भोपाल। जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, भोपाल द्वारा लिखन्दरा परिसंवाद की मासिक श्रृंखला में ‘धर्मयोद्धा बिरसा ‘ विषय पर परिसंवाद का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य वक्ता डॉ. भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी दिल्ली के सहायक प्राध्यापक डॉ. आनंद वर्धन ने विषय पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। इस अवसर पर परिसंवाद की प्रस्तावना जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी के निदेशक डॉ धर्मेंद्र पारे एवं स्वागत उद्बोधन संयोजक श्री राहुल सिंह परिहार व संचालन शुभम चौहान ने किया। वक्ता डॉ आनंद वर्धन ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि बिरसा बचपन से ही अपनी परंपराओं के प्रति प्रतिबद्ध थे, उन्होंने राष्ट्रवाद और धर्म दोनों के लिए अपना योगदान दिया। हमारे पास जनजातीय नायकों की गौरवशाली परंपरा रही हैं, इसी परंपरा में बिरसा श्रेष्ठतम नायक हैं। उन्हें समाज ने भगवान के रूप में स्वीकार किया। बिरसा को देखने के लिए सम्यक दृष्टि विकसित करने की आवश्यकता है। बिरसा के योगदान को कम करके दिखाने के लिए सुनियोजित प्रयत्न किए गए, इसीलिए इतिहास के पृष्ठों में बिरसा को वह स्थान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे। बिरसा के अंदर परंपरा का गहरा प्रभाव है , उन्होंने उपनिवेशवाद का विरोध विवेकपूर्ण तरीके से किया। बिरसा किसी भी शिक्षा पद्धति के गुलाम नहीं हो सके, वे बचपन से ही प्रभावशाली और मेधावी थे। उनके जीवनकाल को अलग-अलग चरणों में समझने की आवश्यकता है। उन्होंने ताप और साधना के महत्व को समझा। वे अहिंसा के प्रबल पक्षधर और स्वाभिमान की दिव्य मूर्ति थे। उन्होंने सदैव सनातनता के मार्ग को स्वीकार किया और राष्ट्र धर्म में अपना सर्वस्व बलिदान दिया। परिसंवाद के समापन सत्र में जिज्ञासु प्रतिभागियों द्वारा प्रश्न-उत्तर किए गए।
जनजातीय संग्रहालय में लिखन्दरा परिसंवाद में धर्म योद्धा बिरसा विषय पर परिसंवाद

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