मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग द्वारा “अफ़साने का अफ़साना” के तहत “कथा साहित्य की नवीन प्रवृत्तियां” विषय पर वक्तव्य एवं कहानी पाठ का आयोजन 6 अगस्त, 2022 को शाम 5:00 बजे से जनजातीय संग्रहालय सभागार, श्यामला हिल्स, भोपाल में हुआ।
कार्यक्रम के प्रारंभ में उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि उर्दू अकादमी द्वारा हर वर्ष कथा साहित्य पर आधारित कार्यक्रम “अफ़साने का अफ़साना” के नाम से आयोजित होता है, इस वर्ष ये कार्यक्रम “कथा साहित्य की नवीन प्रवृत्तियां ” विषय पर हो रहा है। उन्होंने आगे कहा कि अदब के दो स्कूल ऑफ थॉट्स हैं, अदब बराय अदब, अदब बराय ज़िंदगी।
अदब बराय अदब, यानी मेरा दुख, मेरा सुख, मेरा ग़म मेरी ख़ुशी, मेरा एहसास, यानी स्वान्तः सुखाय, ठीक है, आप अदब के मैदान में एक दिन उस मक़ाम पर होते हैं कि जब आप अपने निजी एहसासात, जज़्बात ओ मुशाहिदात भी बहुत अहम हो जाते हैं और कई बार खुड़ अदब उससे फ़ायदा उठाता है। अक्सर शायरी में यह स्कूल ऑफ थॉट ज़्यादा काम कर रहा होता है।
यह बात महसूस कीजिये तो दूसरा स्कूल ऑफ थॉट अदब बराय ज़िंदगी, ज़्यादा अहम है। खासतौर से फिक्शन, नावेल, अफ़साने, शार्ट स्टोरीज़ में समाजी सरोकार, सोशल कंटेंट होना ही चाहिए। यह कोई नया विचार नहीं है खास तौर से भारत में तो बिल्कुल भी नया नहीं है। यहां के अदीब ने हमेशा से अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज मे जो कुछ अच्छा बुरा उसको visible किया है, उर्दू हिंदी दोनों ही ज़बानों के फिक्शन में सामाजिक चेतना, समाजी शऊर भरपूर मिलता है। आज इस की अहमियत और ज़रूरत दोनों बढ़ी हैं।
यही सब मक़ासिद को मद्दे नज़र रखते हुए उर्दू अकादमी के प्रोग्राम्स में हम कम से उर्दू हिंदी दोनों को जोड़ते हुए चलते हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात उपन्यासकार उषा किरन खान ने की। उन्होंने कहा कि अफ़साने का अफ़साना यही है कि कहानियां कभी ख़त्म नहीं होतीं। साहित्य में अनेक विधाएँ आईं, फिक्शन में भी कई विधाएँ हैं लेकिन कहानी ऐसी जो कभी ख़त्म नहीं हो सकतीं यही अफ़साने का अफ़साना है।
मशहूर साहित्यकार एवं आलोचक प्रो. शाफ़ेय क़िदवाई ने कहा कि जिसको हम हक़ीक़त या रियलिटी कहते हैं वो भी एक तरह का अफ़साना होती है जिसकी हम भाषा के द्वारा रचना करते हैं। कहानी की शैली कोई आसमान से नहीं उतरती बल्कि भाषा के द्वारा हम उसे कहानी बनाते हैं। इसके साथ ही उन्होंने समकालीन उपन्यासों विशेष प्रकार से फिक्शन में बदलाव आ आ रहे हैं उन पर प्रकाश डाला एवं समकालीन कहानीकारों एवं कहानियों पर भी, चर्चा की।
जयपूर से आए विख्यात साहित्यकार और राजस्थान साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक डॉ. इंदु शेखर तत्पुरुष ने हिंदी कथा साहित्य का भरपूर जाइज़ा लेते हुए कहा कि जैसे जैसे परिस्थियां बदलती हैं तो नई प्रवृत्तियां आती हैं. आज कथा साहित्य में बहुत सारी परिस्थितियां बदली हैं और हमारा कहानीकार उन्हें उकेरने की कोशिश करता हैं ताकि आप उनका नोटिस लें। ये सारा परिवर्तन जो नई कहानी या नए उपन्यास में आया तो यह जब आया जब भारत में पहली बार नॉवेल आया। कहानी कहने की चीज़ है। आपके पास ड्राफ़्ट नहीं है फिर भी आप हज़ारों सालों से कहानी सुना रहे हैं। लिखित ड्राफ़्ट नहीं है तब भी कहानी पीढ़ी दर पीढ़ी सफ़र कर रही है।
भोपाल के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मोहम्मद नौमान खान ने समकालीन उपन्यासों पर चर्चा करते हुए उर्दू के प्रसिद्ध उपन्यासों का वर्णन किया।
भोपाल की प्रसिद्ध कहानीकार डॉ. कांता राय ने लघुकथा साहित्य पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहाः दरअसल मनुष्य का प्रारंभिक साहित्य कथा प्रधान ही है। नाटक, उपन्यास, कहानी और प्रबंध काव्य के रूप में जो साहित्य प्रत्यक्षित है वह कथा साहित्य ही है। अर्थात परिणाम युक्त घटना का वर्णन जिसमें मनुष्य, जीव या जड़ पदार्थ के संबंध की किसी विशेष अवस्थाओं का आदि से अंत तक वर्णन हो, उसका सम्बन्ध कथा से ही है। कथा साहित्य हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन की समस्याओं को परस्पर समाजिक संबंधों को निभाते हुए करने का एक विशेष प्रकार का कथात्मक रूप विधान है।
इस अवसर पर भोपाल के वरिष्ठ साहित्यकार इक़बाल मसूद ने अफ़सानचों पर चर्चा की एवं कहानी काँच का आसमान पाठ किया, साथ ही डॉ. इशरत नाहीद लखनऊ ने अपनी कहानी “नई रिदा” एवं सबाहत आफ़रीन ने कहानी सुख की नींद का पाठ किया । कार्यक्रम का संचालन डॉ. मोहम्मद आज़म द्वारा किया गया ।
कार्यक्रम के अंत में डॉ. नुसरत मेहदी ने सभी श्रोताओं का शुक्रिया अदा किया।
अफ़साने का अफ़साना यही है कि कहानियां कभी ख़त्म नहीं होतीं : डॉ. उषा किरन खान

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