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जहां खोजें वहां मिलेंगे हमारे प्रभु श्रीराम

जापान के बांदो,इबाराकी में है श्रीराम मंदिर, जहां  दो से तीन हजार भारतीय प्रतिवर्ष मनाते हैं सभी पर्व,उत्सव

संस्थापक गुलाबराय गंभीर और चेयरमैन मुकेशकुमार सिंह को विश्वास है,बनाएंगे यहां  अयोध्या जैसा मंदिर,जिसमें होगा विवाह मंडप,योगकेंद्र और प्रदान होगी वेदों की शिक्षा l 

यतीन्द्र अत्रे,

कहा जाता है कि ईश्वर हर जगह मिल सकता है,यानी कि जहां आस्था, विश्वास, मान्यता है वहां ईश्वर को खोजा जा सकता है। लेकिन आस्था के विरुद्ध बुराईरूपी रावणों की संख्या भी तो दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है,संभवतः इसीलिए बारिश के बाद हम अपने निवास स्थान की रंगाई पुताई करते हैं l प्रतिवर्ष दशहरा और दीवाली जैसे पर्वों पर प्रवचन एवं सकारात्मक विचारों के आदान प्रदान से बुराइयों के प्रतीक रावण का दमन करते आए हैं। मुझे याद है जब मेरी जापान यात्रा आरंभ होनी थी उसी समय विनय भाई (प्रसिद्ध उद्घोषक एवं कला समीक्षक) श्रीलंका यात्रा के लिए निकलने वाले थे मैंने उन्हें शुभकामनाएं प्रेषित की, प्रति उत्तर में उन्होंने मेरी जापान यात्रा पर खुशी जाहिर करते हुए कहा- जो जहां हो वहीं के रावण का दमन करें… कवि, साहित्यकार हो या समीक्षक उनके शब्दों में जादू होता है उनके द्वारा सहजता में कही गई बात में भी गूढ़ अर्थ छुपा होता है। अब यह तो पुरानी कहावत है कि जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि,यानी कि कवि महोदय कभी कभी ऐसे अनछुए विषयों की गहराई तक पहुंच जाते हैं जहां सूरज की किरणें भी ना पहुंच पाए…हालांकि यह तो रही कहावत, लेकिन यह तो मानना होगा कि ढूंढने जाएंगे तो आज विश्व के हर कोने में भारतवासी मिल जाएंगे और यकीन मानिए जनाब वे सभी वहां अपना समूह बना एक छोटा भारत बनाने की जुगत कर रहे होंगे।विदेशों में जहां भारतीय त्योहारों के लिए छुट्टी नहीं होती हैं वहां सप्ताह के अंत पर ही त्यौहार मनाने का चलन होता है l ऐसे ही दशहरे के बाद के रविवार को दशहरा पर्व के उपलक्ष में एक भारतीय समूह के साथ उत्सुनोमिया शहर से रावण का दमन करने हम लोग निकले। लेकिन रास्ते में मेरे मन में इन सबसे परे एक विचार कौंध रहा था कि, वे व्यक्ति कितने महान होंगे जो कईं समुंदर पार भारतीय त्योहार,भारत की संस्कृति को कायम रखे हुए हैं और अपने देश से हजारों मील दूर श्री राम के भक्त के रूप में अपनी पहचान बना रहे हैं । टोक्यो हाईवे पर लगभग डेढ़ घंटे की दूरी के बाद हमारी कार हाईवे छोड़ एक छोटे किंतु व्यवस्थित गांव बांदो की ओर मुड़ती है, सड़क के दोनों और पत्ता गोभी, बैंगन, नींबू के बड़े-बड़े फॉर्म दिखाई देते हैं और उसके बाद बांदो में प्रवेश, यहां मन को प्रफुल्लित करने वाले कुछ संस्थानों पर भारतीय नाम दिखाई देते है, जिससे यह अनुमान तो हो गया कि यहां अपने वतन के लोगों का प्रतिनिधित्व है l गांव से होते आगे बढ़ते ही कुछ दूरी पर मंदिर की घंटी की मधुर ध्वनि श्री राम के दर्शन की हमारी आतुरता को और बढ़ा देती है। फिर दिखाई दिए हमारे जैसे कईं भारतीय चेहरे जिन्हें हम पिछले कईं दिनों से ढूंढ रहे थे। कुछ लोग मंदिर आने वाले वाहनों की व्यवस्थित पार्किंग करा रहे थे। सबसे पहले प्रभु दरबार पहुंचे भगवान श्रीगणेश, महादेव भगवान जगन्नाथ,देवी दुर्गा, बजरंगबली सबके दर्शन एक साथ, वाह प्रभु आपकी लीला अपरंपार… और यहां मिले प्रभु के भक्तों के रूप में भारतीय परिधानों से सजे-धजे नर नारी तथा उनके बाल गोपाल। