सुखदेव राव चौरे,
महाकवि श्री तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में बालकाण्ड के दोहा क्रं 46 में समसामयिक विषय पर एक रोचक प्रसंग का वर्णन किया है । एक राम अवधेस कुमारा । तिन्ह कर चरित बिदित संसारा ।। नारि बिरह दुखु लहेउ अपारा। भयउ रोषु रन रावनु मारा।। भारद्वाज मुनि ने याज्ञवल्क्य ऋषि से पूछा कि एक राम तो अवधनरेश के कुमार हैं, उनका चरित्र सारा संसार जानता है। उन्होंने स्त्री के विरह में अपार दुःख उठाया और क्रोध आने पर युद्ध में रावण को मार डाला ।। प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ, जाहि जपत त्रिपुरारी । सत्यधाम सर्वग्य तुम्ह, कहहु बिबेक बिचारि ।।46।। हे प्रभो वही राम हैं या और कोई दूसरे हैं, जिनको शिवजी जपते हैं ? आप सत्य के धाम हैं और सब कुछ जानते हैं, ज्ञान विचार कर कहिए । यह आज के समय का भी बहुत बड़ा प्रश्न है । क्योंकि हम सगुण और निर्गुण ब्रह्म में से किसे मानें और किसे नहीं मानें , साकार या निराकार स्वरुप में से कहां अपनी श्रद्धा को स्थिर रखने का प्रयास करें ? बस संपूर्ण संसार में इसी एक तथ्य की जानकारी के अभाव में सभी विवाद, मतभेद, तनाव , युद्ध और विध्वंस हो रहा है । अलग-अलग पंथ और संप्रदायों में अपने-अपने मत की पुष्टि में कई तरह के तर्क दिए जाते हैं और अपने मत को ही सभी को मनवाने के लिए अनुरोध के साथ-साथ अनुचित दबाव भी बनाया जाता है । श्रीरामचरितमानस के ही दोहा क्रं 50 में पुनः एक प्रश्न उठाया गया है । ‘ब्रह्म जो व्यापक बिरज अज, अकल अनीह अभेद। सो कि देह धरि होइ नर, जाहि न जानत बेद ।।50।। जो ब्रह्म सर्वव्यापक, मायारहित, अजन्मा, अगोचर, इच्छारहित और भेदरहित हैं, और जिसे वेद भी नहीं जानते, क्या वह देह धारण करके मनुष्य हो सकता है ? इन प्रश्नों के समाधान तुलसी बाबा ने शिव-पार्वती संवाद के रुप में दोहा क्रं 116.1 में बहुत ही कुशलतापूर्वक दिया है । सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा । गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा ।। अगुन अरुप अलख अज जोई । भगत प्रेम बस सगुन सो होई।। सगुण और निर्गुण में कुछ भी भेद नहीं है – मुनि, पुराण, पण्डित और वेद सभी ऐसा कहते हैं । जो निर्गुण, अरुप (निराकार), अलख (अव्यक्त) और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेमवश सगुण हो जाता है । धन्य हो तुलसी बाबा, जनमानस के सामान्य प्रश्नों को आपने बहुत ही सरल समाधान किया है । आपको कोटी-कोटी नमन ।
सम्पर्क मोबाईल क्र.9755358707
Leave a Reply