करे कोई भरे कोई ….

यतीन्द्र अत्रे,

कुछ अपवाद स्वरूप प्रकरण छोड़े तो यह पाएंगे कि एक व्यक्ति या उसका परिवार जीवन में एक बार ही घर का सपना देखता है और उसे मुहूर्त रूप देने में आधे से ज्यादा जीवन बिता देता है। भारत में कई नौकरी पेशा परिवार तो ऐसे मिलेंगे जो सेवा निवृत्ति के बाद यह सपना पूरा कर पाते हैं। ऐसे में यह सपना पूरा होने के पूर्व ही टूटता दिखाई दे तब कल्पना करें कि क्या स्थिति निर्मित होगी यह अनुमान लगाना भी कठिन होगा। एनजीटी के आदेश पर कोलार रोड भोपाल स्थित कलियासोत बांध की 33 मीटर की सीमा से लगी निर्मित मल्टी स्टोरी में निवास कर रहे परिवारों की कहानी भी कुछ यही बयां कर रही है। दरअसल एनजीटी के आदेश पर 33 मीटर में निर्मित पक्के भवनों को खाली करने के निर्देश के बाद से क्षेत्र में हड़कंप मचा हुआ है, जहां नगर निगम द्वारा रहवासियों को निर्माण हटाने हेतु नोटिस थमा दिए गए हैं। समाचारों के अनुसार विडंबना यह बताई जा रही है कि वर्ष 2012 में पहले बिल्डिंग परमिशन शाखा द्वारा जिस मल्टी स्टोरी बिल्डिंग के लिए अनुमति जारी की गई थी। शाखा द्वारा बिल्डिंग में निवास कर रहे परिवारों को 7 दिन के अंदर मकान खाली करने के नोटिस दिए जा रहे हैं। रहवासियों का इस संबंध में कहना है कि निगम की  परमिशन के साथ टीएनएसपी और अन्य जरूरी अनुमतियों के बाद बनाई गई बिल्डिंग अवैध कैसे हो सकती है ?

  लापरवाही किसकी है यह तो जांच के बाद सामने आ ही जाएगा, लेकिन बड़ी बात यह है कि जिन परिवारों का रैन बसेरा टूट रहा है, वे कहां जाएंगे? निगम या संबंधित एजेंसी के पास संभवतः इसका जवाब नहीं होगा। जानकारी के अनुसार अतिक्रमण में आने वाली मल्टी स्टोरी में निवास कर रहे अधिकतर रहवासी बुजुर्ग है, जिन्होंने अपनी जीवन भर की कमाई लगाकर यहां फ्लैट खरीदे हैं, उन सबका कहना है कि जब मकान खरीदे तब बिल्डर ने सारी अनुमतियां दिखाई थी।  क्या अब यह कहना उचित होगा कि या तो वे अनुमतियां फर्जी थी या गलत तरीके से जारी की गई थी, क्योंकि एनजीटी के आदेश के अनुसार 33 मीटर के सीमांकन के आधार से ये सभी निर्माण अवैध होंगे। रहवासियों ने पिछले दिनों शांतिपूर्ण तरीके से कैंडल मार्च के द्वारा प्रशासन तक अपनी बात पहुंचाने का प्रयास किया हैं जो एक लंबी प्रक्रिया है, सुनवाई होगी या नहीं इसमें संभावना कम नज़र आ रही है। आमतौर पर स्थानीय जनप्रतिनिधि ऐसे मामलों में बागडौर अपने हाथों में लेते हैं फिलहाल वो संबल भी नज़र नहीं आ रहा है, जबकि  वोट मांगते समय इसी तरीके के आश्वासन दिए जाते रहे हैं। विडम्बना यह भी है कि शहरों में प्राइम लोकेशन पर प्रॉपर्टी खरीदना हर किसी के बस की बात नहीं होती है जिसका लाभ नई विकसित होती कॉलोनी के बिल्डर, कॉलोनाइजर उठाते हैं। ये प्रतिनिधि खरीददारों को कई तरह के सब्ज बाग दिखाते हैं जिनमें प्रमुख होते हैं – लेक व्यू, हरियाली, स्टेशन- बस स्टैंड से मात्र 10 मिनिट की दूरी, शॉपिंग काम्प्लेक्स इत्यादि।

इन्हीं झांसों में आकर कोई भी परिवार वस्तु स्थिति को समझ नहीं पता है और इनके कहने मेंआकर अपने जीवन भर की कमाई लगा देता है ये प्रतिनिधि शहरों में एक रैकेट की तरह कार्य कर रहे हैं जिन पर किसी का कोई भी कोई नियंत्रण नहीं है।

मो : 9425004536

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