होली की राख से कंकर बीनकर लाती हैं गाँव की महिलाएं
हेमंत उपाध्याय
खंडवा l पूरे निमाड़ क्षेत्र में इन दिनों गणगौर पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है l शहर हो या गांव, महिला-पुरुष,युवा हो या बच्चे या फिर बुजुर्ग सभी इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं l कईं गांव ऐसे हैं जहां वर्षों से यह पर्व परंपरागत रूप से मनाया जाता है l अनेक जगह बाडियाँ सोमवार को देवी के रथ सजाकर रनुबाई व धनियर राजा के रथों में जवारों की टोकनिया रखी गई l कई जगह बाडियाँ 1 अप्रेल को खुली l जिनके बच्चों की मान थी वो सरवालिया भी रनु बाई के रथों में रख कर ले गये l भरी बाड़ी की पूजा की गई, अनेक बालक बालिकाओं का तुला दान भी हुआ l पांच नारियल से गोद भरी गई l कईं परिवारों ने साडी़ चढाई, रनुबाई -धनियर राजा के रथों को अपने- अपने घर ले गए l संध्या के समय घर के आंगन में गाय के गोबर से लीप कर दरी या चटाई बिछा कर रथों को रख कर झलरिये दिये गए l प्रतिदिन कन्याएं बाड़ी में जा कर फूल पत्ती लाती थी l इस त्यौहार में पाती गीत खेत की बाड़ी में व देवी की भरी बाड़ी के सामने गाए जाते हैं l उसी अनुसार प्रति दिन रात्रि मैं बाड़ी में महिलाओं ने एकत्र हो कर रनुबाई के भजन गीत गाए l जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर एक ऐसा ही गांव है जहां स्थानीय निवासियों के अनुसार लगभग 300 वर्षो पूर्व से यह पर्व मनाया जा रहा है l पहले प्रमुख रूप से यहां उपाध्याय परिवार गणगौर कि बाड़ी बो रहा था, किंतु तीन वर्षो से अब गुर्जर मोहल्ले में पंडित राधे गोविंद मुजमेर ने यह जिम्मा उठाया है l उनके घर 24 मार्च सोमवार को महिलाओं द्वारा होली की राख से कंकर बिन कर गोर की बाड़ी में स्थापना की गई है l 28 मार्च को माता की घुँघरी बनी सब को बाटी गई l नाड़े से देवी का माथा गुंथा गया,31 मार्च को बाड़ी खुली और माता जग माई हो गई l
उल्लेखनीय है कि पद्मश्री राम नारायण उपाध्याय ने गणगोर को नारी जीवन का गीति काव्य कहा है l
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