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स्व. जनगणसिंह श्याम जी केवल बड़ा नाम नहीं, बल्कि प्राण पुरुष की तरह हैं

24वीं पुण्यतिथि के अवसर पर संस्मरण कार्यक्रम और कला शिविर का आयोजन

भोपाल। जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी की ओर से गोंड चित्रकला के जनक स्व. जनगण सिंह श्याम की 24वीं पुण्यतिथि के अवसर पर 03 जुलाई, 2025 को  मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में  संस्मरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर आयोजित संवाद सत्र में उनके जीवन, कला यात्रा और योगदान को याद करते हुए विशेषज्ञों, वक्ताओं ने अपने विचार साझा किए। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन और स्व. जनगणसिंह श्याम के चित्र पर माल्यार्पण से हुई, जिसके बाद मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय के संग्रहाध्यक्ष (क्यूरेटर) श्री अशोक मिश्र ने उपस्थित वक्ताओं और अतिथियों का स्वागत किया। संवाद सत्र का संचालन करते हुए वरिष्ठ  कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने स्व. जनगणसिंह श्याम के अनेक दुर्लभ और रोचक कला प्रसंगों की चर्चा की।
संग्रहाध्यक्ष (क्यूरेटर) श्री अशोक मिश्र ने कहा कि ज्ञात इतिहास में किसी परंपरा के आदि पुरुष की जानकारी नहीं है। यह हमारा सौभाग्य है कि जनगण कलम के रूप में ख्यात चित्रांकन की एक विशिष्ट शैली के उद्भव कर्ता स्व जनगणसिंह श्याम के बारे में पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं। यह हमारे राज्य के लिए गौरव का पक्ष है।
संवाद सत्र में गोण्ड जनजातीय चित्रकार श्री रामसिंह उर्वेती ने स्व. जनगढ़ सिंह श्याम को याद करते हुए कहा कि वे उनके भांजे हैं और बचपन से ही उनके साथ रहे हैं। उन्होंने बताया कि मामा जी के साथ जंगल जाना, हल चलाना और गांव की रामलीला में अभिनय करना उनके जीवन के अमूल्य क्षण थे। भोपाल आकर उन्होंने ही चित्रकारी के लिए प्रेरित किया और आवश्यक सामग्री दी।

वहीं, चित्रकार श्री वेंकटरमन सिंह श्याम ने वर्ष 1986 की स्मृति साझा करते हुए बताया कि जब चाचा जी को शिखर सम्मान मिला, तब उन्होंने पहली बार उस सम्मान के महत्व को समझा। भोपाल में उन्होंने पहली बार चाचा जी के कहने पर चार बाई छः कैनवास पर चित्र बनाने की कोशिश की। उनकी प्रेरणा से ही चित्रकला की ओर गंभीर रुझान हुआ। उन्होंने कहा कि चाचा जी का यह आशीर्वाद है, जिन्होंने हम सभी एक नई कला-धारा से जोड़ा। मैं उन्हें शत्-शत् नमन करता हूं।

स्व जनगणसिंह श्याम को याद करते हुए वक्ता श्री विवेक टेम्बे भावुक हो उठे। एक स्मृति सभा में बोलते हुए उन्होंने कहा, “आज का सत्र कठिन है, क्योंकि उस व्यक्ति के बारे में बोलना है जो अब हमारे बीच नहीं है।” उन्होंने बताया कि वर्ष 1981 स्व जनगणसिंह श्याम को पाटन से डिंडोरी लाया गया था। उस समय शाम को भोजन के लिए दूर जाना पड़ता था। एक बार जब उन्हें भोजन के लिए साथ चलने को कहा गया, तो जनगण जी ने जवाब दिया कि वह चित्र बनाएंगे। जब भोजन के बाद लौटकर देखा गया, तो उन्होंने दो चित्र तैयार कर लिए थे — एक बड़ा देव पर और दूसरा अपनी स्मृतियों पर आधारित था। श्री टेम्बे ने कहा कि स्व जनगणसिंह श्याम ने कभी किसी की नकल नहीं की, बल्कि हमेशा अपनी मौलिक शैली में चित्रों का सृजन किया। यही उनकी कला को विशिष्ट बनाता है।

वक्ता श्री उदयन बाजपेयी ने कहा कि गोण्ड चित्रकला को ‘जनगण कलम’ कहा जाना चाहिए, क्योंकि यह किसी एक कलाकार की नहीं, बल्कि समुदाय की सामूहिक चेतना की अभिव्यक्ति है। उन्होंने कहा कि गोण्ड चित्रकला का उद्भव एक अनोखी सांस्कृतिक घटना है, जब गायन की परंपरा ने चित्र रूप में जन्म लिया। पृथ्वी पर पहली बार ऐसा हुआ। जब संगीत का रूपांतरण चित्रकला में हुआ। यह घटना केवल कला का विस्तार नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक चमत्कार थी। श्री बाजपेयी जी ने उदाहरण देते हुए बताया कि 21 वर्ष की उम्र में उसने ऐसी चित्रकला रची, जो आज विश्व पटल पर जानी जाती है। उन्होंने कहा कि इतने सारे कलाकारों को प्रेरित कर पाना अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।

वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रयाग शुक्ल ने कहा, “स्व जनगणसिंह श्याम जी केवल बड़ा नाम नहीं, बल्कि प्राण पुरुष की तरह हैं। जब वे 20 वर्ष के थे तब मेरी मुलाकात उनसे हुई और उनके साथ बैठता था यह मेरे लिए गर्व की बात रही। वे भारत ही नहीं, सभी देशों में कला के प्राण पुरुष हैं।” वहीं स्व. जनगणसिंह श्याम की पत्नी चित्रकार सुश्री ननकुसिया श्याम ने कहा कि उन्हें स्व. जनगढ़ सिंह श्याम की हर बात आज भी याद है। “उन्होंने हमेशा हिम्मत से काम करना सिखाया। इस दुनिया से जाने के बाद जब भी कैनवास उठाती थी, तब आंखों से आंसू गिर जाते थे। उन्होंने हमेशा पेंटिंग के लिए प्रेरित किया, लेकिन मैं उस समय नहीं कर पाती थी। अब सब याद आता है।” मानव संग्रहालय से आए श्री हेमंत परिहार ने भी अपने अनुभव साझा करते हुए स्व. जनगणसिंह श्याम के मार्गदर्शन को प्रेरणास्रोत बताया। वहीं दूसरे सत्र कला शिविर में 30 से अधिक गोण्ड चित्र शैली के कलाकारों ने भाग लिया। शिविर में कलाकारों ने जीवंत रंगों और पारंपरिक शैली में चित्र बनाए, जो गोंड संस्कृति और प्रकृति से प्रेरित थे।

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