गृहस्थी

राजमाला आर्या

पिया संग बसाई नयी गृहस्थी जब मैंने!

मिले दहेज ओर उपहारों से अपनी गृहस्थी सजाई मैंने !

तिनका तिनका जोड़ कर  बनाती चिड़िया घोंसला

उसी तरह एक एक रुपए जोड़ कर गृहस्थी बसाई मैंने!

अभाव में भी पिया संग खुशियों का दामन थामा मैंने!

कीमती वस्तुयें नहीं थी घर में,

पिया का प्यार ही कीमती माना मैंने !

कितने प्यारे दिन थे वो,

कितनी सुहानी शामें जी है मैने !

वो रेडियो का दौर, आपकी फरमाइशें कितने चाव से सुनी हैं मैंने!

ब्लैक एंड व्हाइट टीवी था, पर उस दौर का जीवन रंगीन जीया हैं‌ मैंने!

छोटे से घर में ज्यादा सदस्य ओर उसपर भी

 एक साथ कई मेहमानों के आने को भी बड़े सलीके ओर प्यार से जीया हैं‌ मैंने!

ना ही महरी, ना नौकर चाकर फिर भी अपनी जिम्मेदारीयों को बखूबी निभाया है मैंने!

काम समेटते- समेटते कर्ई दफा खुद को भी कितना समेटा हैं मैंने!

अपने सपनों को छोड़ परिवार के सपनों को साकार किया है मैंने !

कम संसाधनों व‌ ओछी पुंजी में भी कितने सुकुन से जीवन जीया हैं‌ मैंने !

आज सब कुछ है घर में, पर

वो सुकून !

वो प्यार !

वो अपनेपन!

वो लिहाज!

वो फुर्सत !

को अक्सर ही घर में चुपके -चुपके ढुंढा हैं मैंने!!

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