शिशिर उपाध्याय
सुनो कश्मीर मत देना, सुनो कश्मीर मत देना
मदीने सा वो हजरतबल, भवानी खीर मत देना
सुनो कश्मीर मत देना
नदी झेलम जहां पर सैकड़ो उपवन खिलाती है,
सरित-सिंधु, हिंदू-मुसलमां दिल मिलती है,
सिकारे डल के जल में रात भर उत्सव मनाते हैं।
के चश्मे – शाही प्यासों को जहां अमृत पिलाती है,
तुम उनका नीर मत देना
सुनो कश्मीर मत देना
हिमालय पर जहाँ लद्दाख- लेह और सोन – कंगन है,
अवंतीपुर में केसर से सुवासित, सर्द आंगन है
गुफा में अमर बाबा बर्फ की धूनी रमाए हैं
हजारों शीश सावन में जहाँ पर करते वंदन हैं
शिव की शमशीर मत देना
सुनो कश्मीर मत देना
निगाहें पाक के नापाक और हरकत घिनौनी है,
काटकर शीश रिपुओं के हमें माला पिरौनी है
जरा इतिहास के पन्ने पलट के देख लेना पाक,
हमारे सामने औकात तेरी, आँनी- पौनी है।
मेरी तकदीर मत देना
सुनो कश्मीर मत देना
मेरा भारत ये हिंदुस्तान, ये सोने की चिड़िया है,
सभी जातों सभी बातों सभी धर्मों में बढ़िया है,
हमेशा से जिसे माई ने माथे पर बिठाया है
मेरी माँ भारती की लाड़ली कश्मीरी गुड़िया है,
तुम उसका चीर मत देना
सुनो कश्मीर मत देना
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