मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा बुरहानपुर में जावेद अंसारी और मिर्ज़ा मेहमूद बेग साज़ बुरहानपुरी की स्मृति में सेमिनार एवं रचना पाठ आयोजित

बुरहानपुर । मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग के तत्वावधान में ज़िला अदब गोशा, बुरहानपुर द्वारा सिलसिला एवं तलाशे जौहर का आयोजन जावेद अंसारी और मिर्ज़ा मेहमूद बेग साज़ बुरहानपुरी की स्मृति में सेमिनार एवं व्याख्यान रविवार हुमायूँ मेनशन, दाऊद पुरा, बुरहानपुर में संपन्न हुआ।
अकादमी की निदेशक डॉ नुसरत मेहदी ने कार्यक्रम के बारे में बताया कि बुरहानपुर वास्तव में अदब की बेहतरीन विरासतों का शहर है। इन विरासतों को संजोए रखना, सहेजना और नई पीढ़ी को सौंपना बहुत ज़रूरी है इसी उद्देश्य से बुरहानपुर में जावेद अंसारी और मिर्ज़ा मेहमूद बेग साज़ बुरहानपुरी की याद में कार्यक्रम आयोजित किया गया।
बुरहानपुर ज़िले के समन्वयक शऊर आशना ने बताया कि सेमिनार एवं रचना पाठ दो सत्रों पर आधारित था। प्रथम सत्र में दोपहर 3 बजे तलाशे जौहर प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें ज़िले के नये रचनाकारों ने तात्कालिक लेखन प्रतियोगिता में भाग लिया। निर्णायक मंडल के रूप में इंदौर के वरिष्ठ शायर मसूद बेग तिश्ना एवं खंडवा के वरिष्ठ शायर सग़ीर मंज़र मौजूद रहे जिन्होंने प्रतिभागियों शेर कहने के लिए दो तरही मिसरे दिए जो निम्न थे:
1.वो क्या बदल सकेंगे मिरी ज़िंदगी का रुख़ (साज़ बुरहानपुरी)

  1. हो मुफ़लिसी की या हो अमीराना ज़िंदगी (जावेद अंसारी)
    उपरोक्त मिसरों पर नए रचनाकारों द्वारा कही गई ग़ज़लों पर एवं उनकी प्रस्तुति के आधार पर निर्णायक मंडल के संयुक्त निर्णय से ज़की अनवर ने प्रथम, परवाना बुरहानपुरी ने द्वित्तीय एवं तालिब हाशमी ने तृतीय स्थान प्राप्त किया।
    तीनों विजेताओं ने जो अशआर कहे वो निम्न हैं।

हालांकि मुश्किलों में रहे उम्र भर मगर
अच्छी कटी है अपनी शरीफ़ाना ज़िंदगी
ज़की अनवर

उस रोज़ से ख़याल की कश्ती भँवर में है
जिस रोज़ था क़लम ने किया शायरी का रुख़
परवाना बुरहानपुरी

कब तक मैं तरसता ही रहूं दीद को तिरी
आकर बदल दे हम नशीं इस बे रुख़ी का रुख़
तालिब हाश्मी

प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले तीनों विजेता रचनाकारों को उर्दू अकादमी द्वारा पुरस्कार राशि क्रमशः 3000/-, 2000/- और 1000/- एवं प्रमाण पत्र दिए जाएंगे।

दूसरे सत्र में शाम 5 बजे सिलसिला के तहत सेमिनार एवं रचना पाठ का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता मप्र एजुकेशनल सोसायटी के अध्यक्ष सैयद जूज़र अली ने की। इस सत्र के प्रारंभ में साज़ बुरहानपुरी के बेटे मसूद बेग ने साज़ बुरहानपुरी के बहुमुखी व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला और उनकी शायरी की खूबियों के बारे में बात की एवं बुरहानपुर के साहित्यकारों डॉ. एस एम शकील एवं फ़रज़ाना अंसारी ने प्रसिद्ध रचनाकारों जावेद अंसारी एवं साज़ बुरहानपुरी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
डॉ. एस एम शकील ने साज़ बुरहानपुरी की शायरी के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि साज़ साहब ने ग़ुलामी के दौर और आज़ादी के दौर दोनों के उतार चढ़ाव को क़रीब से देखा। अंग्रेज़ों के ज़ुल्म को बर्दाश्त किया। जो कुछ उन्होंने देखा, महसूस किया, वो अपने दिल नशीं अंदाज़ में शायरी के रूप में पेश कर दिया। उनके कलाम में रोज़मर्रा के हालात का भरपूर चित्रांकन देखने को मिलता है।

सिलसिला में आमंत्रित स्थानीय वक्ता एवं शायरों में, सर्वश्री लतीफ़ शाहिद, रहमान साकिब, नादिम अशरफी, अबरार जाफ़री, चराग़ शफ़की (बुरहानपुर), मुख्तार नदीम (बस्ती निजामुद्दीन), डॉ.एस एम शकील (बुरहानपुर), शब्बीर साजिद (हाशिम पुरा), अल्लामा शाहिद अख्तर, जमील अंसारी, अहद अमजद, अनवर जमीली, संदीप शर्मा (बुरहानपुर), श्याम ठाकुर (रास्ती पुरा), फरज़ाना अंसारी (बुरहानपुर), सुनंदा वानखेड़े (बुरहानपुर) ने अपने कलाम पेश किए। कुछ चुनिंदा अशआर…

मेरे दौर के बच्चे बाप से कहते हैं
तुमको नहीं समझता अब्बा चुप बैठो
लतीफ़ शाहिद

एक तुम हो कि तुम्हें याद नहीं रहता है
लोग एहसान गिनाते हुए मर जाते हैं
सग़ीर मंज़र

ये किसके आने का एहसास जागा ख़ाना-ए-दिल में
कि आँसू एहतिरामन दीदा ए तर से निकल आए
अबरार जाफ़री

हर तरह ज़िंदगी ने हमें आज़मा लिया
हर तरह आज़माएंगे अब ज़िंदगी को हम
नादिम अशरफ़ी

कहां पे ढूंढते फिरते हो आज दीवानो
मुझे फ्रेम में तस्वीर कर दिया गया है
रहमान साक़िब

इस ख़राबे में तुझे कुछ नहीं मिलने वाला
दिल की टूटी हुई महराब से बाहर आजा
अहद अमजद

सब क़सूर इसमें तेरा मेरा है
जो मुसीबत ने हमको घेरा है
जमील अंसारी

हर क़दम अपना इरादा नहीं बदला जाता
मुश्किलें देख के रस्ता नहीं बदला जाता
मुख्तार नदीम

शेर तो आज भी कहते हैं लोग अनवर
हाँ मगर मीर तक़ी मीर नहीं है कोई
अनवर जमीली

क़ौलो अमल में आपके कितना तज़ाद है
साए में रहके धूप की शिद्दत पे तबसिरा
शब्बीर साजिद

इन चराग़ों को जलने की सज़ा लगती है
देर तक रात को ढलने की सज़ा लगती है
संदीप शर्मा निर्मल

ठहरी हुई ख़्वाहिशों की बंद किताब हैं हम
ज़्यादा तो नहीं मगर ख़ुद में ही बेहिसाब हैं हम
सुनंदा वानखेड़े

सोलह आने सच लिखूँगा
ठोस नहीं मैं तरल लिखूँगा
श्याम ठाकुर

कार्यक्रम के अंत मे ज़िला समन्वयक शऊर आशना ने श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।

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