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सबसे पहले प्रभु की आरती, कन्या भोज फिर सभी के लिए प्रसादी भंडारा। इन सब कार्यों में सम्मिलित होते हुए दोपहर कब बीत गई पता ही ना चला। फिर वहीं भंडारे की जगह सजने लगा मां का दरबार, रंग-बिरंगे लहराते परिधानों के रूप में कभी मुझे गुजरात,महाराष्ट्र की झलक दिखाई दी तो कभी उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब के बीच गरबों की धूम, मां का जय घोष करती मधुर ध्वनि से ऐसा दृश्य बन चला था कि बस उन्हें निहारते रहें… पर इन सब के बीच भी मेरी दृष्टि उस व्यक्ति पर थी जिसने कुछ समय के लिए यहां एक छोटे भारत का दृश्य बनाया था। कहते हैं कि पूछने पर भगवान भी मिल जाते हैं सोचा क्यों ना उन्हीं का स्मरण भी कर ले, तभी नीले कुर्ते और सफेद पायजामा पहने गले में गमछा लटकाए सज्जन हमारी ओर आते दिखाई दिए। एक भाई साहब ने कहा यही है गंभीर साहब…उनसे मिले तो आत्मीयता की अनुभूति हुई। बातचीत के दौरान ही मैंने उनसे 5 मिनट का समय चर्चा के लिए मांगा जिसे उन्होंने उसे सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। गंभीर साहब ने एक और सज्जन जो उन्ही की तरह कुर्ता पजामा पहने थे, साथ लिया और मंदिर प्रांगण में बने कार्यालय मे हमें बैठने के लिए कहा l चर्चा में मेरे साथ मेरे बेटे और उत्सुनोमिया में रंग संस्कृति के प्रतिनिधि उत्कर्ष थे l पहला परिचय साथ में आए सजन का हुआ, बताया गया कि वे मुकेश सिंह है जो हमारे ट्रस्ट के चेयरमैन हैं,और फिर स्वयं गंभीर साहब ने अपना परिचय गंभीर गुलाब राय के रूप में दिया l उन्होंने बताया कि मैं उत्तराखंड का मूलनिवासी हूं और मुझे जापान में 33 वर्ष हो रहे हैं 19 वर्ष की आयु में मैं यहां आया l क्षण भर के लिए उत्कर्ष और मैने एक दूसरे की ओर देखा और अपनी भाव भंगिमाओं से यह तय किया कि हमें जो जानकारी चाहिए इन्हीं राम-लक्ष्मण की जोड़ी से मिलनी है…वार्ता आरंभ करते हुए जब उनसे हमने पूछा कि अपने देश की मिट्टी से हजारों मील दूर यहां आपको मन में कैसे ये विचार आया कि यहां श्रीराम का मंदिर होना चाहिए ? गुलाबराय अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए पिता का संदर्भ आने पर इतने भावुक हो गए कि अगले ही पल उनकी आँखों से अश्रु बहने लगे, हम हतप्रद थे कि अचानक ऐसा क्या हुआ…हालांकि देखा जाए तो हर उस भारतीय की कहानी गुलाब राय जैसी होगी जिन्होंने विदेशी धरती बिना सहारे पहली बार कदम रखा होगा। स्वयं को मजबूत करते हुए उन्होंने अपना वृतांत आरंभ किया…जब ऐसा हुआ कि मुझे यहां आए लंबा समय हो गया, आर्थिक स्थिति में भी कुछ सुधार हुआ l तब ऐसा लगा कि कोई व्यक्ति जैसे अपनी पहचान भिन्न-भिन्न तरीके से बनाता है, कोई राजनीति तो कोई अन्य तरीके से, मेरे मन में भी कुछ ऐसा विचार था कि यहां हम सभी संघर्षशील हैं, यदि यहां कोई ऐसा कम्युनिटी सेंटर बनाया जाए जहां हम सब भारतीय इकट्ठे हो सके l इसी तारतम्य में मै कुछ लोगों को साथ लेकर जब इस जगह को देखने आया तब मेरे साथियों का यह विचार बना की इस उद्देश्य के लिए यह जगह काफी दूर होगी, सो शहर में दूसरा स्थान चुना गया, लेकिन मेरे मन को तो लगातार यह बात कचोट रही थी कि मंदिर ऐसी जगह बने जहां सिर्फ मैं शब्द का उपयोग ना हो क्योंकि मंदिर तो सबका होना चाहिए l खुली जगह, ज्ञान के लिए शांत वातावरण और फिर अधिक से अधिक संख्या में लोग इकट्ठे हों, अपने पर्व-उत्सव एक साथ मना सके l इस भावना के साथ मैंने अपने साथियों को इसी जगह के लिए जैसे तैसे तैयार कर लिया l फिर मुकेश जी का साथ मिला, कुछ और लोग जुड़े l एक समिति बनाई और यह जमीन जो आप देख रहे हैं जिसका मालिकाना हक मेरा था l पहले प्राथमिकता देते हुए मैंने उसे ट्रस्ट के नाम हस्तांतरित कर दिया l फिर सच्ची श्रद्धा से इस पावन कार्य में हम सब लोग मिलकर जुट गए,परिणाम आप सबके सामने है l पहले यहां कुल 100 व्यक्ति एकत्र हुए फिर 500 और अब हम यहां प्रतिवर्ष लगभग 3 हजार भारतीय श्रद्धालुओं की व्यवस्था को अंजाम देते हैं। अयोध्या में जब श्रीराम का मंदिर बनना आरंभ हुआ उसी दौरान हमने भी प्रभु श्रीराम का स्मरण करते हुए यहां श्रीगणेश कर दिया।वार्ता को आगे बढ़ते हुए मुकेश कुमार सिंह ने कहा कि मैं यहां 22 वर्ष से हूं और गुल्लू भाई (गुलाब राय जी) की बात को आगे बढ़ते हुए कहूंगा कि यहां दूसरे धर्मों के आस्था के केंद्र तो थे पर हिंदुओं के लिए ऐसा कोई स्थान नहीं था, जहां हम अपने ईश्वर की आराधना कर सके l दूसरा मेरा मानना रहा है कि हम यहां जापान में पहली भारतीय पीढ़ी के रूप में है, हमारा यह कर्तव्य बनता है कि आगे आने वाली पीढ़ी अपने सनातन धर्म को पहचाने।