बड़वानी। मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग के तत्त्वावधान में जिला अदब गोशा बड़वानी के द्वारा सिलसिला के तहत महान क्रांतिकारी भीमा नायक को समर्पित व्याख्यान एवं रचना पाठ का आयोजन 4 अगस्त 2024 को अंजुमन हॉल, राजपुर जिला बड़वानी में जिला समन्वयक सैयद रिजवान अली के सहयोग से किया गया।
उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने कार्यक्रम की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद द्वारा भीमा नायक को समर्पित कार्यक्रम का उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम में किए गए उनके योगदान और बलिदान को याद करना और उनकी वीरता की गाथा को जनमानस तक पहुंचाना एवं इनके माध्यम से राष्ट्रीय गर्व और देशभक्ति की भावना को जागृत करना है।
बड़वानी जिले के समन्वयक सैयद रिजवान अली ने बताया कि सिलसिला के तहत व्याख्यान एवं रचना पाठ का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता बड़वानी के वरिष्ठ शायर कादिर हनफी ने की। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में सिराज तन्हा अलीराजपुर एवं इस्माईल शेख अध्यक्ष, राजपुर उपस्थित रहे। इस सत्र के प्रारंभ में बलदेव सिंह चौहान ने महान क्रांतिकारी भीमा नायक के जीवन एवं कारनामों पर प्रकाश डाल कर उन्हें श्रृद्धांजलि अर्पित की।
उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि कहते हैं युद्ध तो सेना लड़ती है नाम कर्नल का होता है जी हां मैं बात कर रहा हूं एक ऐसे कर्नल की जिसे निमाड़ का रॉबिनहुड कहा जाता है। 1857 में अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के लिए देश के हर हिस्से से क्रांति का बिगुल फूंका गया और पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और विद्रोह हुए। जब पूरा देश अंग्रेजों से विद्रोह कर रहा था तो हमारा निमाण कैसे अछूता रह जाता। पश्चिम के निर्माण में भीमा नायक ख्वाजा नायक जैसे वीर योद्धाओं ने अंग्रेजों से मुक्ति के लिए कमर कसली। भीमा नायक ऐसे पहले क्रांतिकारी थे जिन्हें अंग्रेजों ने काले पानी की सजा सुनाई। भीमा नायक का अंग्रेजों की सेना में ऐसा खौफ था कि उनका नाम सुनकर ही अंग्रेज सेना काँप जाती थी। भीमा नायक का जन्म बड़वानी रियासत के एक पहाड़ी गांव में 1840 में एक गरीब आदिवासी भील परिवार मैं हुआ था उनके माता-पिता कृषि उपकरणों के साथ-साथ तलवार एवं बरछी जैसे अन्य हथियार भी बनाया करते थे जिनसे उनके पारिवारिक भरण पोषण होता था अंग्रेजों ने उनके पिता को किसी जुर्म में गिरफ्तार कर बहुत ही यातनाएं देकर मार दिया जिसका भीमा नायक के दिलो दिमाग पर गहरा प्रभाव पड़ा और वे अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति पाने के लिए प्रतिबद्ध और संकल्पित हो गए भीमा नायक ने भीलों की अपनी एक सेना तैयार की और अंग्रेजों से तथा साहूकारों से समाज को मुक्त कराने का प्रण ले लिया भीमा नायक साहूकारों व अंग्रेजों से उनका खजाना लूटते थे और अपने समाज पर उत्थान के लिए उसका उपयोग करते थे यही कारण है कि भीमा नायक को रॉबिन हुड कहा जाने लगा।
29 दिसंबर 1876 को इस महानायक का दीपक बुझ गया और वे शहीद हो गए।
रचना पाठ में जिन शायरों ने अपना कलाम पेश किया उनके नाम और अशआर निम्न हैं:
बरस ही जाता तो दिल को सुकून मिल जाता
ये अब्र बस यूँ ही उस घर पे छा के लौट आया
कादिर हनफी
हिज्र होता है मेरी जान पे बन आती है,
वस्ल से यार को सो बार शिकायत होगी!
आरिफ अहमद ‘आरिफ’ बड़वानी
तुम्हारी जीत की लेकर के आस बैठे है
चलो आओ के हम अब तक उदास बैठे है
इस्लामुद्दीन ‘हैदर’ ओझर
अपनी हस्ती को जो मिटाएगा
सारे आलम में जगमगाएगा
शुजाउद्दीन ‘बैबाक’
वतन पर जो हुए कुर्बां उन्हें हम कैसे भुलेंगे
वतन पर देदी जिसने जां उन्हें हम कैसे भुलेंगे
सिराज तन्हा
अहले दिल हो तो मुलाकात बनेगी अपनी
अक्ल वालों से कहाँ बात बनेगी अपनी
सैयद रिजवान अली
इसीलिए मुझे ननिहाल हश्रा लगता है
वहां भी नाम से मां के पुकारा जाता हूं
वाजिद हुसैन ‘साहिल’ सेंधवा
मजाल क्या है किसी की के जो मुझे रोके।
भटक रहा हूँ जहाँ पर, भटक रहा हूँ मैं।
निजाम ‘बाबा’ सेंधवा
हाथ से हाथ सब मिलाते हैं।
दिल से दिल कोई भी मिला न सका।
जुनैद अहमद ‘जुनैद’ सेंधवा
नहीं सीख पाए कभी इश्क ‘आदिल’
इसी कार में बस खसारा रहा था।
विशाल त्रिवेदी ‘आदिल’ सेंधवा
रहम करना मेरे अल्लाह गरीबो के घरोंदो पर
हवा जब तेज चलती है घरोंदा टुट जाता है
हाफिज अहमद हाफिज
आप भी तंज कम नहीं करते
इसलिए बात हम नहीं करते
वाहिद कुरैशी श्वाहिदश् राजपुर
चलों आज हम अंधेरे में ही मिल लें
कल न जाने कौनसे उजाले हमें अलग कर दें
अपुर्व शुक्ला
घर की जरूरतों में कहीं दब गया था मै
अब क्या बताऊं कैसे जवानी गुजर गई
शाकिर शेख शाकिर
लोगों के झूठ से भी बड़ा प्यार था उन्हें
लेकिन हमारे सच की कोई अहमियत न थी
पवन शर्मा हमदर्द
कार्यक्रम का संचालन सैयद रिजवान अली द्वारा किया गया।
कार्यक्रम के अंत में जिला समन्वयक सैयद रिजवान अली ने सभी अतिथियों, रचनाकारों एवं श्राोताओं का आभार व्यक्त किया।
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