इन्हें भी मिले निर्णय लेने का अधिकार

पिछले दिनों 21 सितंबर 2023 को पहले लोकसभा फिर राज्यसभा में 11 घंटे की चर्चा के बाद नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल पास हुआ। सबसे अच्छी बात यह रही की परंपरा से हटकर सभी दलों ने इस अधिनियम में अपनी सहमति जताई। अब इस बिल के बाद महिलाओं के योगदान की बात करें तो यह कहा जा रहा है कि बिल पारित होने के बाद से महिलाओं को देश में एक मजबूत प्रतिनिधित्व मिलेगा यानी कि नारी सशक्तिकरण के एक नए युग की हम शुरुआत करने जा रहे हैं। सचमुच यह गर्व करने वाला विषय होगा लेकिन इसके बावजूद विडंबना यह है कि इस देश में अनेक महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने दूसरी महिलाओं की तरह ही अपनी मर्जी से विवाह किया,ओरों की तरह ही घर संसार बसाने के सपने देखे, किंतु विवाह के बाद ओरों की तरह सुखी नहीं हैं। हाल ही में समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों के अनुसार सहमति से विवाह के बाद भी या तो उनके पति जेल की हवा खा रहे हैं या फिर जमानत पर रिहा अपने पतियों को वे उन आरोपों से बरी कराने में अपना जीवन व्यतीत कर रही हैं जो उनके माता पिता ने उनके पति के विरुद्ध लगाए हैं।उनका कसूर बस इतना था कि जब उन्होंने अपने जीवनसाथी को चुना,उससे विवाह किया तब वे कानून के अनुसार नाबालिग थी।
हम सभी को ज्ञात होगा कि योन अपराधों से बच्चों के संरक्षण हेतु वर्ष 2012 मे पाक्सो ऐक्ट (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन्स सेक्सुअल ऑफेंस) लागू किया गया है। आवश्यकता होने पर 2019 में इसकी समीक्षा की गयी,उसमे संशोधन किया गया उसके बाद 2020 में इसे अधिसूचित भी किया गया है। वर्तमान में चर्चा का विषय यह है की क्या इसमें समय की मांग के साथ फिर से संशोधन किया जा सकता है ? हालांकि यह कानून नाबालिग बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए बना है, इसलिए अपराध के वक्त पीडिता नाबालिग है तो कानून के हिसाब से पाक्सो की कार्रवाई जरूरी होगी। जानकारों, विशेषज्ञों का इस संबंध में यह कहना है कि भले ही पीड़िता विवाह के समय नाबालिग रही हो किंतु अपनी मर्जी से किये विवाह के मामलों के लिए संशोधन होना चाहिए। लड़की के बालिग होने पर न्यायालय को उसके बयानों के आधार पर पाक्सो की धाराएं समाप्त कर देनी चाहिए। हालांकि हमारे यहां किसी भी विधेयक के लागू होने के बाद सम्माननीय न्यायालय का निर्णय सर्वमान्य होता है। इसलिए हमारी आशाएं माननीय सर्वोच्च न्यायालय की ओर एव सरकार पर केंद्रित होंगी। लेकिन क्या हम कल्पना कर सकते है कि ऐसे डिजिटल भारत मे जहां हम समान नागरिक संहिता के पक्षधर है,जहां महिलाओं की शिक्षा एवं स्वास्थ का विशेष ध्यान रखा जा रहा है, उनकी सक्षमता हेतु लाडली बहना,स्वरोजगार जैसी अनेक योजनाओं को संचालित किया जा रहा है, बालिग होने पर उन्हीं महिलाओं को वे अधीकार भी मिलना चाहिए या नहीं जो उन्होंने अपनी कच्ची उम्र में देखे थे ?

मो.: 9425004536

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