भोपाल। मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग के तत्त्वावधान में ज़िला अदब गोशा, भोपाल के द्वारा सिलसिला एवं तलाशे जौहर के तहत व्याख्यान एवं रचना पाठ का आयोजन 17 दिसंबर 2025 को महादेवी वर्मा हॉल, हिन्दी भवन, भोपाल में किया गया।
भोपाल में आयोजित सिलसिला एवं तलाशे जौहर के लिए मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ नुसरत मेहदी ने अपने संदेश में कहा कि मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी कई वर्षों से निरंतर नई काव्य-प्रतिभाओं की खोज में सक्रिय है। फ़िलबदी शायरी मुकाबलों के माध्यम से प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से उभरती आवाज़ों को पहचान और मंच दिया जा रहा है, और यह संतोष का विषय है कि ये प्रतिभाएँ आज बड़े साहित्यिक मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं।
भोपाल ज़िले के समन्वयक सैयद आबिद हुसैन ने बताया कि कार्यक्रम दो सत्रों पर आधारित था। प्रथम सत्र में दोपहर 2 :00 बजे तलाशे जौहर प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें ज़िले के नये रचनाकारों ने तात्कालिक लेखन प्रतियोगिता में भाग लिया। निर्णायक के रूप में भोपाल के उस्ताद शायर शाहिद सागरी एवं वरिष्ठ शायर अयाज़ क़मर मौजूद रहे जिन्होंने प्रतिभागियों शेर कहने के लिए दो तरही मिसरे दिये। दिये गये मिसरों पर नए रचनाकारों द्वारा कही गई ग़ज़लों एवं उनकी प्रस्तुति के आधार पर सा सैयद सरफ़राज़ अली ने प्रथम, एस एम मुबश्शिर ने द्वित्तीय एवं अरशद ख़ान ने तृतीय स्थान प्राप्त किया एवं ईशा को विशिष्ट पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले तीनों विजेता रचनाकारों को उर्दू अकादमी द्वारा पुरस्कार राशि क्रमशः 3000/-, 2000/- और 1000/- एवं प्रमाण पत्र दिए गये।
दूसरे सत्र में दोपहर 3:00 बजे सिलसिला के तहत व्याख्यान एवं रचना पाठ का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता भोपाल के वरिष्ठ साहित्यकार एवं शायर कौसर सिद्दीक़ी ने की। वहीं मुख्य अतिथि के रूप में अमेरीका से पधारे डॉ अब्दुल्लाह एवं विशिष्ट अतिथियों के रूप में शमीम ज़हरा एवं नफ़ीसा सुल्ताना अना मंच पर उपस्थित रहे। रचना पाठ में जिन शायरों ने अपना कलाम पेश किया उनके नाम और अशआर निम्न हैं :
तिरा साथ
एक समुन्दर है हवादिस का जो घेरे है मुझे
कश्ती ए ज़ात शिकस्ता है बहुत
ऐसे आलम में कोई हर्फ़े तसल्ली तेरा
एक पतवार सा लगता है मुझे
ऐसे आलम में तेरा हर्फ़े दुआ
बादबां कोई खुला ही हो जैसे
ऐसे असलम में तेरा हाथ
के मुसा का असा हो जैसे
रास्ता भी समुन्दर के बना हो जैसे
ऐसे आलम मे तीरा साथ के हमराह ख़ुदा हो जैसे
डॉ अब्दुल्लाह
अजब पतझड़ भरी तन्हाइयाँ हैं
कई पल पत्ता पत्ता झड़ रहे हैं
गुज़रते वक़्त के पैरों से दब कर
मुसलसल चुरमुराते उड़ रहे हैं।
उदासी पीले रंगों को पहन कर
दरख़्तों* पर उधर सिमटी हुई है
शजर* संग बेल जैसी यादे माज़ी*
कहीं इस ज़ेहेन* से लिपटी हुई है
शमीम ज़हरा
तज़ब्ज़ुब में मुझे रखती हैं अक्सर
कभी माइल कभी कतराई आंखें
नफ़ीसा सुल्ताना अना
मेरे दिल की है मिट्टी नम तो मैं इसमें
नए अंदाज़ की दुनिया उगाऊंगा
सलीम सरमद
मुझे ये याद रखना था कि ताल्लुक ख़त्म हैं सारे
तुम्हे क्यों भूल जाने में ज़माने लग गए फिर भी
शिफ़ाली पाण्डेय
अब ये बतलाओ के नख़रे भी उठा पाओगे
घर तो ले आए उसे इश्क़ का झांसा दे कर
मुज्तबा शहरोज़
अगरचे आज नहीं कल हिसाब मांगेगा
ज़मीर सबका सभी से जवाब मांगेगा
सुहैल उमर
बोझ होते हैं गुज़िश्ता कामयाबी के मक़ाम
भूलते रहिए पुराना कुछ नया करने के बा’द
मशग़ूल मेहरबानी
नाज़ कर कि तेरा चाक दामन कभी
कोई मैला नहीं कर सका ज़िंदगी
प्रशस्त विशाल
धूआँ धूआँ सा ये आलम दिखाई देता है
तुम्हारे हिज्र का मौसम दिखाई देता है
समीना क़मर
कार्यक्रम का संचालन रिज़वान उद्दीन फ़ारूक़ी द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अंत में ज़िला समन्वयक सैयद आबिद हुसैन ने सभी अतिथियों, रचनाकारों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।
















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