जनजातीय संग्रहालय में चल रहे पांच दिवसीय पुतुल समारोह का समापन
भोपाल। जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय के मुक्ताकाश मंच में कठपुतली कला की विविध शैलियों पर एकाग्र पुतुल समारोह का आयोजन 08 से 12 अक्टूबर, 2025 प्रतिदिन सायं 6.30 बजे से किया गया। समारोह के समापन दिवस 12 अक्तूबर, 2025 को श्री अक्षय भाट एवं साथी- नई दिल्ली द्वारा ढोलामारू/सीता हरण प्रसंग को कठपुतली की धागा/आधुनिक शैली में प्रस्तुत किया गया। वहीं समारोह में प्रतिदिन दोपहर 2.00 बजे से अन्य कठपुतली प्रस्तुतियाँ संयोजित की गई हैं जिसमें घनश्याम भट्ट ने पारंपरिक राजस्थानी कठपुतली कला एवं संगीत पर आधारित प्रदर्शन किया।
समारोह की शुरुआत में निदेशक, जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी डॉ. धर्मेंद्र पारे द्वारा कलाकार का स्वागत किया किया गया। इसके बाद कलाकार अक्षय भाट एवं साथी, नई दिल्ली द्वारा ढोलामारु कथा की प्रस्तुति दी गई।
“ढोलामारू” एक पारंपरिक राजस्थानी लोक कथा है, जिसमें त्रिकोणात्मक प्रेमकथा है। ढोला एक सुंदर राजकुमार है, जिसकी सगाई बचपन में ही पड़ोसी राज्य की राजकुमारी मारू से तय हो गई थी। लेकिन एक क्रूर जादूगरनी, ढोला की पत्नी बनना चाहती है, ताकि वह राज्य पर नियंत्रण कर सके। अपने जादू से वह खुद को एक युवा और सुंदर लड़की में बदल लेती है। वह ढोला को इस कदर मोहित कर लेती है कि वह राजकुमारी को भूलकर जादूगरनी से शादी कर लेता है। इस बीच मारू ढोला का इंतज़ार करती है। एक दिन एक भाट उसकी मदद के लिए उसके राज्य में आता है। वह ढोला के राज्य की यात्रा करता है, जहाँ वह कठपुतली कला के माध्यम से ढोला और मारू की कहानी सुनाता है। ढोला को पता चलता है कि वह कठपुतली नाटक में दिखाया गया राजकुमार है, और इसलिए उस भाट की मदद से, वह अपनी युवा मंगेतर से मिलने जाता है। क्रोधित जादूगरनी ढोला के लिए कई जाल बिछाती है। फिर भी वह अंत में सच्चे प्यार और वफादारी को जीतने से नहीं रोक पाती। ढोला मारू एक संगीतमय प्रस्तुति है जिसमें लाइव संगीत और कहानीकार भी होते हैं। यह नाटक लगभग 55 मिनट का रहा।


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