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है वक्त बदलने का

शरदचंद्र त्रिवेदी

आचार बदल लेना व्यवहार बदल लेना
है वक्त बदलने का किरदार बदल लेना
घाटे ही घाटे हैं, जज्बात के सौदों में
हो शर्त मुनाफा तो व्यापार बदल लेना
सच कहती है लेकिन, खबरें भी सियासत है
गर रास न आए तो अखबार बदल लेना
तकरीर भी है मुमकिन तहरीर मुनासिब है
आँखों के इशारों का इजहार बदल लेना
लश्कर भी हो बेहतर लड़ने का भी हो जज्बा
फिर भी न फतह हो तो सरदार बदल लेना

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