जैसे भारत में सभी आराध्यों की आराधना की जाती है, यहां भी हों l इसी प्रस्ताव को लेकर हम जापान में अन्य जगहों पर भी गए। हमने देखा कि कईं भारतीय परिवार ऐसे मिले जहां बच्चे अपने भगवानों से परिचित नहीं थे, उनसे जब पूछा कि गणेश भगवान, कृष्ण भगवान ,महादेव का स्वरूप कैसा है तो वे किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए। उनकी दुविधा देख बाद में सर्वसम्मति से यह तय हुआ कि मंदिर में श्री राम के अतिरिक्त हमारे सभी पूजनीय प्रमुख देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित होंगी। ऐसे ही हम सब साथ-साथ चलते गए और कारवां बनता गया।जब हमने पूछा कि इतनी बड़ी योजना है, आगे अभी बहुत से कार्य शेष होंगे तो क्या यहां आने वाले व्यक्तियों से भी सहयोग दिया जाता है या स्वयं समिति सभी कार्यों का निर्वहन करती है ? प्रति उत्तर में मुकेश जी ने कहा की सहयोग स्वैच्छिक होता है।उसके भी पूर्व हम समिति पदाधिकारियों का प्रयास होता है कि अधिक से अधिक राशि आपस में स्वयं एकत्र करें। गुल्लू भाई आगे बताते हैं कि मंदिर में जो सजीव दिखने वाली प्रतिमाएं स्थापित हैं वे सभी जयपुर से बुलवाई गई है जो कि बड़े सुरक्षित तरीके से हमारे साथी,संबंधी स्वयं लेकर आए हैं, यह भी ध्यान रखा गया है की प्रतिमाएं खंडित ना हो।इस संबंध में भारत से भी हमारे पास कईं फोन आए कि कैसे आप सब ये कर पा रहे हैं ? उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी जी ने बात करते हुए हमारी सराहना की, उन्होंने भी यही प्रश्न किया जो आपने किया है कि, कैसे सोचा कि यहां राम मंदिर होना चाहिए ? उन्होंने यह भी पूछा कि किसी तरह की बाधा तो नहीं आई? प्रति उत्तर में हमने कहा- किसी दूसरे देश में अपने धर्म मंदिर को स्थापित करना बड़ी चुनौती थी, पर यहां मेरे 33 वर्षों के व्यवहार और संबंधों ने नैया पर लगाई ।ऐसा कहते ही गुल्लू भैया का चेहरा आभा लिए एक गर्व की अनुभूति से चमकता है,वे उन व्यक्तियों के नाम लेते हैं जो उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं- सबसे पहले मुकेश सिंह जो उनके चेयरमैन है फिर राज शर्मा, श्रीकांत, मनोज गौर,और मेरा भतीजा रॉबिन है।मेरा मानना है कि ये सभी वे व्यक्ति है जिनके बिना मेरी पहचान कुछ भी नहीं है।भारत के लोगों के लिए और जो दूसरे देशों में अप्रवासी हैं,क्या अपील करना चाहेंगे ?सहयोग तो अपेक्षित रहेगा, जिस रूप में भी करना चाहें …उन्हें बताना चाहेंगे कि यह हमारा पहला कदम ,लेकिन योजना बड़ी है,हमारा विजन यह है कि यहां हम श्रीराम के मंदिर को वही स्वरूप देना चाहेंगे जो अयोध्या में है।भावी योजनाओं में यहां विवाह मंडप,योग केंद्र तथा एक बड़ा वाचनालय स्थापित करना चाहेंगे जहां भारतीय परिवारों के बच्चों के लिए भगवान के सभी अवतारों की जानकारी के साथ वेदों का भी ज्ञान उपलब्ध हो। अंत में गुलाब राय और मुकेश जी प्रणाम करते हुए कह रहे थे – हमारा उद्देश्य भारतीय संस्कृति की जड़ों को यहां कायम रखते हुए उसे पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित करना होगा। उनके विश्वास की झलक देख यहां हम किंकर्तव्यविमूढ़ थे… भारी मन से मुकेश भाई और गुल्लू भैया से गले मिलते हुए विदा ली,फिर एक बार प्रभु के दर्शन किए,पंडितजी से तिलक लगवा कर हाथ में कलावा(रक्षा सूत्र) बंधवाया और दान पेटी में यथायोग्य राशि अर्पण की। लौटते में वे सज्जन फिर साथ हो लिए जिन्होंने गुलाब राय का परिचय कराया था,चाय की चुस्कियां लेते हुए उन्होंने बताया – गुल्लू भैया भारत के उत्तराखंड राज्य में 100 सेनेटरी पैड की मशीनें स्थापित करने हेतु सहयोग कर रहे है। पहली मशीन का तो शुभारंभ हो चुका है l मेरे मुंह से अचानक निकला- वाह क्या बात, विदेशी धरती से भी देश सेवा की मिसाल कायम की जा सकती है l तभी मेरी नज़र मंदिर प्रांगण में नाम पट्टिका के साथ लगाए गए पौधों की ओर गई जो सम्भवतः कुछ वर्षों में पेड़ का रूप धारण करने वाले थे…। रावण दहन का समय हो चला था श्रीराम का जयघोष आरंभ हुआ, अब रावण का दमन तो निश्चित था ही पर मैं उस दृश्य को देखकर सोचने लगा – जहां ऐसे राम भक्त होंगे वहां रावण को भी फिर जन्म लेने के पूर्व कईं बार सोचना पड़ेगा।

श्रीराम मंदिर कार्य योजना सम्बंधी जानकारी एवं

इस पुण्य कार्य में सहयोगी बनने हेतु

दिए गए ईमेल के द्वारा संपर्क किया जा सकता है

shrirammandirjapan@gmail.com

यहां विराजी हैं सबसे पहले मातारानी फिर लक्ष्मण,जानकी संग प्रभु श्रीराम, दूसरी ओर हैं सुभद्रा,बलभद्र संग भगवान जगन्नाथ

रक्षा सूत्र बांध नकारात्मक शक्तियों से दूर रहने के लिए पण्डितजी से आशीर्वाद लेते भक्तगण

कन्या भोज

गरबों की धूम जहां भारत के हर राज्य का प्रतिनित्व करते पुरुष एवं महिलाएं

अंत में रावण के पुतले के रूप में बुराइयों का दहन

मंदिर प्रांगण में श्रीराम पताका के साथ लहरा रहे हैं साथ-साथ भारतीय तिरंगा और जापान का राष्ट्रीय ध्वज

इन सबके सूत्रधार बने बांदो,जापान में निर्मित इस श्रीराम मंदिर के प्रमुख ट्रस्टी मुकेश कुमार सिंह(मध्य में) उनके बाँयी ओर श्री गुलाबराय गंभीर से वार्ता करते हुए रंग संस्कृति के सम्पादक यतीन्द्र अत्रे

2 comments
MANOJ KUMAR VISHWAKARMA

“राम केवल अयोध्या में नहीं, हर उस हृदय में हैं जहां भक्ति है। जापान में बसे राममंदिर हमारे सनातन धर्म की वैश्विक पहचान है। जय श्रीराम!

    Sanjay singh Parihar

    यह सत्य है कि श्री राम हमारे रोम-रोम में विद्यमान हैं और उन्हें कोई मिटा नहीं सकता।

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