भोपाल। अखिल भारतीय साहित्य परिषद, भोपाल इकाई द्वारा आयोजित देशभक्ति गोष्ठी में देशभक्ति और साहित्यिक संवेदनाओं का अनूठा संगम देखने को मिला। कार्यक्रम की अध्यक्षता परिषद की भोपाल इकाई की अध्यक्ष एवं उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने की।
अपने उद्बोधन में डॉ. नुसरत मेहदी ने कहा, “देशभक्ति सीमित शब्द नहीं है। इसका दायरा असीम है। यदि हम अपने कर्तव्यों का पालन पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से करते हैं, तो वह भी देशभक्ति है। प्रत्येक युग की अपनी आवश्यकताएँ होती हैं और उन ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करना भी देशभक्ति है।”
उन्होंने अपने वक्तव्य के दौरान एक खूबसूरत गीत प्रस्तुत किया:
“हर तरफ महकी हुई मेरे वतन की खुशबू,
मेरी हर सांस में बसती है चमन की खुशबू।”
मुख्य अतिथि का संबोधन
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, अखिल भारतीय साहित्य परिषद के संरक्षक और पूर्व अध्यक्ष, वरिष्ठ गीतकार डॉ. राजेंद्र शर्मा ‘अक्षर’ ने कहा, “हमारी संस्था नई पीढ़ी को साहित्य के माध्यम से संस्कारित करने का कार्य कर रही है। हम गीत और गद्य लेखन की बारीकियों को सिखाकर नई प्रतिभाओं को जोड़ने का प्रयास करते हैं।”
उन्होंने भी देशभक्ति से ओत-प्रोत गीत प्रस्तुत किया:
“जब किसान अपने हल से सोना उपजाता है,
तब सैनिक सीमा पर अपना खून बहाता है।”
देशभक्तिपूर्ण रचनाओं का पाठ
गोष्ठी में वरिष्ठ और युवा रचनाकारों ने अपनी देशभक्तिपूर्ण कविताओं और रचनाओं का पाठ किया। प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार रहीं:
राजेंद्र शर्मा ‘राही’ –
“जागो उठो करो जनहित के, प्रतिदिन ऐसा काज,
अखिल विश्व में जिससे भारत बना रहे सरताज।”
राम माहेश्वरी –
प्रकृति की चिंता पर आधारित कविता:
“पेड़ों के आँसुओं से बेखबर बादलों की बेतहाशा दौड़ में,
उड़ते धुएँ के गुबार विकास के प्रतिबिंब बन गए हैं।”
होशियार सिंह पटेल –
“पितामह भीष्म सम जय अटल हिंद नंदनम।”
डॉ. राजेश तिवारी –
“वो कंधे पे हल ले के जाता है कौन?
सुबह को गया, शाम को आता है कौन?”
बिहारी लाल सोनी –
“सिर ऊँचा हुआ हिमालय का, तुमने ऐसे काम किया।”
हरिओम श्रीवास्तव –
“गणतंत्र हमारा अमर रहे, जय हिंद हमारा नारा हो।”
चंदर –
“जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो, देश बचाओ, देश को जोड़ो।”
मालिक सिंह ‘मलिक’ –
“भूखे पेट कभी न कोई शेर बना है यारों,
उजड़े चमन में कभी न फूल खिला है यारों।”
राम मोहन चौकसे –
“तिमिर को चीरकर रख देता है छोटा सा दीया,
उसकी औकात कद पर उँगली न उठाइए।”
सरोज लता सोनी –
“रही है शान भारत की, कि अब लज्जित कभी न हो।”
दिनेश गुप्ता ‘मकरंद’ –
“देश के दीवाने हैं तो, फिर दिल में यह अरमान रहे,
इस जगती में विश्व शिरोमणि अपना हिंदुस्तान रहे।”
सतीश श्रीवास्तव ‘सागर’ –
“चाहे जितनी मुश्किल आए, चाहे जितना गम,
पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण, एक रहेंगे हम।”
राजेश विश्वकर्मा और मांडवी सिंह ने पर्यावरण और भाईचारे पर आधारित रचनाओं का पाठ किया।
गोष्ठी के प्रारंभ में खुशी विजयवर्गीय द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई। परिषद गीत मांडवी सिंह द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का सुंदर संचालन युवा कवि राजुल द्वारा किया और आभार प्रदर्शन परिषद के कर्मठ कार्यकर्ता राजेश विश्वकर्मा ने किया।
इस अवसर पर भोपाल के वरिष्ठ साहित्यकारों और सुधिजनों की गरिमामयी उपस्थिति ने कार्यक्रम को सफल और यादगार बना दिया।
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