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मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी ‘फुलवारी’ के अंतर्गत सेमिनार एवं अखिल भारतीय मुशायरा आयोजित

भोपाल। मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग द्वारा ‘फुलवारी’ के अंतर्गत सेमिनार एवं अखिल भारतीय मुशायरे का आयोजन 24 जून, 2025, सायं 7.00 बजे, शालीमार गार्डन, नयापुरा, सिरोंज (म.प्र.) में किया गया। 

कार्यक्रम के प्रारम्भ में उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ नुसरत मेहदी ने कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बाल साहित्य पर मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी का ये सेमिनार मात्र औपचारिक गतिविधि नहीं, बल्कि बच्चों में साहित्य की रौशनी आम करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। क्यूंकि बच्चे ही वो बुनियाद हैं जिन पर एक सभ्य और शिष्ट समाज का निर्माण होता है। अकादमी इस ज़िम्मेदारी को भी मेहसूस करती है और इस पर अमल करने का भी सदैव प्रयास करती है। आज का कार्यक्रम बाल साहित्य के रचनात्मक, शैक्षणिक एवं सामाजिक आयामों पर चिंतन मनन करने का एक महत्वपूर्ण अवसर भी प्रदान करता है। 

डॉ नुसरत मेहदी के उद्बोधन के बाद “बाल साहित्य” पर आधारित सेमिनार आयोजित हुआ जिसमें प्रख्यात साहित्यकार एवं शायर डॉ. सैफ़ी सिरोंजी, डॉ. उरूज अहमद, डॉ. अयाज़ असलम एवं स्तुति अग्रवाल “उर्दू में बाल साहित्य” विषय पर वक्तव्य प्रस्तुत किये।

डॉ सैफ़ी सिरोंजी ने बाल पत्रिकाओं के बारे बात करते हुए कहा कि उर्दू साहित्य का इतिहास इस बात का गवाह है कि जिन माँ बाप के घरों में उर्दू के अख़बार या बच्चों की पत्रिकाएँ आती रही हैं, उनकी संतानें आगे चलकर साहित्य जगत की प्रमुख हस्तियाँ बनीं। क्योंकि बच्चों की परवरिश में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका बच्चों की पत्रिकाएँ ही निभाती हैं। यदि आप बच्चों को पढ़ाने का प्रयास न भी करें, तो भी उनमें स्वयं पढ़ने का शौक़ पैदा हो जाता है, और यह शौक़ पैदा करने का कर्तव्य केवल माता-पिता ही निभाते हैं। यदि वे कुछ न भी करें, तब भी बच्चे अपने घर के साहित्यिक माहौल से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते, और धीरे-धीरे यह शौक़ उनकी ज़रूरत बन जाता है। 

डॉ उरूज अहमद ने कहा कि बच्चे अपने घर, समाज क़ौम ही नहीं बल्कि पूरे देश का सरमाया होते हैं, जिनकी हिफ़ाज़त, तरबियत और बेहतरीन परवरिश हर शहरी की ज़िम्मेदारी है। उनकी रोज़मर्रा की आवश्यकताओं के साथ ही उनकी भाषा, विचार, संस्कृति एवं सभ्यता के साथ मानसिक प्रशिक्षण भी बेहद ज़रूरी है ताकि वे बड़े होकर राष्ट्र निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।

डॉ अयाज़ असलम ने बाल साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जैसे जैसे दुनिया ने तरक़्क़ी की, बच्चों की ज़रूरतें और उनकी रुचियाँ भी बदल गई हैं, उनके सामने नई नई चुनौतियाँ हैं। इसलिए अब हमारी ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है कि अपने बच्चों की शिक्षा और परवरिश के लिए बाल साहित्य को और अधिक प्रभावी बनाएँ, ताकि यह वर्तमान समय की माँगों को पूरा कर सके।  

स्तुति अग्रवाल ने पंचतंत्र कहानियों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पंचतंत्र की इन कहानियों का महत्व 2000 साल पहले जितना था, शायद आज उससे भी अधिक है। वर्तमान समय में, जब वीडियो गेम्स और सोशल मीडिया ने बच्चों से उनका बचपन छीन लिया है, कार्टून और सुपरहीरो की फिल्में उन्हें आकर्षित कर रही हैं, ऐसे हालात में लोक कथाओं को डिजिटल प्रारूप, जैसे ऑडियो और एनिमेशन में प्रस्तुत किया जा सकता है। पॉडकास्ट और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर रोचक अंदाज में कहानी कहने को बढ़ावा दिया जा सकता है। पाठ्यक्रम में लोक कथाओं को एक विशेष स्थान दिया जा सकता है और स्कूलों में लोक साहित्य पर प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा सकता है। क्योंकि ये लोक कथाएं हमारी अमूल्य धरोहर हैं।

इस सत्र का संचालन मेहमूद मलिक द्वारा किया जाएगा 

सेमिनार के बाद दूसरे सत्र में अखिल भारतीय मुशायरा आयोजित हुआ जिसमें  अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायरों ने अपना कलाम पेश किया। मुशायरे की अध्यक्षता उस्ताद शायर डॉ शान फ़ख़री ने की एवं मुशायरे का सफल संचालन अल्तमश अब्बास द्वारा किया गया। जिन शायरों ने कलाम पेश किया उनके नाम और अशआर निम्न हैं। 

डॉ. शान फ़ख़री

ये जो इतना ग़ुरूर है मुझमें 

कोई ख़ामी ज़रूर है मुझमें 

नईम अख़्तर ख़ादमी

मेरी ख़ातिर न सही और किसी की ख़ातिर

तेरी ख़ुशबू ने बताया कि तू आया हुआ है

डॉ सलमा शाहीन (दिल्ली)

मौज़ूए हसन इश्क़ है इतना रहे मल्हूज़

कह दो ये जुनूं से हदे आदाब में आए 

नदीम शाद (देवबंद),

ये ना-क़द्री हमारी इसलिए है

तिरा होने में जल्दी कर गए हम

 अल्तमश अब्बास (रुड़की),

कौन ये फूल खिला जाता है पेशानी पर

सो के उठता हूँ तो बोसौं के निशाँ होते हैं 

 सोनरूपा विशाल (बदायूं),

ज़रा नज़दीक आकर बैठिएगा 

ये आँखें आबो दाना चाहती हैं 

डॉ. नफ़ीस तक़ी

मौसम का लम्स पाया तो कलियां चटक उठीं 

दस्ते सबा के छूते ही ख़ुश्बू के पर खुले 

इस्माईल साहिल 

पूछा न किसी ने भी जो उनपे गुज़रती है

जब शमा नहीं जलती परवानों की बस्ती में।

हिमांशी बाबरा

बद नसीबी की घटाओं ने मुझे घेर लिया

साए से पहले गए मेरे कमाए हुए लोग 

मुरारी मंडल (सीतामढ़ी)

जो बरसों बाद घर लौटा तो मुझको देखकर अम्मा

ज़रा पहले हँसी और फिर अचानक आँख भर आई 

आसिफ़ सिरोंजी

ख़बर है चाँद चेहरा हो गया है 

हरा मौसम सुनहरा हो गया है 

बहुत मुशिकल है उतरे रंगे उल्फ़त 

मियाँ ये रंग गहरा हो गया है 

इलयास रज़ा

नहीं दे पाओगे क़ीमत मोहब्बत नाम है मेरा 

हज़ारों मरतबा ठुकरा दिये हैं सेमो ज़र मैंने 

 असद हाश्मी

साहिल पे बैठे बैठे मिला है किसी को क्या

मोती की जुस्तुजू है समुन्दर खंगालिये

कार्यक्रम के अंत में डॉ नुसरत मेहदी ने सभी अतिथियों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।

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