भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में नृत्य,गायन एवं वादन पर केंद्रित गतिविधि “संभावना” का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें 19 जनवरी, 2025 को सुश्री सुमन परस्ते एवं साथी, डिण्डोरी द्वारा गोण्ड जनजातीय सैला नृत्य़, श्री दीपेश पाण्डेय एवं साथी, सागर द्वारा बुन्देली बधाई नृत्य एवं पंजाबी लोक गायक स्वर्गीय प्यारे लाल वडाली के पुत्र श्री सतपाल वडाली एवं साथी, अमृतसर द्वारा पंजाबी लोक गायन की प्रस्तुति दी गई। गतिविधि की शुरूआत श्री सतपाल वडाली एवं साथी, अमृतसर द्वारा पंजाबी लोक गायन की प्रस्तुति दी। उन्होंने तुझे देखा तो लगा मुझे ऐसे की जैसे मेरी ईद हो गई…, तू माने या न माने दिलदारा…., लगन लागी तुम से मन की…, हल का हलका खुमार है…, दमा दम मस्त कलंदर…, जैसे कई पंजाबी गीतों की प्रस्तुति दी।
इसके बाद सुश्री सुमन परस्ते एवं साथी, डिण्डोरी द्वारा गोण्ड जनजातीय सैला नृत्य़ की प्रस्तुति दी गई। सुदूर छत्तीसगढ़ से लगाकर मंडला के गोंड और बैगा जनजातियों तक इसका विस्तार मिलता है। सैला नृत्य शरद ऋतु की चाँदनी रातों में किया जाता है। हाथों में लगभग सवा हाथ के डंडे के कारण इसका नाम सैला पड़ा। आदिदेव को प्रसन्न करने के लिए सैला नृत्य का प्रचलन है। कहते हैं सरगुजा की रानी से अप्रसन्न होकर आदिदेव बधेसुर अमरकंटक चले गये थे, वहाँ के बाँसों को काटकर इस नृत्य का प्रचलन हुआ। करमा-सैला गोंड जनजाति का लोकप्रिय नृत्य है।


अगले क्रम में श्री दीपेश पाण्डेय एवं साथी, सागर द्वारा बुन्देली बधाई नृत्य की प्रस्तुति दी गई। बुन्देलखण्ड अंचल में जन्म विवाह और तीज-त्यौहारों पर बधाई नृत्य किया जाता है। मनौती पूरी हो जाने पर देवी-देवताओं के द्वार पर बधाई नृत्य होता है। इस नृत्य में स्त्रियाँ और पुरुष दोनों ही उमंग से भरकर नृत्य करते हैं। बूढ़ी स्त्रियाँ कुटुम्ब में नाती-पोतों के जन्म पर अपने वंश की वृद्घि के हर्ष से भरकर घर के आंगन में बधाई नाचने लगते हैं। नेग-न्यौछावर बांटती हैं। मंच पर जब बधाई नृत्य समूह के रूप में प्रस्तुत होता है, तो इसमें गीत भी गाये जाते हैं। बधाई के नर्तक, चेहरे के उल्लास, पद संचालन, देह की लचक और रंगारंग वेशभूषा से दर्शकों का मन मोह लेते हैं। इस नृत्य में ढपला, टिमकी, रमतूला और बांसुरी आदि वाद्य प्रयुक्त होते हैं।
मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय़ में प्रति रविवार आयोजित होने वाली इस गतिविधि में मध्यप्रदेश के पांच लोकांचलों एवं सात प्रमुख जनजातियों की बहुविध कला परंपराओं की प्रस्तुति के साथ ही देश के अन्य राज्यों के कलारूपों को देखने समझने का अवसर भी जनसामान्य को प्राप्त होगा। यह नृत्य प्रस्तुतियां संग्रहालय परिसर में आयोजित की जायेंगी। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय परिसर में प्रति रविवार दोपहर 02 बजे से आयोजित होने वाली गतिविधि में मध्यप्रदेश के पांच लोकांचलों एवं सात प्रमुख जनजातियों की बहुविध कला परंपराओं की प्रस्तुति के साथ ही देश के अन्य राज्यों के कलारूपों को देखने समझने का अवसर भी जनसामान्य को प्राप्त होगा।
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