-विनोद नागर
एक अज़ीम शायर के बतौर नाम जरूर उनका राहत इन्दौरी था, पर उनके अंदर एक बेचैन आत्मा समाई हुई थी। कभी यह बेचैनी फिरकापरस्ती को लेकर आग उगलती थी तो कभी इन्सान की बुरी प्रवृत्तियों के खिलाफ उभरकर सामने आती थी। वे सामाजिक सरोकारों के निर्भीक शायर थे। तभी तो उन्हें मुशायरों में पढ़ने के लिए दुनियाभर में पूरे ऐहतराम से बुलाया जाता था। दीवानावार श्रोताओं की अपार भीड़ राहत इन्दौरी को उनकी खास फायरब्रांड शैली में सुनने के लिए उमड़ती थी।
रानीपुरा झंडाचौक से इस्लामिया करीमिया होते हुए जब वे डॉक्टर राहत इन्दौरी हो गये तब भी, हर दौर में उनका अक्खड़पन उनके मिजाज़ पर हावी रहा।
2006 में आकाशवाणी इन्दौर के स्वर्ण जयंती समारोह में केन्द्र निदेशक हरेंद्र कोटिया जी ने पहली पंक्ति में विराजमान राहत भाई से मेरी पहली मुलाकात कराई थी। कार्यक्रम खत्म होने तक यह औपचारिक भेंट आत्मीयता का लिबास ओढ़ चुकी थी। लेखन, पत्रकारिता और रंगकर्म में सक्रिय उनके अनुज आदिल कुरैशी से भी बरास्ते देवास अपनापन पहले ही विकसित हो चुका था। इन्दौर में दशकों तक मेरे अभिन्न मित्र रहे यूनीवार्ता के रिपोर्टर (स्व.) शरद शिन्दे अक्सर राहत भाई के झंडा चौक वाले नायाब किस्से सुनाया करते थे।
दीगर शायरों की तरह राहत भाई ने भी अपने नाम के साथ शहर के नाम को हमेशा के लिए चस्पां कर लिया था। बॉलीवुड में असद भोपाली और नूर देवासी की तरह राहत इन्दौरी ने भी कई फिल्मों में गीत लिखे। फिल्मों में गीत लिखने का पहला मौका उन्हें महेश भट्ट ने 1993 में अपनी फिल्म ‘सर’ में दिया था। इस फिल्म का ‘आज हमने दिल का हर किस्सा’ बेहद लोकप्रिय हुआ था।
मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी, नाराज, जुर्म, खुद्दार, मुन्ना भाई एमबीबीएस, मिशन कश्मीर, मर्डर, करीब, मिशन कश्मीर, जेंटजलमेन, जान, घातक, इश्क, मैं तेरा आशिक, दरार, बेकाबू, हिमालयपुत्र, तमन्ना, गुंडाराज, नाजायज, टक्कर, गली गली में चोर है सहित कई फिल्मों में राहत भाई के लिखे गीत हमेशा उनकी याद दिलाएंगे। विद्या बालन की बेगम जान में भी उनका लिखा एक गीत था। रेडियो टीवी पर लोकप्रिय हुए इन गीतों ने यकीनन इन्दौर शहर का रूतबा बुलंद किया।
असल जिंदगी में अनगिनत प्रशंसकों के अलावा जिस सोशल मीडिया पर उनके पचपन लाख से ज्यादा अनुगामी थे, उसी पर जिंदगी के आखिरी वक्त में लिखी एक पोस्ट में उन्होंने कोरोना संक्रमण के खतरों को चुनौती देते हुए अपने शायराना तेवर इन लफ्जों में दिखाये थे- “शाखों से टूट जायें वो पत्ते नहीं हैं हम.. कोरोना से कोई कह दे कि औकात में रहे..!” राहत भाई आप जाते जाते भी लोगों को एक नामुराद बीमारी से लड़ने का जज्बाती हौसला देकर गये हैं। ऊपरवाला आपकी रूह को राहत बख्शे। गीतकार जावेद अख्तर ने अपने संवेदना संदेश में राहत साहब को दो टूक बात कहनेवाले शायरों की गुम होती जा रही पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाला शायर निरूपित किया है।
साभार – विनोद नागर जी की फेसबुक वॉल से