मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा सतना में “सिलसिला एवं तलाशे जौहर” के तहत स्वतंत्रता सेनानी लाल पद्मधर सिंह एवं मंज़र हाशमी की याद में विमर्श एवं रचना पाठ आयोजित

सतना। मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग के तत्त्वावधान में ज़िला अदब गोशा सतना के द्वारा सिलसिला एवं तलाशे जौहर के तहत सतना के महान स्वतंत्रता सेनानी लाल पद्मधर सिंह एवं प्रसिद्ध शायर मंज़र हाशमी की याद में विमर्श प्रसंग एवं रचना पाठ का आयोजन 10 सितम्बर 2023 को श्री रामाकृष्णा ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट, सतना में ज़िला समन्वयक अंबिका प्रसाद पांडेय के सहयोग से किया गया।
उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने कार्यक्रम की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ये जानकर ख़ुशी हुई कि पद्मधर सिंह जी की स्मृति में कार्यक्रम होते रहे हैं लेकिन ये सिलसिला जारी रहना चाहिए। यह भी प्रसन्नता का विषय है कि इस बार मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी ने उस सिरे को थाम लिया है, …हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिये…ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान के प्रति हम सबके दिल मे श्रद्धा की ज्योति जलती रहनी चाहिए।
यही बात हमारे दिवंगत साहित्यकारों के लिए भी कहती हूँ। मंज़र हाशमी साहब उर्दू ज़बान ओ अदब का बड़ा हवाला हैं, हम इस प्रोग्राम के ज़रिए उन्हें भी ख़िराजे अक़ीदत पेश करते हैं।
सतना ज़िले के समन्वयक अंबिका प्रसाद पांडेय ने बताया कि विमर्श एवं रचना पाठ दो सत्रों पर आधारित था। प्रथम सत्र में दोपहर 1:00 बजे तलाशे जौहर प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें ज़िले के नये रचनाकारों ने तात्कालिक लेखन प्रतियोगिता में भाग लिया। निर्णायक मंडल के रूप में रीवा के वरिष्ठ शायर तहूर मंसूरी निगाह एवं जाम रीवानी मौजूद रहे जिन्होंने प्रतिभागियों शेर कहने के लिए दो तरही मिसरे दिए। दिये गये मिसरों पर नए रचनाकारों द्वारा कही गई ग़ज़लों पर एवं उनकी प्रस्तुति के आधार पर निर्णायक मंडल के संयुक्त निर्णय से हर्षवर्धन सिंह ने प्रथम, निलय मंडल ने द्वित्तीय एवं दीपक दीक्षित ने तृतीय स्थान प्राप्त किया।
प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले तीनों विजेता रचनाकारों को उर्दू अकादमी द्वारा पुरस्कार राशि क्रमशः 3000/-, 2000/- और 1000/- एवं प्रमाण पत्र दिए जाएंगे।
दूसरे सत्र में दोपहर 3 बजे सिलसिला के तहत विमर्श एवं रचना पाठ का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता अरुण कुमार मिश्र ने की। वहीं मुख्य अतिथि के रूप में अब्दुल ग़फ़्फ़ार और विशिष्ट अतिथि के रूप में बालेन्दु प्रभाकर मिश्र उपस्थित रहे। इस सत्र के प्रारंभ में सतना के साहित्यकार एवं शायर अनिल अयान और अब्दुल रफ़ीक़ सतनवी ने सतना के महान स्वतंत्रता सेनानी लाल पद्मधर सिंह एवं प्रसिद्ध शायर मंज़र हाश्मी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
अनिल अयान ने महान स्वतंत्रता सेनानी लाल पद्मधर सिंह को याद करते हुए कहा कि दादा धीर सिंह के नाती लाल पद्मधर सिंह जैसे युवा को देशप्रेम के लिए शहीद होना ही था, यह हम सब सतना, कृपालपुर क्षेत्र के माटी के रहवासियों के लिए गौरवान्वित करने का मौका है, उर्दू अकादमी ने उनकी याद में आयोजन करवाया इसके लिए अकादमी को साधूवाद देता हूँ, 14 अक्टूबर 1913 में पैदा हुए और 12 अगस्त 1942 को देश और तिरंगा के लिए सीने में डंके की चोट पर अंग्रेजों को गोली चलाने की चुनौती देने और गोलियाँ खाने वाले पद्मधर सिंह ने बता दिया कि नदी चाहे तमसा हो या त्रिवेणी पंचज की माटी का करज विन्ध्य का युवा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने मात्र उम्र के तीस बसंत पूरा करने के बाद ही भारत माता को नमन करके चला गया|
रफ़ीक़ सतनवी ने मंज़र हाशमी की शायरी के बारे में बात करते हुए कहा कि उनका शायरी करने का मकसद उर्दू ज़बान को फ़रोग़ देना था आपको उर्दू से लगाव इतना था कि जब भी शहर मे नशिस्त वग़ैरह होती तो आप एक शिक्षक होने के बाद भी हर वो काम करते जिसको आज के नौजवान नहीं कर सकते जैसे नशिस्त के लिए लोगों को ख़बर देना दरी बिछाना और माइक नाश्ते वगैरह का इन्तेजाम करना।
सतना शहर मे एक बज्म ए अदब है जिसमें सालो साल आप सेक्रेट्री और अदबी संगम सतना के सेक्रेट्री के ओहदे पर रहकर उर्दू की ख़िदमत करते रहे।
आपकी पहली किताब पसे मंजर जो 2009 मे मंज़रे आम पर आई इसको आपने अपने बडे भाई जनाब मरहूम सदफ़ अली साहब को मनसूब किया जो मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी की आर्थिक सहायता से प्रकाशित किया गया। आपकी दूसरी किताब आहटें जो 2011 मे मंज़रे आम पर आई ।जिसको आपने अपने बडे भाई मरहूम अकबर अली साहब को मनसूब किया।जिस मेहनत से आपने उर्दू की ख़िदमत की उसके हिसाब से आप मुत्मइन न थे।आप कहते थे कि “मंजर मियां को कुछ न मिला शेर गोई मे।
वो तो अदब की बज़्म सजाने मे रह गए।”
रचना पाठ में जिन शायरों ने अपना कलाम पेश किया उनके नाम और अशआर निम्न हैं :

