशु-पक्षी, पेड़ व जीवन के अनेक रूपों को चित्रांकित किया।इस कार्यशाला का समन्वय कर रहे प्रसिद्ध गोंड चित्रकार वेंकट रमन सिंह श्याम का कहना है कि इस तरह की कार्यशाला जनजातीय कलाकारों के कार्य को प्रदर्शित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस कार्यशाला में कलाकारों ने अपनी कल्पना के आधार पर अपने परिवेश और परंपरा को चित्रित करने का प्रयास किया है। निश्चित ही सदानीरा समागम में जल से संबंधित हमारे नियमित जीवन की कुछ ऐसी वस्तुओं को चित्रों में लाने का प्रयास किया है जिसमें छाता व घड़ा है। जिनका जल से संबंध बनता है।

जलरंगों में प्रतिबिम्बित हुए जलस्रोत
इसी समागम में आयोजित जल रंग चित्र कार्यशाला में भाग लेने वाले देशभर के अनेक चित्रकारों ने नदी, घाट, तालाब और उनके परिवेश के साथ ही हमारे प्राचीन जलस्रोतों पर अपनी कल्पना के आधार पर चित्रण किया है। जलरंग एक ऐसा माध्यम है जो चित्रों को एक अलग ही दृष्टि और छवि प्रदान करता है। इस कार्यशाला के समन्वयक व देश के प्रसिद्ध कलाकार देवीलाल पाटीदार जलरंग चित्रण की इस परंपरा पर कहते है कि हमारे देश में जलरंगों में चित्रण का इतिहास बहुत ही पुराना है। हर दौर में इस माध्यम में बहुत अच्छा चित्रण हुआ है विशेषकर भू-दृश्य चित्रण में जलरंग अपनी एक अलग जगह रखता है। कार्यशाला में देश के ख्यात कलाकार अनुराग मेहता-उदयपुर, विवेक प्रभु केलुस्कर-मुम्बई, सागर श्रीवास्तव-झाँसी, अमोल पवार-मुम्बई, सपना रायकवार-उज्जैन, अभिषेक आचार्य-मुम्बई, जुगल सरकार-कोलकाता, देवीलाल पाटीदार-भोपाल, निखिल खत्री-सीहोर, गोविन्द विश्वकर्मा-भोपाल, रामसूर्यभान भांगड़-संभाजीनगर उपस्थित थे।

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