भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में नृत्य,गायन एवं वादन पर केंद्रित गतिविधि “संभावना” का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें 24 अगस्त, 2025 को सोनी मालवीय एवं साथी, आगर-मालवा द्वारा द्वारा मटकी नृत्य एवं विजय प्रजापति एवं साथी, सागर द्वारा मार्शल आर्ट की प्रस्तुति दी गई।


गतिविधि में सोनी मालवीय एवं साथी, आगर-मालवा द्वारा मटकी नृत्य की प्रस्तुति दी गई। मालवा में मटकी नृत्य का अपना अलग परम्परागत स्वरूप है। विभिन्न अवसरों पर मालवा के गाँव की महिलाएँ मटकी नृत्य करती हैं। ढोल या ढोलक को एक खास लय, जो मटकी के नाम से जानी जाती है, उसकी थाप पर महिलाएँ नृत्य करती हैं। प्रारम्भ में एक ही महिला नृत्य करती है, इसे झेला कहते हैं। महिलाएँ अपनी परम्परागत मालवी वेशभूषा में चेहरे पर घूँघट डाले नृत्य करती हैं। नृत्य करने वाली पहले गीत की कड़ी उठाती है, फिर आसपास की महिलाएँ समूह में कड़ी को दोहराती हैं। नृत्य में हाथ और पैरों में संचालन दर्शनीय होता है। नृत्य के केंद्र में ढोल होता है। ढोल पर मटकी नृत्य की मुख्य ताल है। ढोल, किमची और डण्डे से बजाया जाता जाता है। मटकी नृत्य को कहीं-कहीं आड़ा-खड़ा और रजवाड़ी नृत्य भी कहते हैं।
अगले क्रम में विजय प्रजापति एवं साथी, सागर द्वारा मार्शल आर्ट की प्रस्तुति दी। बुंदेलखंड का अखाड़ा नृत्य पूर्व कई काल से चला आ रहा है। युद्ध के दौरान अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग किया जाता था और उनसे बचने की कला भी सिखाई जाती थी। अखाड़ा शौर्य का प्रतीक है। आज भी मैहर में आल्हा और उदल का अखाड़ा है। बुंदेलखंड में अखाड़ा लोक नृत्य बहुत कम किया जाता है। बुंदेलखंड में अखाड़ा लोक नृत्य नवरात्रि के अवसर पर किया जाता है। इस कला में तलवार, ढाल, लाठी, भाला आदि शस्त्रों का प्रयोग किया जाता है। ढोल की थाप पर कलाकार नृत्य और शौर्य कला को दिखाते हैं।
मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय़ में हर रविवार दोपहर 02 बजे से आयोजित होने वाली इस गतिविधि में मध्यप्रदेश के पांच लोकांचलों एवं सात प्रमुख जनजातियों की बहुविध कला परंपराओं की प्रस्तुति के साथ ही देश के अन्य राज्यों के कलारूपों को देखने समझने का अवसर भी जनसामान्य को प्राप्त होगा।
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