नींदों को कहीं दूर खदेड़ा हमने
पाला नहीं ख़्वाबों का बखेड़ा हमने
आराम से फिर रात के सन्नाटे में
खुदको ही कई बार उधेड़ा हमने
तहूर मंसूरी निगाह

प्यार का मुझको क्या सिला दोगे,
दर्द ए दिल दोगे और क्या दोगे।
जाम रीवानी,

क्या मिटा पाऐंगी उन्हें ज़माने की गर्दिशें
जो लोग सदा हलेथी पे अपनी जान रखते हैं
-अब्दुल गफ़्फार

हमने जो कैक्टस उगाए बाग़ में
शाख-ए उल्फत में फले हैं इन दिनों।
-अरूण कुमार मिश्र

फ़ुजूल बातों की आदत हमें नहीं, वरना
हम भी इंसान हैं, हम भी ज़ुबान रखते हैं।
-आर वी सुमन

ना मरे भूख से प्यास से अब कोई
हर तरफ़ हो अमन वो वतन चाहिये
-अजीत सिंह

सारी दुनिया से प्यारा हमारा वतन,
सबकी आंखों का तारा हमारा वतन,
-सलाम सतनवी

लौटे तो घर की खिड़कियां दीवार हो गयीं
ज़्यादा नफ़े की धुन में ज़ियाँ ले लिया गया
-दीपक शर्मा दीप

कुरआन गीता की वाणी का रस लिया जाए
बुज़ुर्ग लोगों से सत्संग भी किया जाए
कहीं से प्यार मोहब्बत की जो महक आये
दुआएं प्यार का तोहफा हैं ले लिया जाए
-साहिर रीवानी

तुम्हारे हुस्न की दीवानगी सताती है
तुम्हारे इश्क़ का छाया है अब ख़ुमार मुझे।
पुरनम सुल्तानपुरी

मुश्किलों के दौर पर अनुभव हुआ संसार का।
आदमी की सोच का गुण दोष का व्यवहार का।
-तामेश्वर प्रसाद शुक्ल

कार्यक्रम का संचालन मयंक अग्निहोत्री द्वारा किया गया।
कार्यक्रम के अंत में ज़िला समन्वयक अंबिका प्रसाद पांडेय ने सभी अतिथियों, रचनाकारों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।

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