संदीप राशिनकर
शब्दों से
परहेज को सहेज
मैं चाहता हूँ लिखना
तुम्हें
एक प्रेम पत्र बड़ा-सा
बहुत बड़ा
पाताल से आकाश तक का
विस्तार लिये।
मैं
लहरों का संगीत
चाहता हूँ
समुद्र की गर्जना
बादल अपने आकारों में
सूर्योदय की अर्चना
व्यक्त करें वो भाव
गा उठें तुम्हारे लिए
जो शब्दों से परे वितान पर
शब्द रहित वो गीत
भावाभिव्यक्ति की
जो गुंजायमान रहे
सृष्टि के अंत तक।
अनुगूँज बन उभरे।
मैं शब्द नहीं
तुम्हें
सौंपना चाहता हूँ
एक नाद, एक ध्वनि
जो युगों-युगों तक
होती रहे निनादित
तुम्हारे
अंतरिक्ष में।
सम्पर्क: आपले वाचनालय राजेन्द्र नगर, इन्दौर
मो.: 9425314422
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