साँची विश्वविद्यालय में मनाई गई डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जयंती 

भोपाल : साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जयंती पर विशिष्ट आयोजन हुआ। साँची विवि के कुलगुरु प्रो. वैद्यनाथ लाभ की अध्यक्षता में हुए इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सम्राट अशोक अभियांत्रिकीय संस्थान, विदिशा के निदेशक प्रोफेसर योगेन्द्र कुमार जैन रहे।

कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के चित्र पर माल्यार्पण से हुआ। प्रोफेसर योगेन्द्र कुमार जैन ने अपने सम्बोधन में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के आदर्शों और उनके योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि डॉ राजेन्द्र प्रसाद 1915 में एलएलएम गोल्ड मेडल करने और अच्छी खासी वकालत को छोड़कर गांधीजी के आदर्शों पर चलते हुए पहले क्रांतिकारी फिर संविधान निर्माता और बतौर राष्ट्रपति देश को सेवाएं दी। उन्होने कहा कि राजेन्द्र बाबू का पूरा जीवन ही एक अनुकरणीय पाठ है जिसे अपनाकर हम अच्छे नागरिक और देशभक्त बन सकते है। 

कुलगुरु प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने अपने उद्बोधन में कहा कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की सादगी और सेवा भावना आज भी हमारे लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के जीरादेही में जन्में राजेन्द्र बाबू की परीक्षा कॉपी चेक करते हुए शिक्षक ने टीप लिखी थी कि परीक्षार्थी कॉपी चेक करने वाले से ज्यादा विद्वान है। प्रो लाभ ने कहा कि उन्होने अंतरिम सरकार में कई पद संभाले और 26 नवबंर 1949 को संविधान सभा के निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए। उनकी सादगी की चर्चा करते हुए कुलगुरु ने बताया कि राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद वो अपने गाँव चले गए और वहां स्कूल में पढ़ाने लगे। उनके द्वारा ही प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन हुआ जहां वे पंडित नेहरु के विरोध के बावजूद गए थे। प्रो लाभ ने बताया कि 10 हजार की तनख्वाह में खर्च हेतु सिर्फ 2 हजार ही लेते थे। 

कुलसचिव एवं अधिष्ठाता प्रो नवीन कुमार मेहता ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि बतौर राष्ट्रपति रहते हुए डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने अपने नौकर से भी माफी मांग ली थी जो कि उनकी महानता का प्रतीक है। 

कार्यक्रम के अंत में सभी उपस्थित जनों ने मिलकर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जयन्ती को यादगार बनाने का संकल्प लिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *