विनोद नागर
मध्य प्रदेश सरकार ने सिनेमा और पर्यटन को एक दूजे का पूरक मानते हुए अपनी मौजूदा फिल्म पर्यटन नीति को नये सिरे से परिभाषित करने की कवायद की है। प्रदेश को फिल्म पर्यटन अनुकूल राज्य बनाने के उद्देश्य से इस परिष्कृत ‘फिल्म पर्यटन नीति-2025’ को मंगलवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में हुई मंत्रि-परिषद की बैठक में मंजूरी दी गई।
कहा जा रहा है कि परिमार्जित नीति से राज्य में निवेश और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। स्थानीय प्रतिभाओं और फिल्म निमार्ताओं को इसका समुचित लाभ मिले, इसका ध्यान भी नई नीति में रखा गया है। खास तौर पर मालवी, निमाड़ी, बुंदेलखंडी और बघेलखंडी जैसी आंचलिक बोलियों सहित गोंडी, भीली और कोरकू जैसी स्थानीय जनजातीय बोलियों में फिल्म निर्माण को बढ़ावा देने की सार्थक पहल पहली बार की गई है। अब यह स्थानीय फिल्मकारों पर निर्भर करेगा कि वे नये प्रावधानों का लाभ उठाने के लिये आगे आएँ। क्योंकि इस श्रेणी में फिल्म निर्माण के लिये कुल लागत के 10 प्रतिशत अतिरिक्त अनुदान का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा नारी केन्द्रित फिल्मों और बच्चों के लिये बनाई जाने वाली बाल फिल्मों को प्रोत्साहित करने के लिये भी आवश्यक वित्तीय अनुदान स्थानीय फिल्म निमार्ताओं को प्राथमिकता के आधार पर मिल सकेगा।
हालाँकि नई नीति में मराठी, बंगाली सहित अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में फिल्म निर्माण को बढ़ावा देने की नीति पर अमल करते हुए भी आवश्यक प्रावधान किये गये हैं। साथ ही ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों/व्यक्तित्वों पर आधारित फीचर फिल्मों/ शॉर्ट फिल्मों के निमार्ताओं को भी इन रियायतों का फायदा मिलेगा।
नई नीति में पहली बार राज्य में नये एकल सिनेमाघरों के निर्माण और मौजूदा सिनेमाघरों के उन्नयन के लिए वित्तीय सहायता देने की पेशकश वाकई स्वागतयोग्य है। इसके अलावा स्थानीय फिल्म निमार्ताओं की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त डॉक्यूमेंट्री फिल्मों की हौसला अफजाई के लिए पीठ थपथपाने के उपाय भी किये गये हैं। गौर तलब है कि मध्य प्रदेश में फिल्म शूटिंग की अनुमति देने के लिये सिंगल विण्डो सिस्टम पहले ही लागू किया जा चुका है। इसे पब्लिक सर्विस गारंटी एक्ट के तहत शामिल किया गया है। फिल्म निर्माण संबंधी अधोसंरचना विकास के लिए निवेश को आकर्षित करने के प्रयास भी किये जा रहे हैं।
कुल शूटिंग का दो तिहाई यानि 75 प्रतिशत हिस्सा मध्य प्रदेश में फिल्माये जाने पर फीचर फिल्म श्रेणी में अधिकतम 2 करोड़ रुपए, वेब सीरीज के लिए डेढ़ करोड़ रुपए, टीवी-शो/ सीरियल्स के लिए 1 करोड़ रुपए तथा डॉक्युमेंट्री के लिए 40 लाख रुपए के अनुदान की व्यवस्था की गई है।अंतर्राष्ट्रीय फीचर फिल्म के लिए यह अनुदान राशि अधिकतम 1.3 मिलियन अमेरिकी डॉलर (भारतीय मुद्रा में 10 करोड़ रुपए तक) और शॉर्ट फिल्मों के लिए 15 लाख रुपये तक हो सकती है।
इसमें कोई शक नहीं कि विगत कुछ वर्षों में मध्य प्रदेश देश में फिल्म शूटिंग का हब बनकर उभरा है। साढ़े तीन सौ से अधिक फिल्मों, टीवी सीरियल और वेब सीरीज की शूटिंग राज्य के विभिन्न भागों में हुई है। मध्य प्रदेश में शूटिंग करने का लाभ दस हिन्दी फीचर फिल्मों, एक तेलुगू फिल्म और चार वेब सीरीज को कुल 21 करोड़ रुपए के वित्तीय अनुदान के रूप में मिल चुका है। इन्हीं तमाम उपलब्धियों के चलते मध्य प्रदेश को 2022 में ‘मोस्ट फिल्म-फ्रेंडली स्टेट का पुरस्कार प्राप्त हुआ है। हाल के वर्षों में भूल भुलैया-3 फुकरे-3 धड़क-2 स्त्री-2 डंकी, लापता लेडीज, लव की अरेंज मैरेज, सेल्फी, पोन्नियिन सेल्वन, औरों में कहाँ दम था, पटना शुक्ला, जरा हटके जरा बचके जैसी फिल्में और गुल्लक, पंचायत, कोटा फैक्ट्री, सिक्सर, सिटाडेल (हनी बन्नी), द रेलवे मेन जैसी लोकप्रिय वेब सीरीज मध्य प्रदेश में फिल्माई गई हैं।अनुमान है कि सात सौ करोड़ रुपए की लागत वाली इन फिल्मों/ वेब सीरीज का फिल्मांकन राज्य में होने से एक से डेढ़ लाख मानव दिवसों का अस्थायी रोजगार सृजन भी हुआ है। उम्मीद की जानी चाहिये कि नये साल में आई नई फिल्म पर्यटन नीति से राज्य के फिल्म निमार्ताओं खासकर युवा फिल्मकारों को इसका यथोचित लाभ अवश्य मिलेगा। मध्य प्रदेश को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फिल्म निर्माण के जरिये की एक नई पहचान दिलाने का भी यह एक सुनहरा मौका सिद्ध हो सकता है।
अस्सी के दशक में मध्य प्रदेश फिल्म विकास निगम की फिल्म पत्रिका ‘पटकथा’के अनेक संग्रहणीय अंक निकालने वाले प्रबुद्ध संपादक श्री राम तिवारी (जो इन दिनों मुख्यमंत्री के सांस्कृतिक सलाहकार भी हैं) मानते हैं कि यह नई नीति राज्य के गौरवशाली इतिहास, सांस्कृतिक वैभव और लोक परम्पराओं को सिनेमा के जरिये दुनिया भर में पहुँचाने में अहम् भूमिका निभाएगी।
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