डाॅ. योगिता राठौर
प्राचीन काल से ही सोलह संस्कार हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण अनुष्ठान और रीति-रिवाज हैं जो जीवन के विभिन्न चरणों में व्यक्ति को पवित्र और शुद्ध बनाने के लिए सम्पन्न किए जाते हैं। ये संस्कार व्यक्ति के जीवन को संस्कारित और समृद्ध बनाने में मदद करते हैं। इन संस्कारों के मुख्य उद्देश्य
1. व्यक्ति को पवित्र और शुद्ध बनाना।
2. जीवन के विभिन्न चरणों में व्यक्ति को सही दिशा देना।
3. व्यक्ति को संस्कारित और समृद्ध बनाना।
4. व्यक्ति को धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना।
5. व्यक्ति को अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का पालन करने के लिए प्रेरित करना है।
सोलह संस्कारों का मनुष्य के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि इसके अंतर्गत
1. गर्भ से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति के जीवन के विभिन्न चरणों में संस्कार किया जाता है।
2. संस्कार व्यक्ति को संस्कारित और समृद्ध बनाने में मदद करते हैं।
3. संस्कार व्यक्ति को धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।
4. संस्कार व्यक्ति को अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का पालन करने के लिए प्रेरित करते हैं। इस प्रकार, सोलह संस्कार हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण अनुष्ठान और रीति-रिवाज हैं जो व्यक्ति को संस्कारित और समृद्ध बनाने में मदद करते हैं।
सोलह संस्कारों में से पंद्रहवाँ विवाह संस्कार हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो दो व्यक्तियों के बीच विवाह को पवित्र और शुद्ध बनाने के लिए किया जाता है। विवाह भारतीय संस्कृति में एक पवित्र संस्कार है जिसे प्रेम, समर्पण और जीवन भर साथ रहने की प्रतिज्ञाा का प्रतीक माना जाता है। यह सिर्फ दो व्यक्तियों का मिलन नहीं होता, बल्कि दो परिवारों का भी मिलन होता है। विवाह संस्कार में कई रस्में और परंपराएं होती हैं जो इस बंधन को और मजबूत बनाती हैं। यह संस्कार प्रेम, समर्पण और सहयोग का प्रतीक है, जो विवाहित जीवन की शुरुआत करने के लिए दोनों पक्षों को तैयार करता है।
विवाह संस्कार प्रेम का प्रतीक है, जो दोनों पक्षों के बीच गहरे प्रेम और समर्पण को बढ़ावा देता है। यह संस्कार दोनों पक्षों को एक दूसरे के प्रति समर्पित करता है और उन्हें एक दूसरे के साथ जीवन भर साथ रहने के लिए प्रेरित करता है।
विवाह संस्कार समर्पण का प्रतीक है, जो विवाहित जोड़े को एक दूसरे के प्रति समर्पित करता है। विवाह दो व्यक्तियों के बीच प्रेम और समर्पण का सबसे पवित्र बंधन होता है। यह एक-दूसरे के प्रति समर्पण और जीवन भर साथ रहने की प्रतिज्ञाा का प्रतीक है। यह संस्कार दोनों को एक दूसरे के लिए बलिदान करने के लिए प्रेरित करता है और उन्हें एक दूसरे के साथ जीवन भर साथ रहने के लिए तैयार करता है।
मंगलफेरे: मंगलफेरे विवाह की सबसे महत्वपूर्ण रस्मों में से एक है। इसमें वर और वधू अग्नि के सात फेरे लेते हैं जो जीवन के सात वचनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
कन्यादान: कन्यादान में कन्या अपने पिता द्वारा वर को दी जाती है। यह एक पवित्र संस्कार है जो पिता-पुत्री के रिश्ते को दर्शाता है।
सिंदूरदान: सिंदूरदान एक हिंदू विवाह रस्म है जिसमें वर वधू के माथे पर सिंदूर लगाता है। यह सुहाग का प्रतीक है और यह दर्शाता है कि वधू अब विवाहित है।
पाणिग्रहण: पाणिग्रहण में वर वधू का हाथ थामे हुए अग्नि के सामने खड़ा होता है। यह एक पवित्र वचन है जिसमें वर वधू से वादा करता है कि वह उसकी रक्षा करेगा और उसकी देखभाल करेगा।
विवाह संस्कार की महत्ता:
1. प्रेम और समर्पण को बढ़ावा देता है।
2. विवाहित जीवन की शुरुआत करने के लिए दो परिवार को तैयार करता है। 3. दोनों परिवारों के बीच सहयोग और समझ को बढ़ावा देता है।
4. विवाह को पवित्र और शुद्ध बनाता है।
विवाह संस्कार प्रेम एवं समर्पण का प्रतीक है, जो दो व्यक्तियों के बीच विवाह को पवित्र और शुद्ध बनाने के लिए किया जाता है। यह संस्कार विवाहित जीवन की शुरुआत करने के लिए दो व्यक्तियों एवं दो परिवार को तैयार करता है और उन्हें एक दूसरे के प्रति समर्पित करता है। विवाह एक पवित्र बंधन है जो दो व्यक्तियों को जीवन भर के लिए जोड़ता है। यह प्रेम, समर्पण और विश्वास का प्रतीक है। विवाह संस्कार में कई रस्में और परंपराएं होती हैं जो इस बंधन को और मजबूत बनाती हैं। हालांकि, समय के साथ विवाह संस्कार में कई बदलाव आए हैं, लेकिन इसका मूल भाव हमेशा एक ही रहता है।
प्राचार्य, मां नर्मदा कालेज
आफ एजुकेशन धामनोद
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